
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आज 130वीं जयंती है. नेहरू अगर प्रधानमंत्री न होते, तो भी यह विश्व उन्हें बतौर महान लेखक याद रखता. एक ऐसा लेखक, जिसकी इतिहास दृष्टि ने इस देश को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध किया. भारत के इतिहास में पंडित नेहरू के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. देश की आजादी के संघर्ष से लेकर स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र को सींचकर वट वृक्ष के भांति उसे मजबूत कर, राष्ट्र और संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को आकार देने और आर्थिक योजनाओं के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद रखने वाले एक बेजोड़ शिल्पी तो थे ही उतने ही बेजोड़ कलमकार भी थे.
पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद में हुआ था. बच्चों के प्यारे ‘चाचा नेहरू’ के उपनाम से लोकप्रिय नेहरू का व्यक्तित्व अपने आप में किसी ग्रंथ से कम नहीं हैं. उनको दुनिया के बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिला था. अपनी स्कूली शिक्षा इंग्लैंड के हैरो से प्राप्त करने के बाद उन्होंने कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में दाखिला लिया. यहां उन्होंने तीन वर्ष तक अध्ययन कर लाइफ साइंस में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने लंदन के इन्स ऑफ कोर्ट स्कूल ऑफ लॉ, इनर टेंपल से वकालत की पढ़ाई की.
यह कम महत्वपूर्ण बात नहीं कि एक बेहद नामी व स्थापित वकील पंडित मोतीलाल नेहरू के एकलौटे सुपुत्र होने और इतनी बड़ी डिग्रियां हासिल करने के बावजूद युवा जवाहर वकालत छोड़ देश के आजादी आंदोलन की राह पकड़ी पंडित नेहरू 9 बार जेल में गए थे. उनको 11 बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया गया.
बहरहाल साहित्य आजतक में हम पंडित नेहरू के सियासी व प्रशासनिक उपलब्धियों की जगह उनकी सृजनात्मक गतिविधियों की बात करेंगे. वह एक प्रखर वक्ता व अध्यवसायी तो थे ही, उन्होंने भारतीय अकादमिक व साहित्य जगत को भी अनगिनत रचनाओं से समृद्ध किया. उनकी रचनाओं में 'द डिस्कवरी ऑफ इंडिया', हिंदी में भारत एक खोज, 'ग्लिम्प्स ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री और बायोग्राफी 'टुवर्ड फ्रीडम' शामिल हैं.
द डिस्कवरी ऑफ इंडिया को उन्होंने अपने कारावास के दौरान अहमदनगर की जेल में 1944 में लिखा था. बाद में इस पुस्तक का हिंदी और अन्य बहुत सारे भाषाओं में अनुवाद किया गया. इस किताब को क्लासिक का दर्जा हासिल है. यह किताब देश के समृद्ध इतिहास, दर्शन और संस्कृति का दर्पण है.
इस किताब की रचना के साथ ही नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक के साथ-साथ विश्व के महानतम् लेखकों की कैटेगरी में गिने जाने लगे. इस किताब में नेहरू ने सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर भारत की आज़ादी तक विकसित हुई भारत की बहुविध समृद्ध संस्कृति, धर्म और प्राचीन विरासत के अतीत को वैज्ञानिक दष्टि से जोड़ते हुए अद्वितीय भाषा शैली में लिपीबद्ध किया है.
पंडित नेहरु ने हमेशा इस बात पर जोर दिया और कहा कि हमारा अतीत हमारे भविष्य का पथ प्रदर्शक होता है. उनके नजरिए के इसी विस्तृत फलक के कारण यह किताब सभ्यता के क्रमिक विकास, दर्शन, कला, सामाजिक आन्दोलन, वित्त, विज्ञान और धर्म आदि कई अलग अलग विषय-वस्तु को समेटे हुए है. इस किताब पर एक बहुचर्चित टेलीविजन सीरीज ‘भारत एक खोज’ भी बन चुकी है.
पंडित नेहरु द्वारा रचित एक और प्रसिद्ध किताब ‘लेटर्स फ्रॉम अ फादर टू हिज डॉटर’ है. जेल में रहते हुए उन्होंने 146 पत्र बेटी इंदिरा को लिखे. इस किताब का हिन्दी अनुवाद महान कथाकार, उपन्यासकार सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने किया था. इन खतों से पं.नेहरू की रचनाधर्मिता और कल्पनाशीलता की गहराई का अंदाजा लगता है. साथ ही यह भी कि वह कितनी सादगीपूर्ण और ऊंची सोच वाले व्यक्ति थे.
उनकी रचनाओं में भारत का इतिहास, दर्शन, समाज, संस्कृति, धर्म और प्रकृति का उन्मुक्त रुप समाहित तो हैं ही, विश्व इतिहास, समाज, धर्म, दर्शन, साहित्य और संस्कृति का दरवेश भी है. उनकी रचनाओं को पढ़कर ऐसे लगता है कि अपनी किताबों में उन्होंने समूची दुनिया के चप्पे-चप्पे का ज्ञान उड़ेल दिया हो. पंडित नेहरू ने 27 मई, 1964 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था. भले ही आज वह हम सबके बीच नहीं हैं, लेकिन भारत ही नहीं दुनिया के समस्त सहिष्णु, प्रगतिशील व उदारवादी सोच वाले व्यक्तियों के दिलों में वे आज भी लोकतांत्रिक, संविधान सम्मत, मानवतावादी सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक दर्शन और अपनी अमर कृतियों के साथ जिंदा हैं.
जितना कीचड़, गंदगी, गालियां, लांछन आदि नेहरू पर उड़ेले जा रहे हैं, उससे मैला होने के बजाय वे उज्ज्वल निर्मलता से दमकते दिखायी देते हैं. यहां पंडित नहेरू की राष्ट्र को सौंपी गई आखिरी वसीयत, जो उन्होंने 21 जून, 1954 को लिखी थी और जिसे उनके निधन के बाद 03 जून, 1964 को प्रसारित किया गया, का जिक्र भी जरूरी है. इसमें उन्होंने लिखा था- "मैं चाहता हूं कि मेरी मुट्ठीभर राख प्रयाग के संगम में बहा दी जाए जो हिन्दुस्तान के दामन को चूमते हुए समंदर में जा मिले, लेकिन मेरी राख का ज्यादा हिस्सा हवाई जहाज से ऊपर ले जाकर खेतों में बिखरा दिया जाए, वो खेत जहां हजारों मेहनतकश इंसान काम में लगे हैं, ताकि मेरे वजूद का हर जर्रा वतन की खाक में मिलकर एक हो जाए."
# नोटः लेखक का नाम पढ़ कर चौंकिए नहीं. यह भारतीय समाज पर पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रभाव की बानगी है. साहित्य आजतक से इंटर्न के रूप में जुड़े लेखक का नाम उसके दादा ने पंडित नेहरू के नाम पर रखा था. - संपादक.