
अगस्त की 11 तारीख को केरल पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया, जो एक 21 वर्षीया लड़की को एक अजीबोगरीब किस्म के काम के लिए नियुक्त कर रहे थे. उसे यमन जाकर इस्लामिक स्टेट के (आइएस) सैनिक के तौर पर लड़ाई करनी थी. पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआइ) नाम के संगठन के मुस्लिम धर्मार्थ ट्रस्ट 'सत्यसरणी' की स्वयंसेवकों 38 वर्षीया शीना फरजाना और 28 वर्षीय नासिर को उस 21 वर्षीया लड़की (नाम नहीं बताया जा रहा) के अपहरण के आरोप में पलक्कड़ जिले के चेरपुलस्सरी शहर से गिरफ्तार किया गया.
पुलिस का कहना है कि महिला हिंदू थी, जिसे मलप्पुरम जिले के पेरिंथलमन्ना में एक निजी कंपनी में काम करने के दौरान इस्लाम धर्म अपनाने के लिए फुसलाया गया. अधिकारियों के अनुसार लड़की को फुसलाने का काम सबसे पहले पेरिंथलमन्ना के पी. नौफल (जो अब यमन में है) ने किया. उसके बाद नासिर आगे आया, जो सत्यसरणी के दावा दस्ते का सक्रिय सदस्य है.
त्रिशूर के आइजीपी ए.आर. अजित कुमार कहते हैं, ''दरअसल, नौफल ने लड़की को विश्वास दिलाया था कि एक सच्चे मुसलमान की तरह जिंदगी जीने और इस्लाम के लिए लडऩे से ही आदमी को स्वर्ग मिलता है.''
राज्य पुलिस ने इंटरपोल को राज्य में आइएस के लिए की जा रही भर्र्ती के संबंध में नौफल की भूमिका के बारे सतर्क कर दिया है. लेकिन इस तरह के बढ़ते मामले पिछले कुछ हफ्तों से राज्य भर में चर्चा का विषय बन गए हैं. इसकी शुरुआत इस साल जुलाई में 21 लोगों के सनसनीखेज तरीके से लापता होने से हुई थी. पांच परिवारों के सदस्य (सभी एक-दूसरे से परिचित थे) उत्तरी केरल के अपने घरों को छोड़कर ईरान के लिए हवाई जहाज पर सवार हुए. माना जाता है कि उन्होंने अफगानिस्तान में आइएस नियंत्रित क्षेत्र को पार किया. उनमें से 23 वर्षीय निमिषा हिंदू थी, जो तिरुवनंतपुरम से थी और डेंटिस्ट बनने के लिए पढ़ाई कर रही थी. उसने इस्लाम धर्म अपना लिया था. अपना नाम बदलकर फातिमा रख लिया था और बेक्स्टन से शादी कर ली थी. कैथलिक बेक्सटन 2015 में धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बन चुका था. उसकी मां के. बिंदू को 28 मई से उसकी कोई खबर नहीं मिली थी, जबसे वह घर छोड़कर निकली थी. उसने इंडिया टुडे को बताया कि ''मुझे नहीं पता कि मेरी बेटी कहां है. मैं बस इतना चाहती हूं कि वह सही सलामत घर वापस आ जाए.''
इस तरह की कई कहानियों को केरल के शहरी 'लव जेहाद' के तहत एक नई और खतरनाक चाल के तौर पर 'बहला-फुसलाकर' इस्लाम धर्म कबूल करवाने के मामलों के रूप में देखा जा रहा है. इस सिलसिले में पुलिस ने कार्रवाई की. 4 अगस्त को गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत, जो आमतौर पर आतंकवादी संगठनों के लिए बनाया गया है, 'आइएसआइएस 21' को दोषी ठहराया गया. राज्य की खुफिया शाखा ने धर्म परिवर्तन पर एक रिपोर्ट तैयार की है. इंडिया टुडे को हासिल उस रिपोर्ट की प्रति में लिखा है कि 2011 से 2015 तक राज्य में 5,975 लोगों ने धर्म परिवर्तन किया, जिसमें से 1,410 तो पिछले साल का ही आंकड़ा है. नए मुसलमानों में करीब 76 फीसदी निमिषा की तरह 35 से कम उम्र की महिलाएं हैं. इस साल जनवरी-फरवरी में 224 हिंदुओं और 60 ईसाइयों ने इस्लाम कबूल किया यानी प्रति दिन तीन व्यक्ति की दर से.
ऐसे ज्यादातर मामलों की पहले कोई जांच-पड़ताल ही नहीं होती थी क्योंकि मां-बाप की ओर से दायर याचिका अदालत में खारिज हो जाने के बाद घरवाले कोई शिकायत नहीं करते थे. हाल के मामले में 21 वर्षीया लापता लड़की मल्लापुरम जिले के चेरनी गांव स्थित सत्यसरणी ट्रस्ट के परिसर में मिली. जब उसे 15 जुलाई को हाइकोर्ट में पेश होने के लिए कहा गया तो उसने इस्लाम अपनाने की इच्छा जाहिर की. अदालत ने उसे एक हॉस्टल में रखने का निर्देश दिया. 5 अगस्त को जब वह कोर्ट में दोबारा पेश हुई तो उसने कहा कि वह अपने मां-बाप के पास लौटना चाहती है.
इन धर्मांतरित लोगों में से अब तक बहुत कम ही लोग आइएस से जुड़े निकले हैं. लेकिन इनमें से कुछ के स्लीपर सेल का हिस्सा बनने के अंदेशे से सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ी हुई है. सुरक्षा अधिकारियों का यह भी मानना है कि धर्मांतरण के जितने मामले सामने आए हैं, हकीकत में उनकी संख्या अधिक हो सकती है.
अधिकारियों का कहना है कि बदले की भावना से ग्रस्त इस्लाम को बढ़ावा देने वाले नव-सलफीवाद ने राज्य में जड़ें जमा ली हैं. खुद को 'दम्मज सलफी' कहने वाले एक समूह ने मल्लापुरम के निलाम्बुर में अपनी अलहदा दुनिया बसा रखी है. अमेरिका के एक परंपरावादी ईसाई समुदाय एमिश की तरह ये आधुनिक टेक्नोलॉजी से दूर आदिम जीवन बिताते हैं. लापता 'आइएसआइएस 21' के पांच सदस्य इसी विचारधारा को मानने वाले थे और उन्होंने श्रीलंका के एक सलफी केंद्र से धार्मिक शिक्षा भी ले रखी थी.
एक चिंताजनक पहलू यह है कि नव-धर्मांतरित लोगों में ज्यादातर संपन्न परिवारों से हैं और उनके पास पेशेवर डिग्री है या फिर वे प्रोफेशनल कॉलेजों में पढ़ रहे हैं. पुलिस का कहना है कि 'आइएसआइएस 21' की जांच-पड़ताल के दौरान उसे निश ऑफ ट्रूथ, पीस एजुकेशन फाउंडेशन और जाकिर नाइक के इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आइआरएफ) जैसे संगठनों की आड़ में धर्मांतरण करवा रहे नेटवर्क की जानकारी मिली. संयोग से, 3.33 करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में मुसलमान 26.56 फीसदी हैं और यहां के लिए धर्मांतरण कोई नई चीज नहीं. लेकिन पुलिस का कहना है कि ये नए संगठन धर्मांतरण के खेल को ज्यादा चतुराई से खेल रहे हैं. ये तकनीक के जानकार हैं और अपने संगठन में लोगों की भर्ती की मंशा लिए व्यावसायिक कॉलेजों में पढ़ रही अन्य धर्मों की महिलाओं को निशाना बनाते हैं.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं, ''निमिषा, मेरिन जैकब और अपर्णा विजयन जैसी हाल की घटनाएं 'कैंपस भर्र्ती' के एक पैटर्न को दिखाती हैं, जिनमें शिक्षित ईसाई और हिंदू महिलाओं को निशाना बनाया गया.''
सत्यसरणी ट्रस्ट पर पुलिस की नजर हाल में उस वक्त पड़ी जब एक विधवा रक्षा अधिकारी की बेटी 21 वर्षीय अपर्णा विजयन तिरुवनंतपुरम स्थित अपने हॉस्टल से गायब हो गई. उसने इस्लाम अपना लिया था और नाम बदलकर शाहाना रख लिया था. उसने ऑटोरिक्शा चलाने वाले सियाद से शादी भी कर ली थी. उसकी मां मिनी विजयन की शिकायत के बाद 30 मार्च को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (हैबिअस कॉर्पस) के तहत अपर्णा अदालत में पेश हुई. उसके साथ सुमैया थी, जो सत्यसरणी में काम करती है. अपर्णा ने बताया कि उसने अपनी मर्जी से धर्म बदला है.
सथ्यसरणी ट्रस्ट के निदेशक और इस्लामी विद्वान टी. अब्दुल रहमान बकवी संस्था का किसी भी गैरकानूनी गतिविधि से जुड़ाव होने से इनकार करते हैं. इंडिया टुडे से बातचीत में उन्होंने कहा, ''हम कानूनी दायरे में काम करते हैं और किसी भी सरकारी एजेंसी की जांच के लिए तैयार हैं. अगर हम धर्म का प्रचार करते भी हैं तो इसमें क्या गलत है? हमारा संविधान अभिव्यक्ति और किसी भी धर्म को मानने की आजादी देता है.'' इस संस्था के केरल में 500 स्वयंसेवकों की मजबूत दावा टीम है. ट्रस्ट की वेबसाइट कहती है कि उनका संगठन नव-धर्मांतरितों का भावनात्मक और सामाजिक तौर पर समर्थन करता है. बकवी के मुताबिक, वे ऐसे लोगों का ही धर्मांतरण कराते हैं, जो उचित दस्तावेजों के साथ अपनी मर्जी से उनके पास आते हैं. हालांकि पुलिस इससे सहमत नहीं. एक पुलिस अधिकारी कहते हैं, ''धर्मांतरण एक समूह द्वारा कराया जा रहा है, जो एक वैश्विक नेटवर्क का हिस्सा है. हमें संदेह है कि यह समूह गुप्त एजेंडे के साथ काम कर रहा है—गैर मुसलमानों के बीच इस्लाम का बखान करके उन्हें कट्टर मुसलमान में परिवर्तित करना.'' बकवी ने इन आरोपों का खंडन करते हुए स्पष्ट किया कि उनका संगठन आइएस और आतंकी गतिविधियों के खिलाफ है. वे कहते हैं, ''हम पिछले 18 सालों से यहां काम कर रहे हैं लेकिन अब मीडिया का एक वर्ग और कट्टर हिंदूवादी ताकतें हमें निशाना बना रही हैं.''
पुलिस कहती है कि लापता लोगों से जुड़े ज्यादातर मामलों की तफ्तीश इन धार्मिक केंद्रों तक जाकर ठहर जाती है. एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ''जब हम इन केंद्रों पर छापे मारते हैं, ये लड़की को अदालत में पेश कर देते हैं और सार्वजनिक बयान जारी कर दिया जाता है कि लड़की ने अपनी मर्जी से इस्लाम कबूल की. अगर कोई अपराध नहीं तो पुलिस की कोई भूमिका नहीं.'' लापता हो गई ज्यादातर महिलाओं की नियति उन्हें बुर्के के पीछे कैद कर देती है. उनके परिवार वाले उन्हें खोज नहीं पाते और उन्हें मृत मान लिया जाता है. ये महिलाएं भी अपनी सारी पुरानी पहचान मिटा देती हैं. इनके नाम बदल जाते हैं, पासपोर्ट नष्ट कर दिए जाते हैं और पुराने दस्तखत तक बदल दिए जाते हैं. लिहाजा सुरक्षा एजेंसियों को उन्हें ढूंढने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
28 जुलाई को केरल पुलिस ने जाकिर नाइक के आइआरएफ में गेस्ट रिलेशनशिप ऑफिसर अरशद कुरैशी और एक अन्य शख्स रिजवान को मुंबई से गिरफ्तार किया. इनकी गिरफ्तारी कोच्चि में दर्ज एक एफआइआर के आधार पर हुई थी, जो मेरिन जैकब के भाई एबिन जैकब ने अपने बहनोई याहया (आइएसआइएस 21 में से एक) के साथ गायब हो जाने पर कराई थी. उसमें आरोप था कि मेरिन का कुरैशी और बेस्टिन विन्सेंट उर्फ याहया ने जबरन धर्मांतरण करवाया. मामले की रिमांड रिपोर्ट में कहा गया कि इन दोनों ने सितंबर, 2014 में मेरिन का धर्मांतरण कराया और उसे आइएस में शामिल कराया. तीसरे आरोपी 53 वर्षीय रिजवान ने कथित तौर पर मेरिन के धर्मांतरण और उसके निकाह में अहम भूमिका निभाई थी.
कोच्चि रेंज के पुलिस महानिरीक्षक एस. श्रीजीत कहते हैं, जांच में पाया गया है कि अरशद ने पिछले तीन साल के दौरान मुंबई में करीब 800 लोगों के धर्मांतरण में सक्रिय भूमिका निभाई और 113 निकाह कराए. अब केरल पुलिस राज्य में हाल में हुई धर्मांतरण की घटनाओं में आइआरएफ की भूमिका की जांच कर रही है. अधिकारियों का कहना है कि इसी मामले में वे करीब 10 संगठनों (निश ऑफ ट्रूथ, सत्यसरिणी, पीस फाउंडेशन ट्रस्ट, कोच्चि और कोझिकोड के सलफी केंद्रों सहित) को मिलने वाले पैसे के स्रोत की पड़ताल भी कर रहे हैं. इस बीच, इस मामले से जुड़ी एक और कड़ी हाथ लगी, जब उत्तरी केरल के कासरगोड़ जिले की पुलिस ने लापता लोगों की जमात में शामिल होने के लिए हवाई मार्ग से काबुल जाने की कोशिश करती बिहार के सीतामढ़ी जिले की 29 वर्षीय यास्मीन को गिरफ्तार करने में सफलता पाई. यास्मीन ने पिछले दिसंबर तक पीस इंटरनेशनल फाउंडेशन के तीन केंद्रों में काम किया था. कासरगोड़ के त्रिकरपुर गांव के अब्दुल राशिद से उसके करीबी रिश्ते थे, जिसने 'आइएसआइएस 21' को विदेश जाने में मदद की थी और तभी से परिवार सहित लापता है.
इस्लामी मामलों के जानकार और पीस इंटरनेशनल स्कूल के प्रबंध ट्रस्टी एम.एम. अकबर अपने कर्मचारियों की आइएस के साथ मिलीभगत से हैरान हैं. अकबर इंडिया टुडे से बातचीत में कहते हैं, ''मैंने हमेशा इस्लाम के भीतर की कट्टरता के खिलाफ आवाज बुलंद की है. अब्दुल राशिद हमारे संगठन में शिक्षक तैयार करने वाला एक काबिल प्रशिक्षक था, लेकिन हमें उसके आइएस से रिश्तों की भनक तक नहीं थी.'' लेकिन पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी की इस मामले पर कड़ी नजर है.
राज्य योजना बोर्ड के सदस्य और केरल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. बी. इकबाल इसके लिए केरल में इस्लाम पर 'सऊदी अरब के प्रभाव' को दोषी ठहराते हैं. वे कहते हैं, ''केरल के समाज में सांप्रदायिक सद्भाव के साथ रहने की समृद्ध प्रगतिशील परंपरा थी. लेकिन यह कवच तेजी से कमजोर हो रहा है.''
केरल में पिछले कुछ समय से धर्मांतरण के मामले चर्चा में हैं. 2009 में शाहान शा मामले में तो केरल हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति के.टी. शंकरन ने 'जबरन धर्मांतरण' को अपराध ठहराने के लिए राज्य सरकार को उचित कानून बनाने पर विचार करने का निर्देश तक दे दिया था. पुलिस महानिदेशक जैकब पुन्नूस की अदालत में पेश रिपोर्ट में केरल की शिक्षण संस्थाओं में 'लव जेहाद' जैसी किसी चीज से इनकार किया गया है. जाहिर है, अदालत की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया गया है.