Advertisement

केंद्र जामिया मिलिया इस्लामिया को अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ, दिया हलफनामा

हलफनामे में कहा गया है कि ऐसा जरुरी नहीं है कि जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के बोर्ड का निर्वाचन हो और जरुरी नहीं है कि इसमें मुस्लिम धर्म को मानने वालों की ही अधिकता हो. ऐसे में जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान होने का सवाल ही नहीं उठता.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
पूनम शर्मा/आशुतोष मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 21 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 3:57 PM IST

केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में जामिया मिलिया इस्लामिया को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने को गलत ठहराते हुए एक हलफनामा दिया है. केंद्र ने यूनिवर्सिटी को धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिए जाने का विरोध कर रही है.

हलफनामे में कहा गया है कि ऐसा जरुरी नहीं है कि जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के बोर्ड का निर्वाचन हो और जरुरी नहीं है कि इसमें मुस्लिम धर्म को मानने वालों की ही अधिकता हो. ऐसे में जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान होने का सवाल ही नहीं उठता.

Advertisement

फिलहाल 5 मार्च को यह हलफनामा हाईकोर्ट में दाखिल किया गया है, जिसे 13 मार्च को हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड पर लिया. हलफनामे में कहा गया है कि जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के बोर्ड का निर्वाचन होता है और ये बिल्कुल जरुरी नहीं है कि इसमें मुस्लिम धर्म से जुड़े लोंगो की ही अधिकता हो.

ऐसे में जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान होने का सवाल ही नहीं उठता. इसके साथ ही हलफनामे में कहा गया है कि जामिया अल्पसंख्यक संस्था इसलिए भी नहीं है क्योंकि इसे संसद एक्ट के तहत बनाया गया है और केंद्र सरकार जामिया मिलिया इस्लामिया को फंड देती है.

कांग्रेस सरकार में साल 2011 में मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने एनसीएमईआई के फैसले का समर्थन करते हुए कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान होने की बात मानी थी.

Advertisement

लेकिन अब केंद्र सरकार ने कोर्ट में दाखिल किए अपने हलफनामे में अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य केस (साल 1968) का हवाला देते हुए बताया है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो यूनिवर्सिटी संसद एक्ट के तहत शामिल है, और सरकार से फंड लेती है उसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं माना जा सकता.

सरकार से नाराज छात्र

दूसरी ओर, इस यूनिवर्सिटी को लेकर केंद्र सरकार के नए हलफनामे को लेकर यहां के छात्र नाराज हैं. उनका आरोप है कि सरकार सियासत के चलते यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा खत्म करना चाह रही है.

कई छात्रों ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए सवाल पूछा कि आखिर चुनाव के दौरान ही सरकार को यह क्यों याद आता है. सरकार अल्पसंख्यकों के खिलाफ कदम उठा रही है.

जामिया के छात्रों का कहना है कि धारा 31 के जरिए उन्हें यह अधिकार दिया गया था और सरकार उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रही है. यूनिवर्सिटी की प्रवक्ता साइमां सईद ने आजतक से खास बातचीत में कहा कि वह हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगी क्योंकि यह सिर्फ जामिया का सवाल नहीं है बल्कि इससे कई शैक्षणिक संस्थान प्रभावित होंगे. साइना का कहना है कि केंद्र सरकार ने लगातार जामिया की मदद की है और उन्हें रिसर्च के लिए अतिरिक्त फंड भी मुहैया कराने के साथ-साथ पूरी आजादी दी है.

Advertisement

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement