
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) देशविरोधी नारेबाजी के मामले में आज पटियाला हाउस कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान दिल्ली पुलिस ने कहा कि अभी भी दिल्ली सरकार से देशद्रोह के सेक्शन पर अप्रूवल नहीं आया है. फिलहाल, मामले से जुड़ी फाइल गृह मंत्रालय के पास है. इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई 19 फरवरी तक टाल दी.
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने राजद्रोह मामले में जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने को लेकर आम आदमी पार्टी की सरकार को निर्देश देने से 4 दिसंबर को इनकार कर दिया था. चीफ जस्टिस डी एन पटेल और जस्टिस सी हरि शंकर की पीठ ने कहा कि वह इस संबंध में कोई निर्देश नहीं दे सकती. पीठ ने कहा कि यह दिल्ली सरकार पर निर्भर है कि वह मौजूदा नियमों, नीति, कानून और तथ्यों के अनुसार यह फैसला लें कि मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी दी जाए या नहीं.
अदालत ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि ऐसा लगता है याचिकाकर्ता पूर्व बीजेपी विधायक नंद किशोर गर्ग की प्राथमिकी में कुछ निजी हित हैं. याचिका में गंभीर प्रकृत्ति के आपराधिक मामलों के त्वरित निस्तारण के लिए दिशा निर्देश देने की मांग की गई है जिसमें बतौर आरोपी प्रभावशाली व्यक्ति शामिल हैं. इस पर अदालत ने कहा कि मौजूदा नियमों के अलावा ऐसे दिशा निर्देश जारी करने के लिए सरकार को निर्देश देने की कोई वजह नजर नहीं आती. उसने कहा कि इस पर विभिन्न अदालतों ने पर्याप्त संख्या में फैसले दे रखे हैं.
वकील शशांक देव सुधी के जरिए दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि कन्हैया कुमार का मामला सरकार के निरुत्साहपूर्ण रुख को दिखाता है क्योंकि वह आरोपपत्र पर संज्ञान लेने से पूर्व आवश्यक मंजूरी पत्र देने में नाकाम रही. अदालत ने दिल्ली सरकार को प्रक्रियात्मक अनुपालन में देरी के पहलुओं पर गौर करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया.
पीठ ने कहा कि ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है कि सरकार को एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन करने के निर्देश दिए जाए क्योंकि राज्य के पास पर्याप्त संख्या में अधिकारी हैं और इस तरह की समिति की जरूरत नहीं है. पुलिस ने कुमार और जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य समेत अन्यों के खिलाफ अदालत में 14 जनवरी को आरोपपत्र दायर करते हुए दावा किया था कि वे 9 फरवरी 2016 को एक कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय परिसर में एक रैली का नेतृत्व कर रहे थे और उन्होंने राष्ट्र विरोधी नारे लगाए थे.