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संयुक्त राष्ट्र संघ ने वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर सोमवार को एक रिपोर्ट जारी की जिसमें चेतावनी दी गई है ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए अब सोसायटी और विश्व अर्थव्यवस्था को बड़े बदलाव करने होंगे. इस बात को ध्यान में रखते हुए पॉलिसीमेकर्स के लिए 400 पेज का सारांश बनाया गया है जिसमें बताया गया है कि आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से कैसे निपटा जाए.
पृथ्वी की सतह में 1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर समुद्र का जलस्तर बढ़ जाता है जिसकी वजह से तूफान, बाढ़ और सूखे का खतरा बढ़ जाता है. हमारी पृथ्वी का ट्रैक रिकॉर्ड 3 और 4 सेल्सियस की ओर असंभव रूप से बढ़ रहा है. अभी ग्रीन हाउस गैस का जो उत्सर्जन है उसके हिसाब से 2030 तक पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है. जलवायु परिवर्तन के लिए अंतर- सरकारी पैनल (IPCC) ने बड़े विश्वास के साथ ये रिपोर्ट जारी की है.
पर्यावरण योजना और जलवायु संरक्षण विभाग के हैड और आईपीसीसी के को-चेयरमैन देबरा रॉबर्ट्स ने एएफपी न्यूज एजेंसी से कहा है कि अगले कुछ साल मानव इतिहास के लिए बहुत महत्वपूर्ण होने वाले हैं.
2015 में पेरिस एग्रीमेंट होने से पहले एक दशक तक वैज्ञानिक शोध में ये माना गया था 2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर भी पर्यावरण के लिहाज से दुनिया सुरक्षित रहेगी. लेकिन अब जो आईपीसीसी रिपोर्ट आई है उसके अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव जल्दी आने वाला है और ज्यादा बुरे नतीजे देगा, जितना कि पहले अनुमान लगाया था.
ग्रीनपीस इंटरनेशनल की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर जेनिफर मॉर्गन ने बताया कि जो बातें साईंटिस्ट कह रहे हैं वह अब भविष्य में घटित होने वाली हैं. रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक 'कार्बन न्यूट्रल' से पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ही बढ़ने के फिफ्टी-फिफ्टी चांस हैं.
ऑक्सफोर्ड के जलवायु अनुसंधान कार्यक्रम विश्वविद्यालय के हैड मायल्स एलन ने बताया कि इसका मतलब है कि जितने टन कार्बन डाई ऑक्साइड वायुमंडल में छोड़ी जाएगी, उतनी ही कार्बन डाई ऑक्साइड को बैलेंस किया जाएगा.
हाल में हुए 6 हजार वैज्ञानिक अध्ययन के बाद इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 4 तरीकों से काम करने की योजना बनाई गई है. इसमें सबसे महत्वाकांक्षी तरीका है कि 2020 तक जीवाश्म ईधन से CO2 उत्सर्जन को कम करने के लिए अन्य तरीके अपनाए जाएं.
ये सब तब संभव होगा जब हम भारी मात्रा में बायोफ्यूल का उपयोग करेंगे. यदि भारत के दोगुने साइज के क्षेत्र में बायोफ्यूल के पौधों को उगाया जाएगा तो अनुमान है कि 2030 तक 1200 बिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साईड को उत्सर्जन को रोका जा सकता है. यदि हमें आने वाली पीढ़ी को अच्छा पर्यावरण देना है तो उसकी शुरुआत अभी से करनी होगी. छोटे द्वीप और डेल्टा में रहने वाले घनी आबादी की जिंदगी, समंदर का जलस्तर बढ़ने से दांव पर लगी हुई है.
छोटे द्वीप राज्यों के गठबंधन के लिए संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता के चीफ निगोशिएटर अमजद अबदुल्ला ने कहा कि बड़ी क्षति से बचने के लिए हमारे पास सिर्फ एक पतला रास्ता ही शेष बचा है.
ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 सेल्सियस की लिमिट में रखने के लिए हर साल 2.4 ट्रिलियन डॉलर या वर्ल्ड जीडीपी का 2.5 फीसदी का निवेश वैश्विक उर्जा प्रणाली में 2016 से 2035 के बीच करना है. आने वाले बड़े खतरों को रोकने के लिए ये एक छोटी कीमत है.
क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के वैश्विक परिवर्तन संस्थान के डायरेक्टर ऑव होघ-गुल्डबर्ग ने कहा कि इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने का कोई आसान तरीका नहीं हैं लेकिन अब हमें ऐसा ही करने की जरूरत है. इस रिपोर्ट को दिसंबर में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में रखा जाएगा जो पौलेंड के कैटोवाइस शहर में होगा. यहां दुनिया के लीडर कार्बन उत्सर्जन को कम करने की पॉलिसी बनाने के लिए प्रेशर में होंगे.
गौरतलब है कि एक सप्ताह तक दक्षिण कोरिया के इंचियन शहर में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर मीटिंग चली. इसमें सउदी अरब ने पहले तो अपने पैर खींचे लेकिन फिर वह भी तैयार हो गया. अमेरिका इस प्रयास के खिलाफ खड़ा है. ट्रंप प्रशासन, पेरिस ट्रीटी का उल्लंघन करने में लगा हुआ है.