
जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद अब जल्द चुनाव कराए जा सकते हैं. इस बात के संकेत जम्मू-कश्मीर के पहले उप राज्यपाल गिरीश चंद्र मुर्मू ने दिए हैं. उप राज्यपाल ने गुरुवार को एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि नए बने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में जल्द ही चुनाव प्रक्रिया शुरू की जाएगी.
उप राज्यपाल गिरीश चंद्र मुर्मू ने जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले के तलवाड़ा में पासिंग आउट परेड के दौरान कहा कि अनुच्छेद 370 हटने व केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यहां चुनाव कराना बहुत जरूरी है. ऐसा लगातार नहीं चलेगा. उन्होंने कहा कि चुनाव कराने की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी.
उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पहली बार होने वाले चुनाव में पुलिस की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी. उप राज्यपाल ने कहा कि पारदर्शी, निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न कराने में पुलिस की अहम भागीदारी रहेगी.
दरअसल मोदी सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया था. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है. इसके साथ ही गिरीश चंद्र मुर्मू राज्य के पहले उप राज्यपाल बने हैं और उन्हीं के निगरानी में अब पूरी चुनाव प्रक्रिया की जाएगी. ऐसे में पहले विधानसभा और संसदीय सीटों का परिसीमन की प्रक्रिया पूरी करनी होगी.
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख बनने से पहले राज्य में कुल 111 विधानसभा सीटें थी, जिनमें 87 सीटें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की हैं. जबकि, बाकी 24 सीटें PoK के नाम पर थी. अब जब जम्मू-कश्मीर से लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आ गया है. इस तरह से लद्दाख क्षेत्र के तहत आने वाली चार विधानसभा सीटें हट गई हैं.
परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में 7 विधानसभा सीटों का इजाफा होगा. इस तरह से जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 114 सीटें होंगी. 90 सीटों पर चुनाव होंगे. इनमें जम्मू रीजन में 37 और कश्मीर क्षेत्र के तहत 46 सीटें बची हैं. ऐसे में परिसीमन के बाद बढ़ने वाली सात सीटें इसी इलाके की होंगी.
साथ ही जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद स्थानीय पुलिस ने एहतियात के तौर पर कश्मीर के अलगाववादी संगठनों से जुड़े लोगों के साथ ही मुख्यधारा की पार्टियों के नेताओं, राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया था. इनमें पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला समेत अन्य नेता शामिल हैं. इन सभी नेताओं को प्रशासन ने पिछले तीन महीने से नजरबंद कर रखा है. ऐसे में बड़ा सवाल है कि चुनाव से पहले क्या इन नेताओं की रिहाई होती है या नहीं.