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नक्सल की पहचान बन चुके सुकमा के 2 बेटे JEE परीक्षा में चुने गए

जज़्बा और धैर्य हो तो दुनिया की कोई भी मंजिल पाना नामुमकिन नहीं है. इस बात के मिसाल बने सुकमा के दो बेटे, जिन्होंने नक्सलवाद के साये में रहते हुए ज्ञान के दीपक को बुझने नहीं दिया.

JEE exam qualifier from sukma JEE exam qualifier from sukma
वंदना भारती/IANS
  • नई दिल्ली,
  • 30 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 3:37 PM IST

छत्तीसगढ़ के जिस सुकमा को नक्सली हिंसा के लिए जाना जाता है, वह एक बार फिर चर्चा में है. पर इस बार खबर में न तो बंदूक है और न ही खून व हिंसा. इस बार खबर एक ऐसे बदलावा की है, जिसके लिए सुकमा लंबे वक्त से इंतजार कर रहा था.

अभी हाल ही में इसी जिले के बुरकापाल में 25 जवान नक्सली मुठभेड़ में शहीद हो गए थे. ऐसे में जहां लोगों के सिर कलम किए जा रहे हों, वहां अगर कलम की ताकत बुलंद हो तो क्या कहने!

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सुकमा में नक्सलियों का खूनी खेल

हिंसा की घटनाओं के बीच यहां दो परिवारों की जिंदगी में उम्मीद का दीपक जलता मिला. आदिवासी इलाके में गोली-बंदूक और लाल आतंक के बीच CBSE के JEE मुख्य परीक्षा में सुकमा जिले के दुब्बाटोटा निवासी मड़कम दुला और स्कूगलपारा के कवासी सोमड़ा को सफलता मिली है.

दोनों छात्रों का परिवार जंगल में महुआ और तेंदू पत्ता बीनकर अपना गुजारा करता है और एक दो-दो कमरे की दो झोपड़ी में रहते हैं.

गांव में खेती किसानी के लिए पर्याप्त जमीन नहीं थी तो बड़ा भाई गांव छोड़कर आंध्र प्रदेश में जाकर बस गया. पिता कवासी गंगा व मां भीमे, छोटी बहन समेत कुल चार लोग रहते हैं.

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घर के हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि टीवी, साइकिल और मोबाइल तक सपना है. गुरुवार को आए 12वीं के नतीजे में सोमड़ा 65 प्रतिशत अंक के साथ फर्स्ट डिवीजन पास हुआ. जेईई मेंस में सलेक्ट होने पर खुशी जाहिर करते हुए कवासी सोमड़ा ने बताया कि वह इंजीनियर बनना चाहता है. परिवार की आर्थिक स्थिति गांव में सबसे ज्यादा खराब है. सोमड़ा परिवार को इस आर्थिक तंगी से निकालकर बेहतर जीवन देना चाहता है.

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जिला प्रशासन ने इन छात्रों की तैयारी अपने खर्च पर आवासीय शैक्षणिक संस्था आरोहण में दिल्ली की एक निजी कोचिंग सेंटर के माध्यम से कार्रवाई थी. जब नतीजे आए तो दोनों छात्रों के खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

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