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आज भी समाज में ट्रांसजेंडर को वह इज्जत नहीं मिलती जिनके वह हकदार हैं. लेकिन जोयिता मंडल उन लोगों के लिए एक बड़ा उदाहरण बनकर सामने आई हैं, जो ट्रांसजेंडर को आम लोगों से अलग मानते हैं. 29 साल की जोयिता मंडल देश की पहली ट्रांसजेंडर जज बनीं हैं. उन्हें इस साल 8 जुलाई, 2017 को पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर की लोक अदालत में जज नियुक्त किया गया है.
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वह 2010 से 'नई रोशनी' नाम की एक संस्था में ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के लिए काम कर रही हैं. आज धीरे-धीरे काफी लोग इस संस्था से जुड़ रहे हैं. जोयिता मंडल देश के ट्रांसजेंडर समुदाय के उन चंद लोगों में से एक हैं, जिन्होंने पूरी जिंदगी कठिनाईयों से लड़ते हुए एक सफल मुकाम हासिल किया है.
भेदभाव में बीता बचपन
बचपन से ही जोयिता को भेदभाव का सामना करना पड़ गया. जब वह छोटी थी तो उन्हें हर बात पर घरवालों से डांट सुनने को मिलती. स्कूल में उन्हें ताने सुनने को मिलते थे. इन सभी चीजों से तंग आकर उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और फिर घर छोड़ा.
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नौकरी के दौरान उड़ा मजाक
हम अक्सर ट्रांसजेंडर को देखकर मजाक बना लेते हैं बिना ये सोचें कि सामने वाला कैसा महसूस कर रहा होगा. घर छोड़ने के बाद जब जोयिता ने कॉल सेंटर में नौकरी की तो उनका वहां भी मजाक उड़ाया गया. जिसके बाद उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी.
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भीख मांगकर किया गुजारा
घर छोड़ने और फिर नौकरी छोड़ने के बाद जोयिता के लिए हर दिन काटना लोहे के चने चबाने जैसा था. उनके पास सर ढकने के लिए छत नहीं थी. कोई भी उन्हें किराये पर कमरा देने के लिए तैयार नहीं होता था. ऐसे में सर्दी हो या गर्मी उन्हें खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़ती. पैसों की कमी के चलते उन्होंने कई बार भीख मांगकर भी गुजारा किया.
भीख मांगने से लेकर किसी लोक अदालत की जज बनना ये ट्रांसजेंडर जोयिता मंडल ने इसी जिंदगी में देखा है. आज जोयिता की जिंदगी किसी मिसाल से कम नहीं है. उन्होंने ये साबित कर दिया कि कुछ अलग और बेहतर करने के लिए सच्ची मेहनत और दृढ़ संकल्प की जरूरत है.