
झारखंड की सियासत में आदिवासी मतदाता किंगमेकर माने जाते हैं. प्रदेश के दूसरे चरण की 20 विधानसभा सीटों के लिए 7 दिसंबर को चुनाव होंगे. इन बीस सीटों में से 16 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. इसका मतलब साफ है कि ये वो 16 सीटें हैं, जिन पर जीत दर्ज कर राजनीतिक दल सत्ता की दहलीज तक पहुंच सकते हैं.
बता दें कि झारखंड में 30 फीसदी के करीब आदिवासी मतदाता हैं, जिनके लिए प्रदेश में 28 सीटें आरक्षित हैं. इनमें से 16 सीटें दूसरे चरण में शामिल हैं. 2014 में इन 16 आदिवासी सीटों में से 7 सीटें जेएमएम, 6 सीटें बीजेपी, एक सीट आजसू, एक सीट झारखंड पार्टी और एक सीट पर मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा ने जीत दर्ज की थी.
दूसरे चरण की आदिवासी सुरक्षित सीट
झारखंड में दूसरे चरण की 16 सुरक्षित सीटे हैं, जिनमें से बीजेपी के कब्जे में घाटशिला, पोटाका, खूंटी, मांडर, सिसई और सिमडेगा सीट है. जबकि, जेएमएम ने बाहरगोड़ा, सरायकेला, चाईबासा , मनोहरपुर, चक्रधरपुर, खरसावां और तोरपा सीट जीत दर्ज की थी. वही, तमाड़ सीट आजसू, कोलेबिरा सीट झारखंड पार्टी और जगन्नाथपुर सीट से गीता कोड़ा ने जीत हासिल की थी.
बता दें कि पिछले चुनाव में एक साथ लड़ने वाले बीजेपी और आजसू इस बार अलग-अलग चुनावी ताल ठोक रहे हैं. जबकि, कांग्रेस, जेएमएम और आरजेडी ने 2014 में अलग-अलग चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार एकजुट होकर बीजेपी को मात देने उतरे हैं. ऐसे बदले हुए समीकरण में आदिवासी सीटों पर जीत दर्ज करना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है. हालांकि केंद्र की मोदी और राज्य की रघुवर सरकार में आदिवासियों के लिए किए गए कार्यों के सहारे पिछली बार से बेहतर नतीजे की उम्मीद लगाए हुए हैं.
वहीं, हेमंत सोरेन के नेतृत्व में उतरी जेएमएम ने अपना दुर्ग बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. पहले चरण में चुनाव प्रचार से दूर जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन भी मैदान में उतरकर गठबंधन प्रत्याशियों के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं. इसके साथ ही कांग्रेस की छत्तीसगढ़ की टीम ने आदिवासी बेल्ट में चुनाव प्रचार की कमान संभाल रखी है.
आदिवासियों को रिझाने में जुटे दल
सियासी दल दूसरे चरण के चुनाव प्रचार में आदिवासियों के बीच जल, जंगल और जमीन को सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर उनका दिल जीतना चाहते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी-अपनी जनसभाओं में जल, जंगल और जमीन मुद्दे पर अपनी बात रखी. इतना ही नहीं इन दोनों नेताओं ने आदिवासियों को आश्वासन दिलाया कि किसी भी सूरत में जल-जंगल और जमीन को छिनने नहीं देंगे.