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क्यों है जेएनयू में उथल-पुथल

28 अक्तूबर को जब प्रस्तावित शुल्क वृद्धि के विरोध में प्रदर्शन हुए तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) ने प्रशासन और छात्रों के बीच समझौता कराने की कोशिश की थी

फोटोः पंकज नागिया फोटोः पंकज नागिया
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 14 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 4:30 PM IST

सोनाली अचार्जी

गत 5 जनवरी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में 32 वर्षीया शोध छात्रा अदिति पाटिल के पास पेपर स्प्रे (मिर्च-स्प्रे) नहीं होता तो नकाबपोश हमलावर ने उनका मुंह लोहे की रॉड के वार से तोड़ दिया होता. हमलावर की आंखों की ओर स्प्रे करने के बाद जान बचाने के लिए अदिति को वाटर कूलर के पीछे छिपना पड़ा. जेएनयू कैंपस में अन्य छात्राएं उनकी तरह भाग्यशाली नहीं रहीं. हथियारों से लैस दर्जनों हमलावरों ने छात्रों और अध्यापकों पर ईंट, बीयर की बोतलों और डंडों से हमला किया.

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दिल्ली पुलिस हमले को रोक नहीं सकी (या उसने ऐसा करने से मना कर दिया). इस हमले में घायल 34 लोगों का एम्स में इलाज किया गया. आठ साल से जेएनयू में रह रहीं पाटिल का कहना है कि कैंपस में ऐसी हिंसक गतिविधियां नहीं होती थीं. वे कहती हैं, ''किसी दल से नहीं जुडऩे वाले मेरी तरह के स्टुडेंट्स को निशाना नहीं बनाया जाता था.''

जेएनयू के छात्रों के समर्थन में मुंबई, हैदराबाद, केप टाउन, म्यूनिख और न्यूयॉर्क तक से संदेश आए हैं. हमले के खिलाफ मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया पर प्रदर्शन करने वाले 500 छात्रों में शामिल आइआइटी, मुंबई के छात्र 21 वर्षीय अभय सिंह कहते हैं, ''सरकार ने छात्रों का विश्वास तोड़ा है. हमलावर आराम से परिसर से निकल गए और उल्टे पीडि़तों के खिलाफ ही प्रथमिकी दर्ज की जा रही है.''

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जेएनयू छात्र संघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) हिंसा के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. छात्र संघ का कहना है कि एबीवीपी के लोग कुलपति एम. जगदीश कुमार से मिले हुए हैं. छात्र संघ के काउंसलर अनघ प्रदीप कहते हैं, ''वे यह साबित करने आए थे कि हम प्रशासन के संरक्षण में कैंपस में तुम्हें पीट कर साफ बच निकल सकते हैं.''

वहीं एबीवीपी का आरोप है कि छात्र संघ कंप्यूटर में तोडफ़ोड़ और सर्वर को बंद करके नए सेमेस्टर के लिए छात्रों का पंजीकरण बाधित कर रहा था. उसका यह भी आरोप है कि छात्र संघ की अध्यक्ष आयशी घोष ही नकाबपोश हमलावरों को लाई थीं. पर हमले में घोष का सिर फट गया है और उनके सिर पर 16 टांके लगाने पड़े. एफआइआर में घोष को ही अभियुक्त बनाते हुए उन पर सर्वर को क्षति पहुंचाने, शारीरिक हिंसा, महिला सुरक्षाकर्मियों को धक्का देने और अन्य सुरक्षाकर्मियों को धमकाने का आरोप लगाया गया है.

एबीवीपी की जेएनयू इकाई के अध्यक्ष दुर्गेश कुमार का आरोप है कि घोष और कुछ अन्य छात्र-छात्राओं ने खुद अपने आप को चोट पहुंचाई है. वे कहते हैं, ''इस परिसर में नक्सलवादी, माओवादी और नकली जिहादी भरे पड़े हैं और हिंसा उनके खून में है.'' यह ठीक उसी तरह की भाषा है जिसका इस्तेमाल गृह मंत्री अमित शाह समेत वरिष्ठ भाजपा नेता करते हैं. दुर्गेश के मुताबिक, हिंसा में 25 एबीवीपी कार्यकर्ता घायल हुए हैं और पिछले चुनाव में एबीवीपी से अध्यक्ष पद के प्रत्याशी रहे मनीष जांगिड़ का हाथ टूट गया है. यह पूछने पर कि क्या घायलों ने शहर के किसी अस्पताल में इलाज करवाया, उनका कहना था कि ज्यादातर लोग अपने घरों में चोटों से उबर रहे हैं. वहीं जांगिड़ ने अपने हाथ के बारे में किसी सवाल का जवाब देने से मना कर दिया.

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जेएनयू के पूर्व कुलपति एस.के. सोपोरी कहते हैं, ''जेएनयू या किसी भी विश्वविद्यालय में हड़ताल कोई नई चीज नहीं हैं, पर जेएनयू में ऐसा हमला कभी नहीं हुआ था. सुरक्षा व्यवस्था और समन्वय एकदम ध्वस्त हो गया था.'' जेएनयू में 20 वर्षों तक अध्यापन करने वाले प्रो. सोपोरी कहते हैं, ''छात्रों और प्रशासन के बीच खींचतान परिसर का चरित्र बदल रही है. दोनों पक्षों में संवाद की जरूरत है.'' बीते 28 अक्तूबर को जब प्रस्तावित शुल्क वृद्धि के विरोध में प्रदर्शन हुए तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) ने प्रशासन और छात्रों के बीच समझौता कराने की कोशिश की थी. पर प्रदीप बताते हैं, ''कुलपति ने हमें बातचीत के लिए कभी नहीं बुलाया. ऐसा जब भी हुआ, हमेशा एचआरडी के जरिए हुआ.''

बीते 10 और 12 दिसंबर के बीच हुई एक बैठक में तय किया गया था कि बढ़ाए गए छात्रावास शुल्क में गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों से आए छात्रों को 50 फीसद छूट दी जाएगी जबकि सेवा और सुविधा शुल्कों का वहन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग करेगा. प्रदीप का कहना है कि यह हो लागू पाता इसके पहले ही इस समझौते तक पहुंचने में महत्वपूर्ण रहे उच्च शिक्षा सचिव आर. सुब्रह्मण्यम का तबादला कर दिया गया. प्रदीप कहते हैं, ''साफ है कि कुलपति उस समझौते को नहीं मानेंगे. उनकी योजना हम जान सकें, इसके पहले ही शायद हमें विश्वविद्यालय से निकाल दिया जाएगा.'' वे बताते हैं, ''जेएनयू में पढऩे वाले छात्रों में से 40 फीसद ऐसे परिवारों से हैं जिनकी मासिक आय 12,000 रु. या उससे भी कम है. जेएनयू में सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमियों के छात्र आते रहे हैं और शुल्कों में वृद्धि जेएनयू की इस प्रकृति बदल देगी.''

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हालिया हमले ने छात्रों और कुलपति के बीच अविश्वास को बढ़ाया है. जेएनयू ने हमलों के बाद परीक्षाओं, पंजीकरण और परिसर में वाइ-फाइ सेवाओं के बारे में सर्कुलर जारी किए हैं. पर परिसर में सुनियोजित हिंसा के बारे में पूछे गए प्रश्नों पर उसकी ओर से कोई जवाब नहीं आया है. घोष बताती हैं, ''करीब 30 लोगों की भीड़ ने घेर कर मुझ पर रॉड से हमला किया. हम पर घूंसे बरसाये गए. प्रशासन उन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज करवा रहा?''

एबीवीपी दिल्ली की संयुक्त सचिव अणिमा सोनकर ने पत्रकारों के सामने स्वीकार किया कि उनके समूह के सदस्यों को व्हाट्सऐप ग्रुप्स में कहा गया कि उन्हें रॉड, पेपर स्प्रे और तेजाब लेकर कमरों से बाहर आना है. उनका दावा है कि उसके साथी डरे हुए थे और ये हथियार उन्होंने आत्मरक्षा में निकाले थे. सोशल मीडिया पर व्हाट्सऐप के जो स्क्रीनशॉट साझा हुए हैं, उनसे लगता है कि जेएनयू के चीफ प्रॉक्टर धनंजय सिंह 'फ्रेंड्स ऑफ आरएसएस' नामक उस व्हाट्सऐप ग्रुप के सदस्य थे जिस पर परिसर में हिंसा भड़काने वाली बातें साझा की गई थीं.

सुरक्षा चूकों के बारे में पहले कुछ नहीं बोल रहे कुलपति ने 8 जनवरी को इंडिया टुडे टीवी के साथ बातचीत में कहा, ''(5 जनवरी को) शाम करीब पांच बजे साफ हो गया था कि कैंपस में हिंसा हो सकती है. इसके बाद हमने सुरक्षाकर्मियों की मदद से पुलिस से संपर्क किया—जो मौके पर पहुंची भी.'' पर यह पूछने पर कि हिंसा के पीछे कौन थे—एबीवीपी से जुड़े छात्र या फिर वाम संगठनों से जुड़े छात्र—तो उन्होंने कोई सीधा उत्तर देने की बजाए कहा, ''सभी छात्र मेरे लिए एक जैसे हैं. मैं उन्हें खेमों में नहीं बांटता.'' उन्होंने कहा कि छात्रों को अतीत पीछे छोड़ कर आगे बढऩा चाहिए, पर राजनीति शास्त्र के छात्र 30 वर्षीय अनुभव मित्रा पूछते हैं, ''आप अपने ही परिसर में आतंकित किए जाने की बात कैसे भूल सकते हैं?''

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