
भारत-तिब्बत सीमा पुलिस यानी आईटीबीपी के जवान से लेकर कमांडेंट स्तर तक के अधिकारियों का पिछला प्रमोशन 2012-13 में ही हुआ था. इस वजह से भारत-चीन सीमा पर ऊंचे पहाड़ों से लेकर नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात अधिकारी और जवान मायूस हैं. ख़ास बात यह है कि प्रमोशन न होने की वजह से 60 से ज्यादा इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी प्रमोशन के बगैर रिटायर हो गए.
आईटीबीपी अकेला ऐसा अर्धसैनिक बल है, जिसके पास आईजी के बाद एडीजी रैंक का पद नहीं है. सीधे डीजी का पद है. आईटीबीपी के पूर्व डीआईजी जीवीएस चौधरी के मुताबिक, प्रमोशन नहीं मिलने के कारण अधिकारी से लेकर जवान तक के मनोबल पर बुरा असर पड़ रह है.
जानकार बताते हैं कि इसकी शुरुआत साल 2010 में तब हुई जब सरकार ने मुख्य काडर में आईपीएस काडर का विलय करने की योजना बनाई थी. इसकी की वजह से प्रमोशन में रुकावट आई. इस मामले को कोर्ट में चुनौती भी दी गई है, लेकिन अब तक सरकार ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया.
इस वजह से आईटीबीपी में कमांडेंट के 40 पद, सेकेंड-इन-कमांड के 40 पद, डिप्टी कमांडेंट के 300 पद, असिस्टेंट कमांडेंट के 250 पद के अलावा इतनी ही संख्या में इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, एएसआई और प्रधान आरक्षक के पद रिक्त पड़े हैं.
चौधरी कहते हैं, 'गृह मंत्रालय और आईटीबीपी के अधिकारी अगर तीन साल पहले ही इस बाबत गंभीरता से प्रयास करते तो ऐसे हालात खड़े नहीं होते. आईटीबीपी के जवानों और अधिकारियों की नियुक्ति संवेदनशील स्थानों पर होती है, अगर इन्हें सही समय पर प्रमोशन मिले, तो वह ऊंची रैंक तक पहुंच सकेंगे और उनका मनोबल भी ऊंचा हो सकेगा.'