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ईद का आगाज, जामा मस्जिद में काली पट्टी बांध कर अदा की नमाज

जामा मसजिद में कुछ नमाजियों ने बाजू पर काली पट्टी बांध कर नमाज अदा की. उनका विरोध देश के कुछ हिस्सों में मुसलमानों पर हो रही ज्यादतियों को लेकर था. नमाजियों ने अपने विरोध के मुद्दों की फेहरिस्त में कश्मीर में पुलिस वालो की हत्या और नक्सलियों के हाथों सुरक्षाकर्मियों की शहादत का जिक्र नहीं किया गया.

जामा मसजिद (फाइल फोटो) जामा मसजिद (फाइल फोटो)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 26 जून 2017,
  • अपडेटेड 4:12 PM IST

दिल्ली के जामा मस्जिद में ईद की नमाज जैसे ही खत्म हुई मुगलिया दौर से चलती आ रही परंपरा फिर साकार हो गई. गोले छूटे और गरज के साथ पंछियों ने भरी उड़ाने. जामा मसजिद का चक्कर लगाया उसी की छांव में नमाजी एक दूसरे से गले मिले. मुबारकबाद दी. देश और दुनिया में अमनो-अमान के लिए दुआएं की गई. ईद का आगाज हो गया है.

काली पट्टी बांध कर किया नमाज अदा
जामा मस्जिद में कुछ नमाजियों ने बाजू पर काली पट्टी बांध कर नमाज अदा की. उनका विरोध देश के कुछ हिस्सों में मुसलमानों पर हो रही ज्यादतियों को लेकर था. नमाजियों ने अपने विरोध के मुद्दों की फेहरिस्त में कश्मीर में पुलिस वालो की हत्या और नक्सलियों के हाथों सुरक्षाकर्मियों की शहादत का जिक्र नहीं किया गया.

खुशियां बटोरने से नहीं बांटने से बढ़ती है

ईद का उत्साह और उमंग नमाज के बाद बढ़ता गया. अधिकतर लोग मस्जिद और ईदगाहों में नमाज और दुआ के बाद कब्रिस्तान गये और अपने पुरखों की कब्र पर फातिहा पढ़ा. सेवइयों का दौर चला. इस पर्व को लेकर छोटे बच्चे में ज्यादा उत्साह दिखा. आखिर ईद भी तो उन्हीं की होती है. खुशियां बटोरने में लगे रहते हैं. और साल दर साल बटोरी गई खुशियां बांटने का वक्त तब आता है जब उनके भी बच्चे हो जाते हैं. खुशियों का असली अर्थ समझ में आता है कि खुशियां बटोरने से नहीं बांटने से बढ़ती हैं.

छोटी-छोटी लड़कियां तितलियों सी उड़ती, कोयल सी चहकती जामा मसजिद के अहाते में अपने भाइयों के साथ दौड़ती गले मिलती दिखी. मेहंदी भरे हाथ, रंग बिरंगे कपड़े और चेहरे से ज्यादा आंखों में चमक. बस ईद की उमंग रूप धर लेती है. पता चल जाता है दिल की खुशियां दिखती कैसी हैं.

पुरानी दिल्ली की खासियत है कि ईद की सुबह नहारियों और बिरयानियों की दुकानों पर कचौड़ियां तलती हुई नजर आती हैं. कचौड़ियां नजर की जद में ना आएं तो फिजा में उड़ती खुशबू बता देती है कि कचौड़ियां बन रही है. मिठाइयों की बहार होती है. दुकानों पर भीड़ में लोग अपनी बारी का इंतजार करते रहते हैं. वे सब हलवाइयों से गुहार लगाते रहते हैं कि 'पहले मेरे लिए तौल दो..'

यही पुरानी दिल्ली की ईद है. चांद रात का लमहा-लमहा आंखों में गुजरा है. अलस्सुबह नमाज की तैयारी. तीस दिन रोजे रखने के बाद नाश्ता और दोपहर का खाना खाया तो नींद भी कमबख्त नहीं आती है. खुशियों की ईद जो आई है...

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