
राजनीति में कहा जाता है कि एक हाथ दे, दूसरे हाथ ले. डोकलाम पर विवाद पर भारत को जापान द्वारा मिले समर्थन में यही बात देखने को मिल रही है. एक समय था जब जापान ने ईस्ट चाइना सी में द्वीपों के मसले पर भारत से मदद मांगी थी और आज वह उस मदद का कर्ज उतार रहा है. ऐसे में वैश्विक जगत से भारत को मिलते समर्थन के बाद अब चीन डोकलाम विवाद पर कूटनीतिक हार की ओर बढ़ता दिख रहा है. डोकलाम को लेकर चीन के साथ चल रही तनातनी के बीच भारत को अमेरिका और ब्रिटेन के बाद जापान का भी साथ मिला है. सिर्फ यही नहीं जापान ने भारत को समर्थन देने में अमेरिका और ब्रिटेन जैसी अस्पष्टता भी नहीं दिखाई और अब भारत को खुले तौर पर साथ देता दिखाई दे रहा है. आइए जानते हैं जापान ने क्यों बढ़ाया मदद का हाथ और इससे उसे क्या होगा फायदा :
चीन ने दी थी धमकी
जापान का यह साथ देने का फैसला चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स की उस चेतावनी के एक महीने बाद आया है, जिसमें उसने भारत को डोकलाम विवाद पर जापान का साथ लेने पर धमकाया था. अपनी रिपोर्ट में अखबार ने लिखा था कि भारत डोकलाम विवाद पर किसी भी तरह अमेरिका और जापान से मदद लेने की कोशिश न करे क्योंकि दोनों का समर्थन एक झांसा है. हालांकि अब जापान ने भारत को समर्थन देते हुए साफ शब्दों में कहा है, ''डोकलाम पर जहां तक भारत की भूमिका की बात है, तो हम मानते हैं कि वह भूटान के साथ अपने द्विपक्षीय समझौते के आधार पर ही इस मामले में दखल दे रहा है.''
दोनों को है एकदूसरे की जरूरत
जापान की ओर से मदद का हाथ बढ़ता देख भारत की जनता को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. यह जापान ही था जिसने जनवरी 2014 में भारत से मदद मांगी थी. उस समय जापान का दुश्मन भी वही था जो आज भारत को आंख दिखा रहा है. जनवरी 2014 में जापान ने भारत से एक टीम बनाकर ईस्ट चाइना सी और हिमालय के क्षेत्रों में चीन के विस्तारवादी कदमों को रोकने की गुहार लगाई थी. ईस्ट चाइना सी में द्वीपों को लेकर चीन और जापान के बीच विवाद जारी है. हाल में ही चीन ने ईस्ट चाइना सी में एयर डिफेंस आइडेन्टफकैशन जोन लागू कर इस हिस्से के स्टेटस क्यू को बदलने की कोशिश की है. इस वजह से चीन को लेकर जापान की नाराजगी बढ़ी है. अब वह चीन के विरोध में एक संयुक्त विपक्ष खड़ा करने की कोशिश में लगा है.
जापान ने भी दी थी चेतावनी
जापान के रक्षा मंत्री ने इत्सूनोरी ओनोडेरा ने कहा है कि जापान और भारत दोनों को चीन के साथ बातचीत कर उसे समझाना चाहिए कि वह बल के जरिए बॉर्डर को बदलने की कोशिश न करे. इन मुद्दों को बातचीत करके और इंटरनैशनल नियमों के हिसाब से सुलझाना चाहिए. उस समय जापान के रक्षा मंत्री ने भी कहा था कि भले ही चीन जापान और भारत दोनों का महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है, इसके बावजूद उसके हालिया उत्तेजक चालों के विरोध में पूरे इंटरनैशनल कम्युनिटी को संदेश देना चाहिए. इस बार भी भारत ने चीन को 2012 के समझौते का सम्मान करने को कहा है. इसमें कहा गया था कि कोई भी देश खुद से भारत और चीन की पूर्वी सीमा को बदलने की कोशिश नहीं करेगा. अब जापान के राजदूत केंजी हीरामत्सू ने कहा, 'डोकलाम को लेकर पिछले करीब दो महीनों से तनातनी जारी है. हमारा मानना है कि किसी भी पक्ष को जमीन पर यथास्थिति बदलने के लिए एकतरफा सैन्य इस्तेमाल से बचना चाहिए और शांतिपूर्ण ढंग से विवाद सुलझाना चाहिए.''
जापान के दूसरे मंसूबे
जापान भारत की मदद सिर्फ अपने फायदे को देखते हुए कर रहा है. ईस्ट चाइना सी में द्वीपों को लेकर चीन अपनी दावेदारी पेश करता रहा है. हाल में मई में जब सेनकाकू द्वीपों में चीन के जहाजों और एक ड्रोन ने एंट्री की थी तो जापान को लड़ाकू विमान भेजने पड़ गए थे. इसके बाद जापान ने चीन के इस कदम की कड़ी निंदा की थी. ऐसे में जापान को डर है कि वह अगर चीन को डोकलाम में अपनी मर्जी करने देता है तो उसे भी कहीं ईस्ट चाइना सी के द्वीपों के मामले में कीमत चुकानी न पड़ जाए. वहीं इंडिया-पेसिफिक क्षेत्र में चीन की ताकत बढ़ने से जापान के व्यापार पर भी असर पड़ेगा और उसे चीन पर निर्भर रहना पड़ेगा. जापान का ज्यादातर व्यापार मलक्का क्षेत्र से होता है. इस क्षेत्र पर चीन की नजर है और वह इसके लिए वियतनाम, सिंगापुर, मलेशिया जैसे देशों को अपनी तरफ लाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि भारत अभी भी इस क्षेत्र में एक मजबूत और प्रभावशाली नौसैनिक ताकत है. यही वजह है कि जापान के लिए भी भारत से दोस्ती चीन के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद है.
बढ़ी है भारत की कूटनीतिक ताकत
कुछ महीने पहले जब चीन ने दोनों देशों के बीच 55 साल पहले हुए युद्ध का संदर्भ देते हुए भारत को 'ऐतिहासिक पाठ' सीखने की सलाह दी थी तब रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने 'आजतक' से बातचीत करते हुए कहा था कि अगर वह हमें याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं, तो 1962 की स्थिति अलग थी और 2017 का भारत अलग है. उन्होंने यह भी कहा था कि सिक्किम सेक्टर में वर्तमान गतिरोध चीन की ओर से खड़ा किया गया है. हालांकि चीन ने भारत के इस दावे को सिर्फ सैन्य रूप से देखने की गलती की और अब भारत की बढ़ती कूटनीतिक ताकत को देखते हुए उसे अपनी गलती का अहसास होने लगा है. डोकलाम विवाद पर ज्यादातर यूरोपिय देशों द्वारा अभी तक वेट एंड वॉच की मुद्रा में होने के बावजूद भारत को कई ताकतवर देशों का साथ मिलने लगा है. इस मसले पर अमेरिका के एक सासंद ने कहा है कि चीन डोकलाम ट्राईजंक्शन की मौजूदा स्थिति को अपने तरीके से बदलने की कोशिश कर रहा है, इस वजह यह विवाद बढ़ा है. वहीं ब्रिटेन ने स्पष्ट रूप से कहा कि डोकलाम भारत और चीन का द्विपक्षीय मसला है और दोनों को इसे बातचीत के जरिए सुलझाना चाहिए. अमेरिका और ब्रिटेन दोनों देशों ने वही बातें कही हैं जो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में अपने दिए बयान में कहा था. हालांकि जापान का समर्थन चीन के लिए एक सरप्राइज की तरह रहा और यही वजह है कि वह जापान को भारत का साथ देने से पहले फैक्ट चेक करने की सलाह दे रहा है.