
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की ओर से भारत में SARS-CoV-2 केसों के किए गए पहले विश्लेषण को 30 मई को इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (IJMR) ने प्रकाशित किया. वैज्ञानिकों की एक टीम ने दस लाख से अधिक लोगों का टेस्ट किया और पूरे देश में 22 जनवरी से 30 अप्रैल के बीच 40,000 से अधिक पॉजिटिव केसों का पता लगाया. डेटा से पता चलता है कि भारत कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग में बहुत पीछे है, हालांकि वायरस के प्रसार को काबू में रखने के लिए कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग सबसे अहम रास्ते के तौर पर उभरा है.
डेटा से पता चलता है कि युवा लोगों और पुरुषों में टेस्ट किए जाने की संभावना थोड़ी अधिक थी क्योंकि वो ज्यादा पॉजिटिव आ रहे थे. भारत में कुल मिलाकर 20-29 और 30-39 के आयु वर्गों में बीमारी का सबसे ज्यादा बोझ है. ये विकसित देशों के अनुभव से बड़े विरोधाभास को दिखाता है.
मिसाल के लिए, यूके में, पॉजिटिव केसों की आयु का औसत मान (https://publichealthmatters.blog.gov.uk/2020/04/23/coronavirus-covid-19-using-data-to-track-the-virus/) is 61 years old.) 61 साल है.
अब तक, यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि असल में किसका टेस्ट किया जा रहा है, और उनमें से ICMR के टेस्टिंग मानदंड के मुताबिक पात्र समझे जाने वाले लोगों के किस अनुपात का टेस्ट किया जा रहा है. नया डेटा दिखाता है कि पुष्ट केसों के एसिम्प्टमैटिक (बिना लक्षण वाले) पारिवारिक सदस्यों की टेस्ट किए गए लोगों में सबसे अधिक हिस्सेदारी है (जिनके बारे में जानकारी उपलब्ध है). उनकी हिस्सेदारी जिनके टेस्ट पॉजिटिव आए, उनमें और भी बड़ी है.
अगली बड़ी केटेगरीज पुष्ट केसों के सिम्प्टमैटिक (लक्षण वाले) कान्टेक्ट्स और उन मरीजों की है जिन्हें गंभीर एक्यूट रेसपिरेटरी बीमारी की वजह से अस्पताल में भर्ती कराया गया और जिनका टेस्ट पॉजिटिव आया.
पुष्ट केसों के सिम्प्टमैटिक कॉन्टेक्ट्स और एसिम्प्टमैटिक पारिवारिक सदस्य मिलाकर कुल पॉजिटिव केसों के 65 प्रतिशत बैठते हैं (जिनके लिए डेटा उपलब्ध हैं). राज्यों की ओर से तेज़ी से पहचान और केस आइसोलेट करने के लिए कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग सबसे अहम उपाय हो सकता है.
अब भी राज्यों में पॉजिटिव व्यक्ति के कॉन्टेक्ट्स को टेस्ट करने को लेकर भारी विभिन्नता है. उम्मीद के मुताबिक छोटे राज्य अधिक टेस्ट करने में समर्थ रहे, लेकिन महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे अधिक बोझ वाले राज्य प्रति पुष्ट केस के हिसाब से बहुत कम कॉन्टेक्ट्स को टेस्ट कर रहे हैं. बड़े राज्यों में कर्नाटक ने कॉन्टेक्ट्स के लिए सबसे अधिक जाल बिछाया.
सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि जिन राज्यों ने पुष्ट केसों के कॉन्टेक्ट्स में सबसे कम टेस्टिंग की, वो उन राज्यों में शामिल हैं जहां पॉजिटिव केसों की दर सबसे ऊंची रही है. मिसाल के लिए, महाराष्ट्र ने प्रत्येक पुष्ट केस के लिए सिर्फ दो कॉन्टेक्ट्स का टेस्ट किया. फिर भी जिन का टेस्ट किया गया उन कॉन्टेक्ट्स से 13 प्रतिशत पॉजिटिव निकले.
दूसरी ओर, कर्नाटक ने प्रत्येक पुष्ट केस के लिए 47 कॉन्टेक्ट्स का टेस्ट किया, और उनमें से केवल 1 प्रतिशत पॉजिटिव निकले. इसका मतलब सिर्फ यह हो सकता है कि बड़े बोझ वाले राज्य जो प्रत्येक पुष्ट केस के कुछ कॉन्टेक्ट्स का ही टेस्ट कर रहे हैं, उन्हें केसों की व्यापकता का सही पता लगाने के लिए टेस्टिंग के जाल को बढ़ाना होगा.
इसके अलावा, पॉजिटिव टेस्ट देने वालों में 44 प्रतिशत और सभी टेस्ट देने वालों में से 57 प्रतिशत के ज्ञात केसों से लिंक या तो पता नहीं थे या उन्हें रिकॉर्ड नहीं किया गया. ICMR डेटा दिखाता है कि ट्रांसमिशन के "अस्पष्ट" तरीकों की संख्या बढ़ रही है. यह दक्षिण कोरिया से गहरे विरोधाभास वाली स्थिति है. दक्षिण कोरिया में जहां कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग से पहचान किए जाने के बाद पॉजिटिव टेस्ट देने वाले और सेल्फ क्वारनटीन में रखे जाने वालों में ऱखे जाने वालों की हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी (http://english.hani.co.kr/arti/english_edition/e_national/946378.html) बैठती है. दक्षिण कोरिया के ये आंकड़े वहां के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (KCDC) की ओर से उपलब्ध कराए गए हैं.
बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान समेत कई अहम राज्यों में, टेस्ट किए गए अधिकतर व्यक्तियों की ट्रांसमिशन जानकारी (कहां से उन्हें संक्रमण हुआ हो सकता है) उपलब्ध नहीं है. इसके मायने या तो व्यापक कम्युनिटी ट्रांसमिशन हो सकता है या फिर अधिकारियों की ओर से खराब रिकॉर्डिंग. इनमें से वजह कोई भी हो वो चिंता का विषय है.