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विपक्षी एकता के सूत्रधार

क्या किशोर सीएए/भाजपा विरोधी ताकतों के साझा मददगार बन गए हैं? किशोर के ऐसे रुख अपनाने की क्या वजह है?

एपी दुबे/गेट्टी इमेजेज एपी दुबे/गेट्टी इमेजेज
कौशिक डेका
  • बिहार,
  • 20 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 4:14 PM IST

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (सीएए) के पिछले महीने संसद में पारित होने के बाद से ही प्रशांत किशोर उसके मुखर आलोचकों में शामिल हैं. चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने किशोर ने सीएए के खिलाफ तभी बोलना शुरू कर दिया था जब उनकी पार्टी जद (यू) ने संसद में इसके पक्ष में वोट दिया था. उन्होंने पार्टी से इस्तीफे की पेशकश भी की, पर जद (यू) प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उसे स्वीकार करने को कतई तैयार नहीं हुए. अब 13 जनवरी को नीतीश ने विधानसभा में माना कि सीएए पर चर्चा की जरूरत है.

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नीतीश का यह बयान तब आया जब एक दिन पहले किशोर ने सीएए और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एनआरसी) को ''औपचारिक और दोटूक ढंग से खारिज कर देने'' के लिए खुलेआम कांग्रेस नेतृत्व का शुक्रिया अदा किया था. उन्होंने दावे के साथ यह भी कहा था कि सीएए-एनआरसी बिहार में लागू नहीं किए जाएंगे. अब सीएए पर अपना रुख पलटने के लिए नीतीश को मजबूर करके किशोर ने जद (यू) को संसद में समर्थन करने के पश्चात इस कानून पर ऐतराज जाहिर करने वाली भाजपा की तीसरी सहयोगी पार्टी बना दिया है.

इससे पहले शिरोमणि अकाली दल और असम गण परिषद ने भी ऐसा ही किया. जद (यू) की एक आंतरिक बैठक में नीतीश ने किशोर से कहा, ''विधेयक भाजपा ने पास किया, पर आपके बयानों ने खलनायक मुझे बना दिया.'' तिस पर भी नीतीश उनसे अपना रास्ता अलग करने को तैयार नहीं हैं, जो इस बात का संकेत है कि यह सब दरअसल सोचा-समझा नाटक था.

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भाजपा के कुछ अंदरूनी लोग भी यही दावा कर रहे हैं. वे कह रहे हैं कि यह सब दिखावा है ताकि नीतीश आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा से कुछ ज्यादा सीटें ऐंठ सकें. बीते एक साल में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा के औसत से खराब प्रदर्शन और सीएए पर राष्ट्रव्यापी जनाक्रोश ने जद (यू) की महत्वाकांक्षा को और हवा दे दी है.

कुछ अन्य लोग इस पैंतरेबाजी की वजह किशोर की पेशेगत सुविधा में देख रहे हैं. 2014 के चुनाव अभियान में मोदी की मदद करने वाले इस रणनीतिकार ने बाद में भाजपा से अपना रास्ता अलग कर लिया था और अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) ने उनकी सेवाएं ली हैं.

मौजूदा संदर्भ में इस किस्म की भाजपा विरोधी पार्टियों के साथ किशोर का जुड़ाव और उनके हाथों इन पार्टियों के लिए गढ़े गए सियासी अफसानों ने बिहार की जद (यू)-भाजपा सरकार में टकराव पैदा कर दिया है. इसने जद (यू) को मुश्किल में भी डाल दिया है, क्योंकि किशोर उसके वरिष्ठ सदस्य हैं. शायद यही वजह है कि किशोर जद (यू) प्रमुख को भाजपा के साथ रिश्ते तोडऩे के लिए मना रहे हैं.

मगर मुख्यमंत्री रिश्ते तोडऩे की हड़बड़ी में नहीं हैं क्योंकि नीतीश जानते हैं कि इस गठबंधन में रहकर वे राजद-कांग्रेस के साथ सीधे मुकाबले में चुनावी तौर पर कहीं ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं. जद (यू) के एक अंदरूनी जानकार कहते हैं, ''पहले तो वे अगले मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी स्थिति पक्की करेंगे और भाजपा ने इसका वादा उन्हें कर दिया है. साथ ही, अगर यह गठबंधन टूटता है, तो दूसरे गठबंधनों का तानाबाना बुनने के लिए आश्वासन के तौर पर उनके पास किशोर तो हैं ही. इसलिए वे उन्हें निकालेंगे नहीं.''

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किशोर के टीएमसी और आप के अलावा राजद, सपा, शिवसेना, वाइएसआरसीपी जैसी पार्टियों के साथ करीबी रिश्ते हैं. वे कांग्रेस के लिए भी काम कर चुके हैं तथा तमिलनाडु में उनका सीएए की एक और विरोधी पार्टी द्रमुक की मदद करना तय है. असम में सीएए विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे कई बुद्धिजीवी और छात्र नेता भी उनके संपर्क में हैं, ताकि राज्य में कांग्रेस और भाजपा के विरुद्ध वैकल्पिक मोर्चे की संभावनाओं की छानबीन कर सकें. ऐसा लगता है, किशोर देश भर में तमाम सीएए/भाजपा विरोधी ताकतों के साझा मददगार बन गए हैं.

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