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चेहलुम के मौके पर हमला कर सकता है ISIS

बीते सालों में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के बढ़ते हमलों की वजह से अब लोगों में डर बस गया है. अरबाइन के नाम से भी पहचाने जाने वाला यह धार्मिक अवसर शिया समुदाय से संबंधित है. आईएसआईएस इस्लामिक स्टेट सुन्नी आतंकियों का संगठन है. इस मौके को इस्लामिक स्टेट अपनी अवहेलना मानता रहा है.

लव रघुवंशी
  • नई दिल्ली,
  • 03 दिसंबर 2015,
  • अपडेटेड 10:51 AM IST

आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के खतरे का असर कर्बला की यात्रा पर भी नजर आने लगा है. दुनिया भर से लाखों लोग अपनी जान को जोखिम में डाल कर चेहलुम के लिए इराक के कर्बला पहुंचे हैं. चेहलुम इमाम हुसैन की मौत के 40वें दिन शोक के रूप में मनाया जाता है.

बीते सालों में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के बढ़ते हमलों की वजह से अब लोगों में डर बस गया है. अरबाइन के नाम से भी पहचाने जाने वाला यह धार्मिक अवसर शिया समुदाय से संबंधित है. आईएसआईएस इस्लामिक स्टेट सुन्नी आतंकियों का संगठन है. इस मौके को इस्लामिक स्टेट अपनी अवहेलना मानता रहा है.

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आईएसआईएस ने बीते सालों में बड़ी संख्या में शिया मुसलमानों को मौत के घाट उतारा है और कई बार सालाना होने वाले इस मौके को अपने धमाकों से दहलाने की धमकी भी दी है.

हज से ज्यादा लोग जुटते हैं चेहलुम में
चेहलुम के दौरान हज से भी बड़ा जमावड़ा देखने को मिलता है. बीते साल मक्का-हज की यात्रा के लिए 20 लाख लोग गए थे. वहीं चेहलुम के मौके पर कुल 2 करोड़ लोग जुटे थे. यह इराक की कुल जनसंख्या का 60 प्रतिशत है. यह आंकड़ा हर साल बढ़ता ही जा रहा है.

अरबाईन पूरी तरह शिया मुसलमानों से संबंधित है. लेकिन इसमें कुछ सुन्नी और इसाई भी हिस्सा लेते हैं. इस मौके पर लोग पैदल चलकर नजफ से करबला तक के 80 किलोमीटर का रास्ता तय करते हैं. कुछ लोग बसरा बंदरगाह से 684 किलोमीटर का रास्ता भी पैदल चल के पूरा करते हैं.

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वर्चस्व की लड़ाई में बंटे शिया-सुन्नी
सुन्नी-शिया मुसलमानों का अलगाव 632 ईसा पूर्व पैगंबर मोहम्मद की मौत के बाद हुआ था. इसकी मुख्य वजह सत्ता हासिल करना था. हालांकि दोनों ही समूह कुरान में विश्वास करते हैं. यह तीर्थस्थान इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन के शासनकाल में बंद कर दिया गया था लेकिन 2003 के बाद इसे फिर से शुरू कर दिया गया.

लोगों में खौफ के साथ उत्साह भी
बीते सालों में आईएसआईएस ने इस मौके पर आत्मघाती यहां तक की रॉकेट से भी हमले किए हैं. इससे कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. इसके बावजूद लोगों में इस यात्रा को लेकर उत्साह कम नहीं हुआ है. जम्मू-कश्मीर के रफाकत अली के मुताबिक वे और उनके कई भारतीय साथी इस यात्रा पर जा रहे हैं. साथियों के सहयोग से उनकी यह यात्रा आसान होगी. उनके मुताबिक यात्रियों में इतना उत्साह है कि एक 100 साल का बुजुर्ग भी युवाओं से तेज चल रहा है.

सुरक्षा-व्यवस्था की बद से बदतर होती स्थिति के बावजूद इस साल भी तीर्थयात्रियों के हुजूम का करबला पहुंचने की संभावना है.

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