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वारदातः जानिए इराक की बदूश जेल का पूरा सच

इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल से तीन साल पहले लापता हुए 39 भारतीयों का सच आखिर है क्या? वो ज़िंदा हैं भी या नहीं? अगर जिंदा हैं तो कहां हैं? ये वो सवाल हैं जिनके जवाब ठीक-ठीक ना इराक सरकार दे रही है और ना ही भारत सरकार. अब आजतक की टीम उन 39 भारतीयों की खोज में मोसुल पहुंच गई और फिर उस बदूश जेल तक भी गई. जिसके बारे में पहले कहा गया था कि वो 39 भारतीय उसी जेल में बंद हैं. हालांकि वहां पहुंचने के बाद बदूश जेल का सच कुछ और ही सामने आया.

मोसुल में आजतक की टीम अभी भी भारतीयों की खोज में  लगी हुई है मोसुल में आजतक की टीम अभी भी भारतीयों की खोज में लगी हुई है
परवेज़ सागर/शम्स ताहिर खान
  • नई दिल्ली,
  • 29 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 7:08 PM IST

इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल से तीन साल पहले लापता हुए 39 भारतीयों का सच आखिर है क्या? वो ज़िंदा हैं भी या नहीं? अगर जिंदा हैं तो कहां हैं? ये वो सवाल हैं जिनके जवाब ठीक-ठीक ना इराक सरकार दे रही है और ना ही भारत सरकार. अब आजतक की टीम उन 39 भारतीयों की खोज में मोसुल पहुंच गई और फिर उस बदूश जेल तक भी गई. जिसके बारे में पहले कहा गया था कि वो 39 भारतीय उसी जेल में बंद हैं. हालांकि वहां पहुंचने के बाद बदूश जेल का सच कुछ और ही सामने आया.

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क्या सचमुच मोसुल की बदूश जेल मलबे में बदल चुकी है? क्या सचमुच जून 2104 से पहले तक बदूश जेल हुआ करती थी? और क्या बदूश जेल में ही 2014 से लापता 39 भारतीयों को कभी रखा गया था? और क्या बदूश जेल में बंद सारे कैदियों को बाद में आईएसआईएस ने मार दिय़ा? सवाल बहुत सारे हैं. पर साफ-साफ जवाब ना इराक दे रहा है और ना ही भारत.

आइए अब आपको बदूश जेल और उसमें बंद सारे कैदियों का सच और अंजाम बताते हैं. वो भी तफसील से. 10 जून 2014 को आतंक के कब्ज़े में आने के बाद जुलाई 2017 तक निनवा प्रांत की बदूश जेल में क्या हुआ. कैसे हुआ. कब हुआ. किसी को कुछ नहीं पता. सिवाए उसके जो उन्होंने दुनिया को बताना चाहा और उन्होंने जो बताया उसके मुताबिक ऐन कब्ज़े वाले दिन जेल के अंदर घुसकर आतंकियों ने पहले आतंकी सोच रखने वाले अपने साथियों को अलग किया और फिर बाकी बचे कैदियों को जेल की चौहद्दी से 500 मीटर दूर ले जाकर लाइन से खड़ा करके गोली मार दी. मारे गए कैदियों में शिया मुसलमान और बाकी दूसरे मज़हब के लोग थे.

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मारे गए लोगों में कौन थे. उनके नाम क्या थे. उनकी पहचान क्या थी. इराकी सरकार समेत किसी को कुछ जानकारी नहीं. हां मगर इस घटना के करीब पौने तीन साल बाद इराकी सेना की पॉपुलर मोबिलाइज़ेशन फोर्स ने मास ग्रेव मिलने का दावा किया है. यानी एक ऐसी कब्र जिसमें एक साथ करीब 400 से ज़्यादा कैदियों को मारकर दफनाया गया था. लेकिन जब ये दावा किया गया तब यहां जेल नहीं थी. था तो बस मलबा. जिसमें सिमेंटेड दीवारें और जेल के कुछ निशान थे. ऐसा माना गया कि जेल को आतंकियों ने धमाके से उड़ाकर उस पर बुलडोज़र चलवा दिया था. मगर धमाका करने से पहले आतंकियों ने जेल में मौजूद ज़रूरी चीज़ों को इराकी सैनिकों से लूट लिया था. हालांकि ये जेल गिराई कब गई इसकी कोई जानकारी फिलहाल नहीं है.

इराकी सेना को जो सामूहिक कब्रगाह मिली है उसे नहर की तरह खोदा गया था. और उसमें खड़ा कर कैदियों को गोलियों से भूना गया. आज भी इस लंबी चौड़ी कब्र में लाशों के अवशेष आसानी से देखे जा सकते हैं. सारी तस्वीरें हम आपको दिखा नहीं सकते क्योंकि वो विचलित करने वाली है. मगर जो दिखा सकते हैं वो ये कपड़े हैं जो यहां दफनाए जाने वाले लोगों ने पहन रखे थे. फिलहाल इन लाशों की जांच की जा रही है. मारे गए लोगों में किसी भारतीय के होने की पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है. और न ही ये सबूत मिले हैं कि जो भारतीय निनवा की इस बदूश जेल में थे वो ज़िंदा बचे हैं.

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निनवा प्रांत में मोसुल के उत्तरी हिस्से में बनी बदूश जेल. इराक की बेहद सुरक्षित जेलों में से एक हुआ करती थी. मगर आतंकियों ने न सिर्फ यहां बंद कैदियों का नरसंहार किया बल्कि इस जेल को ही मिट्टी में मिला दिया. इसके अलावा इस इलाके में 1955 में बनी एक सीमेंट फैक्ट्री भी थी. जिसे भी आतंकियों ने लूटकर उस पर कब्ज़ा कर लिया था. हालांकि अब उसे आतंक के चंगुल से आज़ाद कर लिया गया है.

जो दुनिया को अपने झंडे की तरह काले रंग में रंगने निकला था. उसकी खिलाफ़त कुछ इस तरह मिट्टी में मिल गई है. मगर मोसुल में मिट्टी में मिलने से पहले दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी संगठन आईएसआईएस ने इस खूबसूरत शहर को जो ज़ख्म दिया है. उसके दाग़ मिटने में अभी बरसों लगेंगे. बर्बाद गलियां. लुटी पिटी सड़के. धधकती इमारतों की सिसकियां अभी भी सुनी जा सकती है. मोसुल में आतकं की हार और इंसानियत की जीत के बाद आजतक देश का पहला ऐसा न्यूज़ चैनल है, जो इराक और इराकी शहर मोसुल पहंचा है.

बेशक मोसुल बगददी के चंगुल से आजाद हो चुका है. मगर मोसुल में जिंदगी अब भी महफूज नहीं है. कदम-कदम पर खतरा बरकरार है. कई इलाके ऐसे हैं जहां जाने की इजाजत अब भी नहीं. क्योंकि बगदादी के बिछाए बारूद अब भी जिंदा हैं. कहां, कब क्या अनहोनी हो जाए कोई गारंटी नहीं. आजतक की टीम को हर कदम ऐसे ही खतरों से होकर गुजरना था. पर गुजरना जरूरी था ताकि मोसुल का सच और पिछले तीन साल से लापता 39 भारतीय बंधकों का सुराग ढूंढा जा सके.

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