
इसी साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन लालू यादव और नीतीश कुमार को जनता परिवार की पुरानी पार्टियों के विलय की कोई जल्दी नहीं है. सूत्रों की मानें तो जनता परिवार के भविष्य को लेकर कोई भी बहुत आश्वस्त नहीं है इसलिए इसका विलय टलता जा रहा है.
जब लालू को जूता पहनाने एक साथ टूट पड़े कई नेता...
जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस चुनाव से पहले अपना अभियान अलग-अलग शुरू करने की तैयारियां कर चुकी हैं. जेडीयू ने मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल पर अलग से विरोध दर्ज कराया, जबकि लालू यादव ने इसके विरोध में राजभवन तक मार्च किया. कांग्रेस ने मोदी सरकार की नीतियों का विरोध करने के लिए बोधगया से चंपारण तक मार्च किया. एक ही मुद्दे पर तीनों पार्टी एक मंच पर नहीं आई, जो जनता परिवार के विलय के लिए शुभ संकेत नहीं हैं.
जेडीयू, कांग्रेस और आरजेडी ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी से करारी शिकस्त मिलने के बाद बिहार में 10 सीटों पर मिलकर उपचुनाव लड़ा था. इसके बाद नवंबर में जेडीयू और आरजेडी ने विलय का फैसला किया. हालांकि नीतीश और लालू ने यह मानने से इनकार किया है कि जनता परिवार के विलय की प्रक्रिया पटरी से उतर चुकी है. लालू ने पूर्वी चंपारण में कहा, 'समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को इस विलय पर फैसला लेना है.' गुरुवार को प्रधानमंत्री मोदी से दिल्ली मुलाकात करने गए नीतीश ने भी विलय की राह में कोई रोड़ा होने से इनकार किया.
अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि विलय की प्रक्रिया चुनाव चिन्ह और प्रस्तावित संगठन के नाम पर अटकी हुई है. विलय में दूसरा रोड़ा मुलायम सिंह को बताया जा रहा है. मुलायम को राष्ट्रीय स्तर पर इन पार्टियों के साथ विलय में कोई फायदा नहीं नजर आ रहा क्योंकि उत्तर प्रदेश में इन पार्टियों की कोई खास मौजूदगी नहीं है. वैसे, हाल में खबरें आई थीं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बीजेपी नेताओं वे नीतीश कुमार के साथ गठबंधन की संभावनाएं तलाशने के लिए कहा है. यह बात अलग है कि नीतीश और जेडीयू के दूसरे नेताओं ने अब बीजेपी के साथ दोबारा गठबंधन की किसी भी संभावना से इनकार किया है.