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पूरी दुनिया में गरीबों की हालत बेहद चिंताजनक है. संयुक्त राष्ट्र (UN) ने दुनिया से गरीबी मिटाने की अपील की है. UN ने मुताबिक अभी भी करीब 80 करोड़ लोगों के पास दो जून की रोटी का इंतजाम नहीं है. चिंताजनक बात यह है कि इन 80 करोड़ में हर चौथा व्यक्ति भारतीय है. UN ने चेताया कि गरीबी मिटाने के लिए जो भी प्रयास किये जा रहे है वो बहुत सुस्त है. ऐसे ही चलते रहे तो 2030 तक भी गरीबों की आबादी करीब 65 करोड़ से ज्यादा ही रहने वाली है.
कैसे मिटेगी गरीबी?
UN ने गरीबी को मिटाने का पूरा मास्टरप्लान एक रिपोर्ट में बताया. UN के मुताबिक दुनिया के सभी देशों को मिलकर मात्र 267 करोड़ डॉलर ही अगले 15 साल तक खर्च करने हैं. ये रकम दुनिया के सभी देशों की जीडीपी के मुकाबले सिर्फ 0.3 फीसदी ही है. UN ने कहा कि दुनिया से गरीबी मिटाने के लिए ये रकम बहुत कम है.
भारत में गरीबी कैसे मिटेगी?
UN ने दुनिया में गरीबों की सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत की हालत बेहद चिंताजनक बताई. मंगोलिया, नेपाल, अफगानिस्तान सहित दुनिया के तमाम देशों को अरबों डॉलर की सहायता देने वाले भारत को गरीबी मिटाने के लिए हर साल करीब 74 अरब डॉलर खर्च करने है. यह रकम भारत की कुल जीडीपी का महज 2.53 फीसदी ही है जिसे खर्च कर गरीबी जैसे भयानक अभिशाप से मुक्ति मिल सकती है. जिसके मुकाबले भारत अभी मात्र 37 अरब डॉलर ही खर्च कर रहा है.
क्या भूख मिट सकेगी?
भारत में अभी भी करोड़ों लोग खुले आसमान के तले भूखे पेट सोने को मजबूर है. 2011 की जनगणना ही बताती है कि 2001 में सिर्फ स्लम में रहने वालों की संख्या 9.31 करोड़ थी और 2017 तक 10.5 करोड़ हो जाएगी. यह महज भारत की गरीबी की भायावयता का एक पहलू भर है. हेल्थ सेक्टर से लेकर एजुकेशन सेक्टर सबकी हालत कुपोषित जैसी है. भारत की ही गरीबी पर रिसर्च करने वाले स्कोलर्स का कहना है कि भारत में सोशल स्पेंडिंग बहुत कम है और भारत से गरीबी मिटाना अभी दूर की कौड़ी है.