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झारखंडः एक दशक में भी नहीं बन पाया अधूरा बेरबेंदिया पुल

धनबाद-जामताड़ा के बीच बराकर नदी पर बनने वाला पुल एक दशक बाद भी अधूरा, राज्य सरकार के विकास के दावों की खिल्ली उड़ाते अधूरे पुल से हजारों लोगों के जान संकट में, नाव से पार करनी होती है खतरनाक बराकर नदी

फोटोः सुभाष यादव फोटोः सुभाष यादव
मंजीत ठाकुर
  • जामताड़ा,
  • 27 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 4:26 PM IST

झारखंड में जामताड़ा जिले के रहने वाले सुभाष यादव शिक्षक हैं और उन्हें धनबाद जिले में निरसा में एक स्कूल जाना होता है. लेकिन जिस दूरी को 20 किमी में तय किया जा सकता था उसके लिए इन्हें मोटरसाइकिल से करीब 60 किलोमीटर का चक्कर लगाना होता है. वजह है बराकर नदी पर आधा बना हुआ एक पुल. यह पुल वीरगांव और बीरबेंदिया के बीच बन रहा था.

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असल में, झारखंड में भारतीय जनता पार्टी की सरकार विकास के चाहे जितने दावे करे, लेकिन जमीन पर उन वादों को हकीकत में उतारना मुश्किल ही लग रहा है. इसकी मिसाल है जामताड़ा को धनबाद से जोड़ने वाले पुल के निर्माण को लेकर. इस परियोजना को शुरू हुए एक दशक बीत गया लेकिन पुल है कि बनता ही नहीं.

बराकर नदी पर सरकार ने झारखंड राज्य का सबसे लंबा पुल बनाने की कवायद शुरू की थी. इस पुल की लंबाई तकरीबन डेड़ किलोमीटर होने वाली थी. इस परियोजना में करोड़ो रूपए खर्च भी हुए. लेकिन, करीब पौन किलोमीटर बनने के बाद साल 2008 में बरसात के मौसम में पुल के चार पिलर बह गए. पिलरों के बहने के बाद से पुल का निर्माण कार्य थम गया. 2008 के बाद के दस साल में बराकर नदी में न जाने कितना पानी बह गया लेकिन पुल निर्माण का काम शुरू नहीं किया जा सका. 

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राज्य सरकार कभी कहती है कि बाकी बचे पुल को तोड़कर दोबारा बनाया जाएगा, कभी इसके बचे हिस्से को पूरा कराने के वादे किए जाते हैं लेकिन अधूरा पुल अपनी किस्मत को रो रहा है. 

सुभाष यादव जैसे हजारों लोगों को धनबाद की तरफ जाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें धनबाद या निरसा जाने के लिए पहले बंगाल की सरहद में मैथन होते हुए जाना पड़ता है और 60 किलोमीटर लंबा रास्ता तय करना होता है. जबकि यह पुल बन जाता तो यह दूरी महज 20 किलोमीटर रह जाती.

इस नदी को पार करने के लिए नाव से आवागमन करना होता है, जो बराकर नदी के बहाव के हिसाब से बेहद खतरनाक है. फिर भी लोगों को जान जोखिम में डालकर यात्रा करनी पड़ती है.

गौरतलब है कि सरकार ने कई बार आश्वासन दिया है कि डेढ़ किलोमीटर लंबा यह पुल दोबारा बनाया जाएगा और इस पर 20 करोड़ रु. की लागत आएगी. वैसे, इस इलाके में पिछले 25 साल से लोग नाव का ही सफर करने के लिए मजबूर है. दस साल पहले पुल निर्माण शुरू होने पर लोगों में सफर का समय कम होने की उम्मीद जगी थी. 

लेकिन अब तमाम वादों के बावजूद पुल निर्माण में कोई कदम नहीं बढ़ाया गया है. इस इलाके में रहने वाले लोगों के साथ इस पुल को भी अपनी किस्मत संवरने के लिए राज्य सरकार की नींद टूटने का इंतजार है.

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