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झारक्राफ्ट से मिल रहे अवसरों से संवर रही ग्रामीणों की जिंदगी

झारक्राफ्ट के जरिए झारखंड के कारीगर अपनी जिंदगी संवार रहे हैं, तो इस संस्था को देश-दुनिया में संस्था को मिली शोहरत.

अभिषेक चौबे
  • रांची,
  • 16 सितंबर 2014,
  • अपडेटेड 12:28 PM IST

नया सराय, रांची की रहने वाली और पेशे से बुनकर 35 वर्षीया अजमेरी खातून आज एक खुशहाल घरेलू महिला हैं. वे पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने परिवार का लालन-पालन कर रही हैं. अजमेरी अपने परिवार की हर जरूरत को पूरा करने में सक्षम हैं. यह सिर्फ अजमेरी की दास्तान नहीं है. ऐसे सैकड़ों लोग हैं, जो राज्य सरकार के झारखंड सिल्क टेक्स्टाइल ऐंड हैंडिक्राफ्ट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (झारक्राफ्ट) से जुड़कर अपनी जिंदगी संवार रहे हैं. अब ये दूसरों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत बनकर बदलाव ला रहे हैं.

इसी बदलाव की जिद के साथ झारक्राफ्ट संघर्ष कर रहे बुनकरों और कारीगरों की जिंदगी को बेहतर बना रहा है. झारखंड के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों के दीर्घकालिक उत्थान के लिए 23 अगस्त, 2006 को झारक्राफ्ट की स्थापना हुई थी, ताकि छुपे हुनर की पहचान और उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल कर उनके जीवन को आयाम दिया जा सके. तब से इसका कारवां लगातार बढ़ रहा है. झारक्राफ्ट ने न सिर्फ लोगों के हुनर को पहचाना बल्कि उनका उपयोग कर 2013-14 में सर्वाधिक 2004 मीट्रिक टन रेशम उत्पादित कर देश में अव्वल रहा. इस तरह कारीगरों का जीवन तो बदला ही, संस्था की पहचान विदेशों तक बनी.

झारक्राफ्ट को यह मुकाम दिलाने में धीरेंद्र कुमार का बड़ा योगदान है. 1983 बैच के भारतीय वनसेवा अधिकारी धीरेंद्र कुमार को झारक्राफ्ट की स्थापना के साथ ही इसका प्रबंध निदेशकबनाया गया था. धीरेंद्र बताते हैं, ''हमारी टीम ने हुनरमंदों को आगे लाने मेंकोई कसर नहीं छोड़ी. आठ वर्ष के अथक प्रयास के बाद हमने यह दूरी तय की है. हम लोग हर उस शख्स का विकास चाहते हैं, जो हमसे जुड़ रहा है. ''

खरसावां के 40 वर्षीय बुनकर मोयकासोय कहते हैं, ''पहले मैं पारंपरिक तरीके से रेशम उत्पादन करता था. झारक्राफ्ट ने मुझे नई दिशा दी है. अब मैं वैज्ञानिक विधि से उत्पादन करने लगा हूं. इससे मेरी आमदनी और अनुभव बढ़ा है. '' उन्होंने 2013 में इससे 1,03,000 रु. की कमाई की और वे अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिला रहे हैं. यही वजह है कि आज झारक्राफ्ट के साथ करीब 2,00,000 चरखी चलाने वाले, 25,000 सूत कातने वाले, 60,000 बुनकर और 60,000 कारीगर काम कर रहे हैं.

झारक्राफ्ट हथकरघा, हस्तशिल्प, रेशम उत्पादन और इससे संबंधित क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहा है. ये काम स्वसहायता समूहों और परियोजनाओं के आधार पर किए जाते हैं. झारक्राफ्ट ग्रामीण कारीगरों को उनके गांव में ही सुविधाएं मुहैया करता है. ये कारीगर उसके प्रशिक्षित लोगों की देखरेख में काम करते हैं. झारक्राफ्ट के पास खुद की रंगाई, सिलाई समेत अन्य संबंधित इकाइयां हैं. इसकी पूरी प्रक्रिया की निगरानी संस्था के रांची मुख्यालय की ओर से होती है. झारक्राफ्ट बांस, लकड़ी से बनी सजावटी वस्तु, लाह की चूड़ी, पक्की मिट्टी के सजावटी बरतन, रेशम के अन्य उत्पादों का भी बड़े पैमाने पर उत्पादन करता है. इंस्टीटयूट ऑफ इकोनॉमिक्स स्टडीज, नई दिल्ली ने झारक्राफ्ट को औद्योगिक क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए 2014 में प्रमाणपत्र भी दिया है.

झारक्राफ्ट ने सितंबर 2007 में पहली दुकान रांची में स्थापित की. इसके बाद देश के अन्य हिस्सों में भी इसने 35 दुकानों की स्थापना की है. 2013 में इसने रांची में महत्वाकांक्षी इंपोरियम बनाया है. झारक्राफ्ट ने देश के अन्य हिस्सों में दुकानें और झारखंड के ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की है. जाहिर है, झारक्राफ्ट को विश्व-परिदृश्य में लाने की कोशिशें लगातार जारी हैं.

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