Advertisement

कुत्तों को भारतीय कैदियों का खून पिलाते हैं

सरहद मुल्कों का बंटवारा तो करती है, लेकिन नफरत की आड़ में इंसानियत का हैवानियत में बदलना किसी खुफिया एजेंसी की तासीर बन जाए तो उसे क्या कहेंगे. खबर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के बारे में है, जो जेलों में बंद भारतीय कैदियों के साथ न सिर्फ अमानवीय व्यवहार करती है बल्कि उन्हें 'रॉ' का एजेंट बताकर उनके जिंदा शरीर से खून निकालकर खूंखार कुत्तों को पिलाती है.

symbolic image symbolic image
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 दिसंबर 2014,
  • अपडेटेड 2:03 PM IST

सरहद मुल्कों का बंटवारा तो करती है, लेकिन नफरत की आड़ में इंसानियत का हैवानियत में बदलना किसी खुफिया एजेंसी की तासीर बन जाए तो उसे क्या कहेंगे. खबर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के बारे में है, जो जेलों में बंद भारतीय कैदियों के साथ न सिर्फ अमानवीय व्यवहार करती है बल्कि उन्हें 'रॉ' का एजेंट बताकर उनके जिंदा शरीर से खून निकालकर खूंखार कुत्तों को पिलाती है.

Advertisement

जरा सोचिए, जिस खबर को सुनने मात्र से शरीर में सिहरन पैदा होती है उसका दर्द कैसा होगा. लेकिन हैवानियत का खेल यहीं खत्म नहीं होता. आईएसआई के अधि‍कारी भूखे खूंखार कुत्तों को भारतीय कैदियों पर खुला छोड़ देते हैं. फिर जिंदा मांस को नोचने और खसोटने का खेल शुरू होता है. कैदियों को तीन साल तक टॉर्चर सेल में रखकर हर दिन करंट लगाया जाता है. बेदर्दी से पीटा जाता है. खाने में नपुंसक बनाने वाली दवा दी जाती है और कैदियों पर जुल्म की यह इंतहा तब तक जारी रहती है, जब‍ तक कि वह पागल न हो जाए.

अफसोस कि यह दर्द भरी दास्तान किसी मनगढ़ंत कहानी का हिस्सा नहीं है. यह तो पाकिस्तान से शनिवार रात 11:30 बजे अटारी पहुंचे 40 भारतीय कैदियों के जीवन का वह हिस्सा, जिसे वह चाहकर भी नहीं भुला सकते. 'दैनिक जागरण' की खबर के मुताबिक, सभी 40 कैदियों में 35 मछुआरे शामिल हैं. जबकि इनमें से तीन कैदी पागल हो चुके हैं और अपने घर का पता तक नहीं बता सकते.

Advertisement

12 साल का दर्द
पाकिस्तान के जब कैदियों को रिहा किया तो उसे अपनी अच्छी सोच और नीति का उदाहरण बताया, लेकिन कुपवाड़ा के रहने वाले मुबारक हुसैन शाह और उनके साथि‍यों ने जो किस्सा सुनाया वह न तो झेलने के काबिल है और न ही सुनने के. शाह 12 साल बाद रिहा होकर वतन लौटा है. रावलपिंडी जेल में बिताए दिनों को याद करते हुए उसने कहा कि वहां कई बार उसके शरीर से खून निकाला गया. यह खून जेल के खूंखार कुत्तों को पिलाया जाता था और बाद में उन्हीं कुत्तों को भारतीय कैदियों पर छोड़ दिया जाता था. शाह ने बताया कि जेल में उसकी एक टांग भी काट दी गई.

कई कैदियों को नहीं है होश
पाकिस्तान से रिहा होकर वतन वापसी करने वाले एक और कैदी जफरूद्दीन की हालत तो इतनी खराब है कि वह खड़े-खड़े ही पेशाब कर देता है. वह कभी कुर्सी पर बैठता है, कभी कमरे में चलने लगता है. कुछ बोलता नहीं, बस खामोश नजरों से देखता रहता है. वह यूपी के एटा का रहने वाला है. रिहा होकर वापस आए मंगल की याददाश्त खो चुकी है. वह भी कुछ नहीं बोल पाता. सिर्फ अपना नाम नाम मंगल बताता है. कभी अपना घर जामनगर कहता है, तो कहता है यूपी का रहने वाला हूं. योगेश खुद को मध्यप्रदेश के डिंडोरी का निवासी बताता है, लेकिन इसके अलावा उसे कुछ याद नहीं है.

Advertisement

1971 के युद्ध के कैदी हैं बंद
अजमेर शरीफ निवासी मोहम्मद फहीम ने बताया कि पाकिस्तान की जेलों में खाने में ऐसी दवा मिलाई जाती है, जिससे भारतीय कैदियों की मर्दानगी खत्म हो जाती है. पाकिस्तानी जेल से लौटे मुबारक हुसैन शाह ने बताया कि 1971 के युद्ध के भारतीय कैदी पाकिस्तान में मुल्तान और स्वात की जेलों में बंद हैं. इस समय रावलपिंडी जेल में सात कैदी बंद हैं. इनमें पठानकोट के पंकज कुमार, लुधियाना के मुहम्मद असमई, अखनूर के मुहम्मद इकबाल शामिल हैं.

मध्यप्रदेश के जिला सागर के गांव घोस पट्टी का प्रहलाद शर्मा अब पागल हो चुका है. एक लड़का जो खुद को अमृतसर का बताता है, वह गूंगा और बहरा हो चुका है. सलीम मसीह भारतीय तो है, लेकिन उसे अपना शहर याद नहीं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement