
दरिया भी मैं
दरख़्त भी मैं.
झेलम भी मैं
चिनार भी मैं.
दैर हूं
हरम भी हूं.
शिया भी हूं
सुन्नी भी हूं.
मैं हूं पंडित
मैं था
मैं हूं
और मैं ही रहूंगा... (इरफान खान, फिल्म हैदर में)
...लॉकडाउन जब शुरू हुआ था तो पता था कि अब लंबे वक्त तक घर से बाहर निकलना नहीं होगा. तब सोचा था, वो फिल्में देखेंगे जिन्हें देख नहीं पाए पर हमेशा उन्हें ही देखना जरूरी समझा था. जब लिस्ट बनाई तो हासिल, मकबूल ये दो फिल्में थीं इनका नाम सबसे ऊपर लिखा था. अभी दो दिन पहले ही हासिल देखी थी, तिग्मांशु धूलिया का दिमाग और इरफान का काम. इरफान खान ने एक स्टूडेंट लीडर का किरदार निभाया और वो ऐसा कि दिल में बैठ जाए.
एक छोटे कस्बे में जब बड़े हो रहे थे, तब फिल्म आई थी बिल्लू बार्बर. इस फिल्म में बार्बर नाम के चलते बहुत बवाल हुआ था, लेकिन तब इतना पता नहीं था. जब फिल्म देखी तो शाहरुख खान की वजह से देखी थी, लेकिन जब तक अक्ल थोड़ी आई तो पता चला कि वो फिल्म शाहरुख खान के लिए थी ही नहीं, वो तो इरफान खान की फिल्म थी.
कस्बे से निकलकर शहर आना हुआ, पढ़े-लिखे, समझदार लोगों के साथ मिलना हुआ. तो समझ आया कि हीरो और एक्टर एक नहीं होते हैं, एक्टर काफी अलग होता है. जो कला से कायल कर देता है. इन्हीं कलाकारों में इरफान खान का नाम सबसे पहले आता है. उस बंदे के नाम पर हजारों लोगों को पागल होता हुआ नहीं देखते हो, लेकिन उसका होना एक एहसास होता है.
जब इरफान खान दुनिया से गए हैं, तो पता लगा है कि ये एहसास जब जिंदगी से दूर जाता है तो काफी तगड़ा झटका लगता है. लिखने के कामकाज में चार-पांच साल हो गए हैं, लेकिन बहुत कम बार ऐसा होता है जब लिखने से पहले आपकी उंगलियां कांपती हो, इरफान का जाना वही पल था. क्योंकि, वो इंसान पर्दे पर वही कहता था, जो हर कोई सुनना चाहता था.
जब आप किसी कहानी की दरकार में एक फिल्म देखते हो, तो फिल्म शुरू होने के पंद्रह मिनट के भीतर उस किरदार के इर्द-गिर्द घूमने लगते हो. अगर किरदार आपके साथ हो गया, तो बहुत बढ़िया. इरफान खान के साथ यही रहा कि उन्होंने अपनी हर फिल्म के किरदार में थियेटर या घर में बैठे हुए बंदे के कंधे पर हाथ रख बता दिया मैं तो तेरी ही बात कर रहा हूं.
अभी भी इरफान का काफी काम देखना बाकी था, अभी तो यूथ उनके लिए पागल होना शुरू हुआ था. 90’s वाले बच्चे तो उनके कायल थे, लेकिन उसके बाद की पीढ़ियों को पता लगने लगा था कि जादू क्या होता है, आंखों का जादू, बातों का जादू, किरदार का जादू.
असली इरफान खान कलाकार को देखना है, तो किसी भी फिल्म को उठाकर देख सकते हो. हासिल का रणविजय सिंह, मकबूल, पान सिंह तोमर, कारवां, लाइफ इन अ मेट्रो एक-एक करके सभी फिल्मों को गिना जा सकता है. लेकिन कोशिश यही होनी चाहिए कि जिन फिल्मों की ज्यादा चर्चा नहीं हो पाई उन्हें तो जरूर देखा जाना चाहिए.
लॉकडाउन में इरफान की सिर्फ हासिल ही देख पाया, लेकिन काफी कुछ हासिल हो गया उसे देखकर. अभी इरफान को देखना है, बहुत कुछ देखना है. वो मरा नहीं है.. वो जिंदा है... हर उस के दिल में जिसे कला से प्यार है...
कलाकार से प्यार है. हासिल के ये डायलॉग याद कर लो... इरफान ने बहुत कुछ हासिल करवाया है...
“छात्र नेता हैं, मारे साला सीटी दस हज़ार लौंडा इकठ्ठा हो जायेगा, घेर के बैठ जाएगा! फ़िर खाओगे मंत्री जी से गाली तुम” ~ रणविजय सिंह
‘...तुमको याद रखेंगे गुरु हम...आइ लाइक आर्टिस्ट...’ ~ रणविजय सिंह
“एक बात सुन लेओ पण्डित, तुमसे गोली वोली न चल्लई. मंतर फूंक के मार देओ साले…” ~ रणविजय सिंह
अलविदा इरफान खान.
कोई मुझ तक पहुंच नहीं पाता
इतना आसान है पता मेरा
आज मैं ख़ुद से हो गया मायूस
आज इक यार मर गया मेरा
- जौन एलिया