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केरल के कासरगोड जिले का पदन्ना गांव खाड़ी से आने वाली रकमों से गुलजार है. बहुमंजिले पक्के बंगले और चमचमाती ऑडी और पजेरो गाडिय़ां इसकी शान बयान करती हैं. डॉ. के.पी. इजास को यहां के बाशिंदे दोस्ताना और ख्याल रखने वाले शक्चस के तौर पर याद करते हैं. 28 वर्ष के डॉ. इजास ने चीन से मेडिसिन की पढ़ाई की थी और इस गांव के स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर काम करते थे. उनकी बीवी रिफिला दंतचिकित्सक थीं और उन्होंने कासरगोड के ही सेंचुरी डेंटल कॉलेज से पढ़ाई की थी. दंपती ने थोड़े वक्त कोझिकोड के तिरुवल्लुर के मेडिकल सेंटर पर भी प्रैक्टिस की थी. उनका 18 महीने का एक बेटा अयान था और दूसरे बच्चे के लिए रिफिला पेट से थीं.
तभी 28 मई को इजास परिवार अचानक गायब हो गया. अगले कुछ दिनों के दौरान पता चला कि उनके कुछ नजदीकी रिश्तेदार भी गायब थे. इनमें इजास का छोटा भाई 24 वर्षीय शिहास और उसकी 22 वर्षीया बीवी अजमला भी थी. अजमला का भी गर्भ अब आखिरी महीनों में था. मुंबई में होटल का कारोबार चला रहा उनका रिश्तेदार 25 वर्षीय अशफाक मजीद, उसकी बीवी 23 वर्षीया शख्सिया और उनकी 18 महीने की बेटी आयशा भी गायब थी.
उनके गायब होने पर गांव के लोगों को पहले तो कोई ताज्जुब नहीं हुआ. मजहबी इजलासों में शामिल होने के लिए वे अक्सर चले जाया करते थे. मगर 9 जुलाई को जब पुलिस पूछताछ करती हुई आई, तब उनके वाल्दैन को शक हुआ कि कुछ न कुछ गड़बड़ है. जल्दी ही सामने आ गया कि ये तीनों दंपती उन 21 लोगों में से थे जो पिछले पखवाड़े के दौरान केरल के इस धुर उत्तरी जिले में अपने-अपने घरों से अचानक गायब हो गए थे. इनमें से ज्यादातर केवल दो गांवों पदक्का और कासरगोड जिले के ही त्रिक्किरिपुर में रहते थे. वैसे तो विभिन्न राज्यों के 40 से ज्यादा हिंदुस्तानी पिछले दो साल के दौरान इस्लामिक स्टेट (आइएस) के नियंत्रण वाले भूभागों में जा चुके हैं, मगर केरल से इस तरह लोगों का जाना एक नए और खतरनाक मोड़ की बानगी है. ऐसा पहली बार हुआ है कि शौहर, बीवियों और बच्चों समेत पूरे के पूरे परिवार आइएस की तथाकथित खिलाफत में चले गए हैं. पांच परिवारों की यह छोटी मगर अहम फरारी इस संगठन की काबिलियत का एक नया अध्याय है कि वह किस तरह सोशल मीडिया के जरिए दूरदराज के इलाकों से भी अपने अनुयायियों को आकर्षित और भर्ती कर सकता है. इस हकीकत की तरफ राज्य सरकार की नींद 8 जुलाई को खुली जब गायब लोगों के परिवारों ने तिरुवनंतपुरम में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को एक दरख्वास्त सौंपी. विजयन ने गांव के लोगों को सलाह दी कि वे स्थानीय पुलिस के पास गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करवाएं. अगर विजयन को धक्का लगा भी तो उन्होंने ऐसा दिखने नहीं दिया. इस खबर ने केरल को उसी तरह झकझोर दिया जिस तरह अक्तूबर 2008 में कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में मल्लापुरम के पांच नौजवानों की हत्या ने झकझोर दिया था. उग्रवादी धड़ों में शामिल होने जा रहे इन पांचों को पाकिस्तान की सरहद लांघते वक्त मार गिराया गया था. हाल के दिनों में यह मान लिया गया था कि राज्य को आइएस के जहरीले फुसलावे से महफूज किया जा चुका है. अभी तक आइएस में भर्ती होने वाले ज्यादातर लोग महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना से हैं. पर अब यह नक्शा बदल चुका है. आइएस में भर्ती होने के लिए कथित तौर पर जो 17 लोग गए हैं, पुलिस को शक है कि वे सभी अकेले कासरगोड के हैं. उन्हें शक है कि दूसरे जिलों से भी और लोग गायब हैं और वे ईरान के रास्ते इराक में दाखिल होने की कोशिश कर रहे हो सकते हैं.
कट्टरपंथ का रास्ता
केरल से जाने वाले लोगों का कच्चा चिट्ठा उन लोगों से मिलता-जुलता है जो ढाका से लेकर लंदन तक से आइएस का रुख करते रहे हैं. ये सभी ऊंची तालीम से लैस मध्यवर्गीय पेशेवर लोग हैं जो पिछले कुछ साल में पता नहीं किन वजहों से अचानक ज्यादा ही मजहबी हो गए. शिहास के चचाजान मुजीब ने इंडिया टुडे को बताया कि उन्हें अपने भतीजे में आए इस बदलाव पर हमेशा से हैरानी होती थी. 24 बरस के शिहास ने बेंगलूरू से बीबीए की पढ़ाई की थी. उसे बतौर नौजवान पश्चिमी संगीत और पार्टियां करना पसंद था. तीन साल पहले मुंबई से लौटने के बाद वह सब बदल गया. मुजीब कहते हैं, ''वह खालिस इस्लाम को मानने की इच्छा की बात करता था और जोर देता था कि परिवार के सदस्य भी उसके मजहबी यकीन के रास्ते पर चलें.'' शिहास ने कोझिकोड के एक इस्लामिक एजुकेशनल ट्रस्ट पीस इंटरनेशनल फाउंडेशन में बतौर मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव काम किया था. यह ट्रस्ट एक स्थानीय कारोबारी चला रहा था. शिहास की बीवी अजमला ने स्पीच थेरेपी में डिप्लोमा किया था और वह भी बराबर से हिजाब पहनने वाली सलफी औरत थी. दंपती ने अपने मजहबी यकीन को मानने वाले लोगों का नजदीकी नेटवर्क बना रखा था और वे मजहबी मजलिसों और चर्चाओं में शामिल होते रहते थे. मुंबई में गेस्ट हाउस चलाने वाले इजास के वालिद परमवत अब्दुल रहमान कहते हैं, ''मगर उन्होंने हमें कभी नहीं बताया कि वे कहां जाते थे और क्या करते थे.''
जाने वालों में इजास का परिवार सबसे पहला था. उसने अपनी मां से कहा कि उसे श्रीलंका में नौकरी मिल गई है. दो दिन बाद शिहास ने अपने मां-बाप को बताया कि उसे लक्षद्वीप में नौकरी मिल गई है और उसे अपने परिवार के साथ जाना होगा. उनके जाने के बाद उनसे कोई संपर्क नहीं हुआ. इजास और शिहास ने अपनी आंटी के बेटे अशफाक और उसके परिवार को भी अपने साथ शामिल होने के लिए कथित तौर पर तैयार कर लिया. कॉमर्स ग्रेजुएट अशफाक मुंबई में एक होटल चलाने में अपने पिता की मदद करता था. उसकी बीवी शख्सिया कोयंबतूर से माइक्रोबायोलॉजी में ग्रेजुएट थी.
तीनों परिवारों ने पश्चिम एशिया पहुंचने के लिए अलग-अलग रास्ते पकड़े. शिहास और अजमला 24 मई को बेंगलूरू से मस्कट, ओमान के लिए कुवैत एयरवेज की उड़ान में सवार हुए. इजास और उसके परिवार ने 3 जून को मुंबई से ओमान होते हुए 27 जून को तेहरान पहुंचने के लिए उड़ान भरी. अशफाक और शख्सिया ने भी इसी मंजिल के लिए मुंबई से उड़ान ली.
इसी गांव के पड़ोसी घरों में भी इसी से मिलती-जुलती कहानी घट रही थी. 3 जुलाई को खदीजा अब्दुल हकीम को अपने बेटे हफीजुद्दीन के एक के बाद एक कई एसएमएस मैसेज मिले. वह छह दिनों से गायब था. मैसेज पढ़कर उनकी हड्डियों में कंपकंपी दौड़ गई. एक मैसेज में हफीजुद्दीन ने कहा था, ''अल्लाह के फजल से मैं आखिरकार अपनी मंजिल पर पहुंच गया हूं.'' उसने बुरी ताकतों के खिलाफ आइएस की लड़ाई की तारीफ की और अपनी नवविवाहिता बीवी को अपने साथ शामिल होने के लिए बुलाया. खदीजा ने फौरन अपने पति अब्दुल हकीम को इत्तिला दी. 54 वर्षीय हकीम अबु धाबी में वर्कशॉप चलाते हैं.
हफीजुद्दीन ने अपना हायर सेकंडरी का इम्तहान अबू धाबी से ही पास किया था, जहां उसके पिता 30 साल से अपना कारोबार चला रहे थे. उसका कायापलट केरल लौटने के बाद शुरू हुआ. खासकर जब वह अपने पड़ोसी इजास के संपर्क में आया. अपने बेटे के कट्टरपंथ के फेर में पडऩे के लिए हकीम डॉक्टर को कसूरवार ठहराते हैं. वे कहते हैं, ''मैं खुद को कोसता हूं कि उसे बचा नहीं पाया. वह मेरे पड़ोसी डॉ. इजास और उसके भाई के बहुत नजदीक था.'' तीन साल पहले हकीम का ध्यान अपने बेटे में आ रहे बदलाव पर गया था. वह बेहद मजहबी हो गया था और उसने अपने वालिद को सलाह दी कि अपना कारोबार बंद करके 'असल मुसलमान' की जिंदगी बसर करें. वह अपनी वालिदा और बहन के फिल्में या टेलीविजन देखने से नफरत करता था. उसके वालिद ने इन बदलावों को 'जवानी का आदर्शवाद' मानकर अनदेखा कर दिया.
घर पर अकेलेपन से घिरे हफीजुद्दीन का कभी कारोबार या काम करने में दिल नहीं लगा. उसका अकेला जज्बा मजहबी किताबें पढऩा और अपने पड़ोसियों के साथ पवित्र कुरान के बारे में बातें करना था. वह एक बंद घेरे का सदस्य था जो कोझिकोड में पीस इंटरनेशनल फाउंडेशन के मजहबी इजलासों में शरीक हुआ करता था. उसने अपने मां-बाप की इच्छा मानकर इस मार्च में ही पड़ोसी गांव की एक लड़की से निकाह किया था. निकाह के लिए उसने दाढ़ी बनवाने या महंगे कपड़े पहनने से भी इनकार कर दिया था. उसके मां-बाप खुशी-खुशी तैयार हो गए, इस उम्मीद के भरोसे कि वह बदल जाएगा. अब बुरी तरह मायूस उसके वालिद कहते हैं, ''मेरी त्रासदी दूसरे मां-बाप के लिए सबक है. अगर मेरा बेटा आइएस में शामिल हो चुका है, तो मैं उसे दोबारा देखना नहीं चाहता, चाहे जिंदा या मुर्दा.''
कट्टरपंथ के निशाने पर
परिवार जहां अपने रिश्तेदारों की उतावली से भरी उड़ानों से साबका बिठाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने जांच शुरू कर दी है. वे यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि उन्हें भर्ती करने वाले कौन लोग थे जिनके वे सीधे संपर्क में थे, उन्होंने आइएस के कब्जे वाले इलाकों में दाखिल होने की योजना कैसे बनाई.
ये परिवार मजहबी इजलासों और चर्चाओं का आयोजन करने वाले एक गुट से लंबे समय से जुड़े थे. कन्नूर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक देनेंद्र कश्यप ने इंडिया टुडे से कहा, ''वे कुलीन पृष्ठभूमि के इज्जतदार लोग थे. यह उमरा का वक्त है और इस वक्त मजहबी यात्राओं के लिए देश से जाने वाले लोगों की छानबीन कर पाना मुश्किल है.'' इस गुट की अचूक योजना और तैयारी से पुलिस भी हैरान है. केरल से गायब 11 लोगों के बारे में पता चला है कि वे तेहरान में हैं.
खुफिया एजेंसियों ने कम से कम एक और नौजवान को हिरासत में लिया है जो आइएस के इलाके में जाने की कोशिश कर रहा था. पीस इंटरनेशनल फाउंडेशन के पूर्व कर्मचारी फिरोज खान को सेंट्रल मुंबई के डोंगरी से 11 जुलाई को पकड़ा गया. पुलिस उसके मोबाइल फोन से जरिए उसका पीछा करते हुए मुंबई पहुंची. वह इराक के सफर के लिए 27 जून को पदन्ना में अपने घर से रुखसत होने वाला आखिरी शख्स था.
पुलिस को शक है कि इन तीनों परिवारों की गतिविधियां पीस इंटरनेशनल फाउंडेशन के इर्दगिर्द घूमती थीं. इस गुट की अगुआई कासरगोड के त्रिक्किरिपुर के एक 31 वर्षीय इंजीनियर अब्दुल राशिद अब्दुल्लाह के हाथ में थी. राशिद, उसकी बीवी आयशा और शिहास फाउंडेशन में काम करते थे. निमिशा उर्फ फातिमा की वालिदा बिंदु बताती हैं कि जब वह डेंटल कॉलेज में पढ़ती थी तब राशिद और शिहास उसके संपर्क में थे. बिंदु ने इंडिया टुडे से कहा, ''जब मेरी बेटी नवंबर 2015 में कॉलेज से गायब हो गई, तब मैं राशिद के पास गई और उससे पूछा कि मेरी बेटी कहां है. मुझे बताया गया कि उसने मजहब बदल लिया है और बेक्सन विंसेंट उर्फ ईसा से निकाह कर लिया है.''
पुलिस जांच से खुलासा हुआ है कि राशिद मजहब बदलकर इस्लाम अपनाने वाली औरतों की मदद करता था. यह गुट पेशेवर कॉलेजों में छात्र-छात्राओं के बीच काम करता था और कमजोर छात्र-छात्राओं के बारे में जानकारी इक्ट्ठा करता था. एक पुलिस अफसर कहते हैं, ''उनकी कारगुजारियां कभी पुलिस की छानबीन में नजर नहीं आईं, क्योंकि उनका कोई पुलिस रिकॉर्ड नहीं था.''
तीनों दंपती राशिद के संपर्क में थे. पुलिस मानती है कि राशिद एक कट्टरपंथी था जो आइएस के लिए गुपचुप भर्तियां कर रहा था. ओमान में शुरुआती पढ़ाई के बाद उसने केरल में पाला से कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. यहीं उसे अपनी बीवी सोनिया सेबस्टियन मिलीं, जो एर्णाकुलम की ईसाई थीं और इस्लाम अपनाकर उन्होंने अपना नाम आयशा रख लिया. राशिद और उसका परिवार जाहिरा तौर पर मुंबई में नया कारोबार शुरू करने के लिए 28 मई को घर से रुखसत हुए.
उसके वालिद टी.पी. अब्दुल्लाह कहते हैं कि उन्होंने अपने बेटे को बुनियादी पूंजी के तौर पर 1 लाख रुपए दिए थे. राशिद ओमान में ऊंचे पैसे की नौकरी छोड़कर चार साल पहले केरल लौट आया था और एर्णाकुलम की एक निजी कंपनी में काम करने लगा था. इसे भी छोड़कर उसने महज 30,000 रुपए की तनख्वाह पर फाउंडेशन के प्रशासनिक अधिकारी की नौकरी संभाल ली. उसकी बीवी ने सॉक्रटवेयर इंजीनियर की तालीम हासिल की थी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम किया था. मगर फिर भी फाउंडेशन में कम तनख्वाह की मुदर्रिस या शिक्षक की नौकरी स्वीकार कर ली. एक वरिष्ठ पुलिस अफसर कहते हैं, ''अपने गांव में ही रहने के पीछे इस दंपती के गुप्त इरादे थे... यह उनके लिए आड़ थी.''
नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ कन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अजय साहनी कहते हैं कि अगर गैरमामूली या फौरन खतरा न हो, तब भी इस तरह लोगों का जाना 'गहरी चिंता की बात है.' वे कहते हैं, ''इनमें से किसी भी शख्स के पास व्यापक आतंक की असरदार कार्रवाई की क्षमता, रुझान या सीख नहीं है.'' फिक्र की बात यह है कि अगर इनमें से कुछ लोग आइएस का प्रशिक्षण हासिल करके अपने नए हासिल हुनर के साथ किसी तरह भारत लौटने में कामयाब हो जाते हैं तो क्या होगा.
इस बीच केरल सरकार जांच का काम राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को सौंपने की योजना बना रही है. इन लोगों के खिलाफ आइएस से संपर्क के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है. नई दिल्ली स्थित एनआइए के एक अफसर कहते हैं, ''इन लोगों का मकसद खिलाफत कही जाने वाले एक वर्जित आतंकी संगठन का हिस्सा बनना था. इसलिए इन पर सीधे-सीधे यूएपीए की धाराएं लागू होती हैं.''
राज्य सरकार की पुरजोर कोशिश है कि मामले को ज्यादा तूल न दिया जाए. उसने अभी तक केवल लोगों की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज की है. मुख्यमंत्री विजयन ने 11 जुलाई को विधानसभा में कहा कि कुछ नौजवानों के अपने घरों से गायब हो जाने के बाद मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने की कोशिशें हो रही हैं.
पुलिस ने देश भर में लोगों को कट्टरपंथ के फेर में पडऩे से बचाने की मुहिम चला रखी है. इसके तहत वे परिवारों से कह रहे हैं कि वे अभी भी अपने बच्चों को बचा सकते हैं. कश्यप कहते हैं, ''उन्हें अपने बच्चों पर निगाह रखनी चाहिए और शिक्षकों को भी इतना संवेदनशील बनाया जाना चाहिए कि वे छात्रों के व्यवहार में आ रहे बदलावों को पहचान सकें.'' वे यह भी कहते हैं, ''हम बांटने वाली ताकतों के खिलाफ केवल समाज की सहायता से ही लड़ सकते हैं. हमें समाज की सहायता से खुफिया सूचनाएं जुटाने की रणनीति तैयार करने की जरूरत है. तभी हम भविष्य में इस किस्म की घटनाओं को होने से रोक सकेंगे.'' एक और बड़े पुलिस अफसर कहते हैं, ''वे देश छोड़कर चले गए अच्छा हुआ. मगर उनका असर इस सूबे में हमेशा रहने वाला है. इसकी वजह से समुदाय के ऊपर संदेह की छाया मंडराती रहेगी.'' यह बेशक अपशकुनी छाया है जिसके लंबे होते जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.