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Jio को कमाई कम दिखाने की वजह से लाइसेंस फीस कम देनी पड़ी: रिपोर्ट्स

टेलीकॉम कंपनियों को अपने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) का कुछ हिस्सा सालाना लाइसेंस फी के तौर पर सरकार को देना होता है. रिलायंस जियो ने कथित तौर पर अपने AGR को कम दिखाया है जिसकी वजह से उसे सरकार को लाइसेंस फीस कम देनी पड़ी.

मुकेश अंबानी (फाइल फोटो) मुकेश अंबानी (फाइल फोटो)
Munzir Ahmad
  • नई दिल्ली,
  • 08 मार्च 2017,
  • अपडेटेड 5:01 PM IST

वेलकम ऑफर, हैपी न्यू ईयर ऑफर और अब प्राइम सर्विस देने वाली नई टेलीकॉम कंपनी जियो पर कथित तौर पर सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगा है.

रिलायांस जियो इनफोकॉम कथित तौर पर  2015 तक लगातार तीन वित्त वर्षों में अपने रेवेन्यू को कम बताया है जिसकी वजह से सरकार द्वारा उससे कम लाइसेंस फीस वसूली गई. ड्राफ्ट ऑडिट रिपोर्ट् के मुताबिक कंपनी ने फॉरेन एक्सचेंज में हुई अपनी कमाई को छिपाते हुए कुल 63.77 करोड़ रुपये कम रेवेन्यू की घोषणा की थी.

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इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ऑडिट फॉर पोस्ट एंड टेलीकॉम के डायरेक्टर जनरल ने एक पांच पेज की रिपोर्ट तैयार की है जिसे मुकेश अंबानी और डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम को उनके रिस्पॉन्स के लिए भेजा गया है.

गौरतलब है कि टेलीकॉम कंपनियों को अपने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) का कुछ हिस्सा सालाना लाइसेंस फी के तौर पर सरकार को देना होता है. रिलायंस जियो ने कथित तौर पर अपने AGR को कम दिखाया है जिसकी वजह से उसे सरकार को लाइसेंस फीस कम देनी पड़ी.

प्रोमोशनल ऑफर्स की वजह से सरकरा को हुए हैं 800 करोड़ रुपये के नुकसान

हाल ही में टेलीकॉम सेकरेटरी जेएस दीपक ने TRAI को प्रोमोशनल ऑफर्स की अवधि को कम करने के लिए लिखा है. इकोनॉमिक टाइम्स की ही एक रिपोर्ट के मुताबिक जेएस दीपक ने TRAI से कहा है कि टेलीकॉम कंपनियों द्वारा दिए जाने वाले 90 दिनों वाले प्रोमोशनल ऑफर्स की अवधि को कम करने को कहा है. उन्होंने कहा है कि ऐसे ऑफर्स से सरकार के रेवेन्यू से लगभग 800 करोड़ रुपये लगे हैं और इनसे टेलीकॉम इंडस्ट्री पर भी प्रभाव पड़ा है.

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जेएस दीपक ने अपने लेटर में लिखा है, ‘टेलीकॉम सेक्टर और सरकार के रेवेन्यू के हित में टेलीकॉम कंपनियों के टैरिफ पर जल्द से जल्द पुनर्विचार और रीव्यू करने की जरूरत है’

TRAI को लिखे इस लेटर में उन्होंने यह भी बताया है कि टेलीकॉम लाइसेंस फीस में सरकार का रेवेन्यू कैसे गिरा है. जून में 3975 करोड़ रुपये थी जबकि मौजूदा वित्त वर्ष के दिसंबर में यह 3185 करोड़ रुपये हो गई.

गौरतलब है कि टेलीकॉम कंपनियों द्वारा दिया जाने वाला टैरिफ पर अंतिम फैसला ट्राई का होता है, टेलीकॉम मंत्रालय का नहीं.

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