
जम्मू-कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत मिला विशेष दर्जा 5 अगस्त 2019 को हटा लिया गया. अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद चार महीने पूरे हो गए हैं. सरकार का दावा है कि सबकुछ सामान्य हो गया है. संसद में गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने एक के बाद एक कई प्रश्नों का जवाब देते हुए आंकड़ों की झड़ी लगा दी.
इन आंकड़ों के जरिए उन्होंने यह बताया कि कश्मीर के लोग बढ़-चढ़ कर सामान्य जनजीवन में हिस्सा ले रहे हैं. सुरक्षा नियंत्रण में है, बच्चे स्कूल जा रहे हैं और संचार सुविधाएं मोटे तौर पर बहाल कर दी गई है.
आंकड़ों से नहीं मिलते सभी सवालों के जवाब
इंडिया टुडे में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, गृह राज्य मंत्री ने संसद में जो आंकड़े रखे हैं उनसे सारे सवालों के जवाब नहीं मिलते हैं. मसलन, गृह मंत्रालय ने कश्मीर में पिछले छह महीनों में आए कुल पर्यटकों का आंकड़ा पेश किया है. लेकिन उसने यह साफ नहीं किया कि 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पर्यटन उद्योग को कितना नुकसान हुआ है. साथ ही अक्टूबर में ट्रैवल एडवाइजरी हटाए जाने के बाद कश्मीर आने वाले सैलानियों की संख्या भी नहीं बताई गई है.
इसी तरह गृह मंत्रालय ने इस साल पत्थर फेंकने के मामलों में गिरफ्तार लोगों के आंकड़े तो बताए, वह भी इसलिए कि ऐसी घटनाओं में कमी आने के अपने दावे को मंत्रालय मजबूत कर सके. मगर ये कुल आंकड़े इस सच्चाई को छिपा लेते हैं कि जबरदस्त सुरक्षा और हजारों एहतियातन गिरफ्तारियों के बावजूद पत्थर फेंकने की घटनाएं इस साल पहले की तुलना में असल में 5 अगस्त के बाद बढ़ी हैं.
यही नहीं, गृह मंत्रालय ने यह भी दावा किया कि तकरीबन सभी स्कूली बच्चे अपनी बोर्ड परीक्षा के लिए स्कूलों में आ गए थे, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि स्कूल दोबारा खुलने के बाद औसत उपस्थिति कितनी रही. जबकि कुछ रिपोर्टों में उपस्थिति बहुत कम होने का दावा किया गया है.
अब हम आपको इंडिया टुडे में छपे गृह मंत्रालय के आंकड़ों के जरिए बताते हैं कि कश्मीर में स्थिति कितनी बदली है.
- कश्मीर में 4 अगस्त यानी अनुच्छेद 370 हटाने के एक दिन पहले से एहतियातन 5,161 गिरफ्तारियां की गईं. फिलहाल 609 लोग हिरासत में हैं, जिनमें से 218 पत्थर फेंकने वाले हैं.
- 5 अगस्त और 15 नवंबर के बीच पत्थर फेंकने के 190 मामलों में कुल 765 गिरफ्तारियां हुईं.
- अगस्त और अक्टूबर के बीच नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम के उल्लंघन की 950 घटनाएं दर्ज की गईं.
- 11वीं कक्षा की परीक्षाओं में समय पर कुल 50, 272 छात्र शामिल हुए. कश्मीर घाटी के 50,537 छात्रों में से (99.5%) कक्षा 10वीं और 12वीं के 99.7% छात्रों ने बोर्ड की परीक्षा दी.
- पिछले 6 महीने में 34,10,219 सैलानी जम्मू-कश्मीर आए, जिनमें 12, 934 विदेशी सैलानी हैं. गृह मंत्रालय के मुताबिक, इससे पूर्व राज्य को 25.1 करोड़ रुपये का राजस्व मिला.
- गृह मंत्रालय के मुताबिक, सरकार ने उन किसानों से 8,960 टन सेब खरीदे हैं जो अपनी फसल बेच पाने में सक्षम नहीं थे. इस पर सरकार ने 38 करोड़ रुपये खर्च किए.
- सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2012 और 2018 के बीच पर्यटकों के कश्मीर आगमन में 35 फीसदी की कमी आई है.
गृह मंत्रालय ने इन आंकड़ों के जरिए कश्मीर का मौजूदा हालात समझाने की कोशिश की है. जबकि कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री का कहना है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद 5 अगस्त से कश्मीर को 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है. इसकी बड़ी वजह इंटरनेट बंद किया जाना है.
युवाओं के आतंकी बनने में आई गिरावट
उधर, सेना के दावों के मुताबिक 5 अगस्त से अब तक सिर्फ 14 युवा ही आतंकी बने हैं. जबकि पहले प्रत्येक महीने 12 से 13 युवा आतंकी बनते थे. यह पिछले सालों की तुलना में काफी कम है. सेना के सूत्रों के मुताबिक, आतंकियों की भर्ती में भी गिरावट आई है. पिछले साल 214 युवक आतंकी बने थे, जबकि इस साल नवंबर तक 110 युवक आतंकी बने हैं. अधिकारियों की मानें तो पाकिस्तान ने आतंक को हवा देने का काफी प्रयास किया और आतंकियों की भर्ती की कोशिश भी की लेकिन इंटरनेट बाधित होने के कारण उसका यह मंसूबा प्रभावित हुआ.
अनुच्छेद 370 हटने के बाद हिरासत में लिए गए नेता
गौरतलब है कि 5 अगस्त को मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया था. इसके तहत राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में बांट दिया गया था. साथ ही हजारों लोगों को अगस्त से ही डिटेंशन में रखा गया था. जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती के साथ ही कई नेता और वह लोग भी थे, जो जनता को मोबिलाइज कर सकते थे. इसको लेकर कांग्रेस नेताओं ने मोदी सरकार को निशाने पर लिया और इन नेताओं को रिहा करने की मांग भी की. पाकिस्तान ने भारत के इस फैसले को लेकर नाराजगी दिखाई और इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की भरपूर कोशिश की लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ी.