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आज भी समाज में विधवाओं को वो दर्जा नहीं मिलता, जिनकी वे हकदार हैं. आम औरतों के तरह वे समाज में चैन से नहीं रह पातीं. लेकिन ऐसा कब तक चलता, किसी ना किसी को तो आवाज उठानी ही थी. तब विधवा महिलाओं के लिए मसीहा बनकर सामने आए ईश्वर चंद्र विद्यासागर. जिनकी तमाम कोशिशों के बाद विधवा पुनर्विवाह कानून बना. महिलाओं को दूसरा जीवन देने वाले ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म आज ही के दिन 26 सितंबर 1820 को हुआ था . विधवाओं की पैरवी करने वाले को हमारा नमन...
जानें उनके बारे में
ईश्वर चंद्र विद्यासागर के बचपन का नाम ईश्वर चन्द्र बन्दोपाध्याय था.
उन्होंने विधवाओं की दोबारा शादी कराने की पैरवी की.
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साल 1856 में 'विडो रिमैरिज एक्ट XV' को आगे बढ़ाया.
वे उच्चकोटि के विद्वान थे. उनकी विद्वता के कारण ही उन्हें विद्दासागर की उपाधि दी गई थी.
नारी शिक्षा के समर्थक थे. उनके प्रयास से ही कलकत्ता में लड़कियों के लिए कई जगह स्कूलों की स्थापना हुई.
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विधवा महिलाओं को नया जीवन देने के साथ वह बाल विवाह के खिलाफ भी थे. साथ ही सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाकर नारी सम्मान की परंपरा शुरू की.
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उन्हें सुधारक के रूप में राजा राममोहन राय का उत्तराधिकारी माना जाता है. 1856-60 के बीच इन्होंने 25 विधवाओं का पुनर्विवाह कराया था.
उस समय हिन्दू समाज में विधवाओं की स्थिति बहुत ही शोचनीय थी. विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित तो हुआ लेकिन समाज में इसे लागू कराना आसान नहीं था. तब विद्यासागर ने अपने इकलौते पुत्र का विवाह एक विधवा से करवाया था.
विधवा महिलाओं को दूसरा जीवन देने वाले ईश्वर चंद्र विद्यासागर का निधन 29 जुलाई 1891 को हुआ.