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इतालवी नौसैनिक: इटली झुका या भारत

इटली के नौसैनिकों को वापस अपने देश जाने देकर यूपीए सरकार ने जाने-अनजाने एक गंभीर गलती कर डाली जो सुधरती नजर आ रही है. लेकिन ये नौसैनिक जिन शर्तों पर लौट रहे हैं, उस पर उठे सवाल.

धीरज नय्यर
  • नई दिल्‍ली,
  • 03 अप्रैल 2013,
  • अपडेटेड 10:11 AM IST

जब अर्जेंटीना के पादरी पोप फ्रांसिस को 19 मार्च को पोप की गद्दी पर बैठाया गया तो यह दिन दुनिया के 1.2 अरब रोमन कैथोलिकों के लिए खास था. उन्होंने गरीबों का चर्च बनाने की उदार अपील के साथ अपना कार्यकाल शुरू किया. वेटिकन के सेंट पीटर्स स्कवायर में हुए समारोह में पोप को आधिकारिक प्रतीक चिन्ह भेंट किए गए जिसमें मछुआरों की अंगूठी भी शामिल थी. उधर, सुदूर कन्याकुमारी में अरब सागर और ताम्रपर्णी में स्थित एक छोटे से गांव इरैमंतुरै में गरीब और कैथोलिक आबादी के बीच मातम पसरा था क्योंकि उनके 25 वर्षीय साथी अजेश पिंक की पहली बरसी थी.

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अजेश उन दो मछुआरों में एक था जिन्हें इटली के नौसैनिकों ने 15 फरवरी, 2012 को गोली मार दी थी. यहां के लोग इनके भारत वापस न लौटने की बात पर गुस्से में थे और भारत सरकार से कहीं ज्यादा नाराज कि उसने इन्हें जाने क्यों दिया.

यहां से 125 किलोमीटर दूर कोल्लम के एक गांव मुडक्कल में ऐसा ही गुस्सा रोमन कैथोलिक मछुआरों के बीच दिखा. दूसरा मारा गया मछुआरा 46 वर्षीय वैलेंटीन जेलास्टिन यहीं का रहने वाला था. उसे भी नौसैनिकों ने केरल के समुद्र में अपने जहाज एनरिका लेक्सी से गोली मार दी थी. इस घटना का प्रभाव त्रासद है.

पिंक की दो छोटी बहनों में एक 18 वर्षीया अभिनया कहती हैं, ‘‘हमारे माता-पिता कुछ साल पहले गुजर गए थे और हमारा भाई घर में इकलौता कमाने वाला था.’’ जेलास्टिन की विधवा डी. डोरा कहती हैं, ‘‘सरकार और अदालतें भले हत्यारों को छोड़ दें, लेकिन भगवान जरूर उन्हें सजा देगा.’’ डोरा को नौकरी मिली है. इटली सरकार के एक करोड़ रु. के मुआवजे के अलावा केरल सरकार ने उन्हें पांच लाख रु. की राशि दी है. चाहे जितना मिल जाए, पैसा अपनों की कमी को पूरा नहीं कर सकता.
-इरैमंतुरै से एम.जी. राधाकृष्णन और कोल्लम से सी.एस. सलिल

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