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जन्माष्टमी पर जरूर उतारें श्रीकृष्ण की आरती, इसके बिना अधूरा है उपवास

बुधवार, 12 अगस्त यानी आज वैष्णव जन जन्माष्टमी मना रहे हैं. जन्माष्टमी पर कन्हैया की आरती का भी बड़ा महत्व है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान की आरती लेने से सारे विघ्न दूर किए जा सकते हैं.

भगवान कृष्ण की आरती के बिना जन्माष्टमी का उपवास अधूरा माना जाता है. भगवान कृष्ण की आरती के बिना जन्माष्टमी का उपवास अधूरा माना जाता है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 9:32 AM IST

बुधवार, 12 अगस्त यानी आज वैष्णव जन जन्माष्टमी मना रहे हैं. मुरली मनोहर, बाल गोपाल, कान्हा, रास बिहारी और न जाने कितने नाम और उनकी उतनी ही लीलाएं. भगवान कृष्ण की यही तो महिमा है. जन्माष्टमी पर कन्हैया की आरती का भी बड़ा महत्व है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान की आरती लेने से सारे विघ्न दूर किए जा सकते हैं. भगवान कृष्ण की आरती के बिना उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है.

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श्रीकृष्ण की आरती

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला,

बजावै मुरली मधुर बाला .

श्रवण में कुण्डल झलकाला,

नंद के आनंद नंदलाला .

गगन सम अंग कांति काली,

राधिका चमक रही आली .

लतन में ठाढ़े बनमाली

भ्रमर सी अलक,

कस्तूरी तिलक,

चंद्र सी झलक,

ललित छवि श्यामा प्यारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,

देवता दरसन को तरसैं .

गगन सों सुमन रासि बरसै .

बजे मुरचंग,

मधुर मिरदंग,

ग्वालिन संग,

अतुल रति गोप कुमारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,

सकल मन हारिणि श्री गंगा .

स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी शिव सीस,

जटा के बीच,

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हरै अघ कीच,

चरन छवि श्रीबनवारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,

बज रही वृंदावन बेनू .

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद,

चांदनी चंद,

कटत भव फंद,

टेर सुन दीन दुखारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

जन्माष्टमी पर कैसे करें कृष्ण की पूजा

व्रत की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें. सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें. व्रत के दिन सुबह स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं.

इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें. ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥ अब शाम के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें. मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अगर ऐसा चित्र मिल जाए तो बेहतर रहता है.

इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें. पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः लेना चाहिए. फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें- 'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः। वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः। सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।' अंत में प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन करते हुए रतजगा करें.

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