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झारखंड चुनावः भूख से हुई मौतों के मुद्दे पर ‘सन्नाटा’ क्यों है पसरा ?

झारखंड में विधानसभा चुनाव दस्तक दे चुके हैं. लेकिन सियासी मुद्दों के बीच भूख से हुई मौतों को लेकर फिलहाल सन्नाटा पसरा है. अब देखना यह है कि रघुवर सरकार को भ्रष्टाचार में सिर से नख तक डूबी पार्टी कहने वाले उन्हीं की पार्टी के बागी नेता सरयू राय इस मुद्दे को उठाते हैं या नहीं? देखना यह भी है कि क्या इस मुद्दे पर वहां की तकरीबन 28 फीसदी आदिवासी आबादी एकजुट होती है या नहीं ? विपक्षी पार्टियां अपने घोषणापत्र में इस मुद्दे को प्राथमिकता से उठाती हैं या नहीं?

झारखंड में भूख से हुई मौतें क्या बनेंगी मुद्दा? झारखंड में भूख से हुई मौतें क्या बनेंगी मुद्दा?
संध्या द्विवेदी
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  • 21 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 7:38 PM IST

साल 2017 झारखंड के सिमडेगा जिले का करीमाटी गांव अचानक चर्चा में आ गया. वैसे तो इस गांव की हर झोपड़ी गरीबी की एक अलग ही दास्तान कहती है लेकिन उस दिन तो हद हो गई जब यहां की एक झोपडी में एक 11 साल की आदिवासी बच्ची ने भात-भात कहते हुए दम तोड़ दिया. झारखंड से लेकर दिल्ली तक खूब हंगामा कटा. प्रशासन हरकत में आया और भूख से हुई इस मौत को बीमारी से हुई मौत में तब्दील कर दिया. मेडिकल रिपोर्ट में लिखा गया संतोषी की आंतों में अन्न के दाने पाए गए. मौके पर पहुंचे स्थानीय लोग और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता चिल्लाचिल्लाकर कहते रहे उस झोपड़ी के बर्तन और डिब्बों में अन्न का एक दाना तक नहीं था. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मोह भंग होने के बाद बागी तेवर अख्तियार करने वाले सरयू राय उस वक्त सरकार में खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री थे.

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उन्होंने उस समय भाजपा की रघुवर सरकार का बचाव करते हुए कहा था, ‘‘ हमने हर आरोप की जांच कराई लेकिन हमें भूख से हुई मौत का कोई उदाहरण नहीं मिला. झारखंड पहाला ऐसा राज्य है जिसने भूख से हुई मौत की परिभाषा तय करने के लिए एक कमेटी बनाई है.’’  यह फर्क बात है कि आज सरयू राय रघुवर सरकार में दो दर्जन से ज्यादा घोटाले होने का दावा कर रहे हैं.

यही नहीं वे कह रहे हैं, ‘‘लगता पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद यादव, जगन्ननाथ मिश्र और मधुकोड़ा की तरह रघुवर दास को जेल पहुंचाना भी मेरी नियति है.’’ भले ही सरकार भूख से हुई मौतों को मानने से इनकार करे लेकिन मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता रितिका खेड़ा के नेतृत्व में बनी एक फैक्ट फाईंडिंग टीम ने दावा किया कि पिछले पांच साल के दौरान झारखंड में कम से कम 22 लोगों की मौत भूख से हुई है. खेड़ा ने भूख से हुई मौतों की सूची भी जारी की.

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रिपोर्ट के मुताबिक 28 सितंबर 2017 को सिमडेगा जिले के कारीमाटी गांव में 11 साल की संतोषी की मौत से पहले हजारीबाग जिले के इंद्रदेव महली की मौत भी भूख से हुई थी. रघुवर दास की सरकार के कार्यकाल में भूख से होने वाली वह पहली मौत थी. इसके अलावा भी 18 लोगों की मौते हुईं.

अफसोसजनक बात यह है कि मरने वाले सारे लोग आदिवासी समुदाय के हैं. सन 2000 में बिहार से कटकर एक राज्य का दर्जा पाने वाले झारखंड के लिए यह बात तब और बड़ी हो जाती है जबकि यहां पर रघुवर दास से पहले नौ बार मुख्यमंत्री बने सारे नेता आदिवासी समुदाय के थे. रघुवर दास पहले ऐसे नेता बने जो गैर आदिवासी समुदाय से थे.

रघुवर ही पहले ऐसे मुख्यमंत्री भी हैं जिन्होंने 19 साल पहले बने इस राज्य में अपना कार्यकाल पूरा किया. भाजपा के बागी दिग्गज नेता सरयू राय ने 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान इंडिया टुडे से बातचीत के दौरान कहा था, ‘‘झारखंड में तकरीबन 28 फीसदी आदिवासी आबादी है. आदिवासी आंदोलनों के बल पर ही इसे राज्य का दर्जा भी मिला है.

लेकिन यहां राज्य स्तर का कोई बड़ा नेता विकसित नहीं हुआ. जिला स्तर के नेताओं ने राज्य और उसके खजानों की कमान संभाली और ठेकेदार, खनन माफिया और माओवादियों के गठजोड़ ने उन्हें आसानी से बर्बाद कर दिया.’’ दरअसल यह बात सच भी है क्योंकि आप किसी भी आदिवासी मुख्यमंत्री का इतिहास उठाए तो पाएंगे कि उनका प्रभाव कभी भी राज्यव्यापी नहीं रहा.

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झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य से यह पूछने पर कि क्या भूख से मौतों का मुद्दा उनके घोषणा पत्र में प्रमुखता से शामिल होगा? वे कहते हैं, बिल्कुल इस मुद्दे को सबसे ज्यादा हमारी पार्टी ने ही उठाया.

यह हमारा ‘मुद्दा’ है. यह बात सच भी है कि जेएमएम ने इस मुद्दे पर भाजपा को खूब घेरने की कोशिश की. लेकिन खतरा यह भी है कि कहीं घोषणा पत्र में शामिल होकर यह मुद्दा महज चुनाव जीतने का हथियार बनकर न रह जाए. खैर, फिलहाल तो सत्ता उस पार्टी के हाथ में है जिसके लिए ‘‘राज्य में भूख से मौतें हुई ही नहीं.’’

अब देखना यह भी है कि रघुवर सरकार को भ्रष्टाचार में सिर से नख तक डूबी पार्टी कहने वाले उन्हीं की पार्टी के बागी नेता सरयू राय इस मुद्दे को उठाते हैं या नहीं? देखना यह भी है कि क्या इस मुद्दे पर वहां की तकरीबन 28 फीसदी आदिवासी आबादी एकजुट होती हैं या नहीं ? स्थानीय पत्रकारों के बीच आज सबसे बड़ी खबर यह भी है कि राष्ट्रीय चैनल के एक स्थानीय रिपोर्टर को इसलिए भारी फटकार का सामना करना पड़ा क्योंकि उसने विपक्षी नेता के उकसाने पर भाजपा के एक नेता से भूख से हुई मौतों पर सवाल पूछ लिया था.

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