
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कार्यवाहक अध्यक्ष से जेपी नड्डा अब पूर्णकालिक अध्यक्ष बनने जा रहे हैं. नड्डा की बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी 20 जनवरी को होगी. लोकसभा चुनाव 2019 में मिली जीत के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह गृहमंत्री बन गए, जिसके चलते पार्टी की कमान जेपी नड्डा को सौंपी गई और उन्हें कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. जेपी नड्डा के बीजेपी के कार्यवाहक अध्यक्ष बनने के बाद से तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और चौथे राज्य के तौर पर दिल्ली में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है.
गृह मंत्रालय जैसे अहम विभाग संभालने की वजह से पार्टी का काम जेपी नड्डा ही संभाल रहे थे. नड्डा को कार्यवाहक अध्यक्ष बने हुए अभी तक आठ महीने हुए हैं और इस दौरान वो अपने सियासी प्रैक्टिस मैचों में फेल रहे हैं. महाराष्ट्र और झारखंड बीजेपी की सीटें ही नहीं घटीं बल्कि सत्ता भी गंवानी पड़ी है तो हरियाणा में जेजेपी के समर्थन से सरकार बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. वहीं, दिल्ली में भी बीजेपी की सियासी राह आसान नहीं मानी जा रही है. ऐसे में जेपी नड्डा की आगे की राह काफी चुनौती पूर्ण होने वाली है.
दिल्ली में केजरीवाल बड़ी चुनौती
बीजेपी अध्यक्ष की कमान मिलने के बाद जेपी नड्डा की पहली अग्निपरीक्षा दिल्ली विधानसभा चुनाव में होनी है. बीजेपी पिछले 21 साल से दिल्ली की सत्ता से बाहर है. ऐसे में जेपी नड्डा के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को दिल्ली की सत्ता में वापसी कराने की है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने सीएम कैंडिडेट उतारने के बजाय इस बार बीजेपी ने केंद्रीय नेतृत्व के सहारे चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है. ऐसे में दिल्ली की सियासी जंग जीतने की जिम्मेदारी पूरी तरह से पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व पर है. दिल्ली में अभी तक आए सभी सर्वे में आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलता नजर आ रहा है. ऐसे में जेपी नड्डा के सामने दिल्ली में कमल खिलाने की एक बड़ी चुनौती है.
क्या अमित शाह जैसे बन पाएंगे नड्डा?
अमित शाह ने बीजेपी अध्यक्ष रहते हुए पार्टी को जिस मुकाम पर पहुंचाया उसे बनाए रखना जेपी नड्डा के लिए एक अध्यक्ष तौर पर चुनौतीपूर्ण काम रहेगा. अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी ने देश ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश सहित बड़े राज्यों में जीत का परचम फहराया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में जब सभी बीजेपी की हार की भविष्यवाणी कर रहे थे तब अमित शाह ने 300 प्लस सीटें जीतने का दावा किया था और उसे अमलीजामा पहनाने में कामयाब रहे. अब जब पार्टी की कमान नड्डा के हाथों में होगी तो इनके सामने बीजेपी को शीर्ष पर बनाए रखने के साथ-साथ खुद को एक सशक्त और दमदार अध्यक्ष के रूप में पेश करने की चुनौती होगी.
बिहार में बीजेपी की बड़ी चुनौती
जेपी नड्डा के नेतृत्व में ही बिहार और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव होने हैं. महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ छोड़ जाने के बाद बिहार में भाजपा के सामने जेडीयू के साथ गठबंधन को बनाए रखने की चुनौती है. बिहार में इसी साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी. हालांकि नीतीश ने डेढ़ साल बाद आरजेडी से नाता तोड़ लिया और बीजेपी के साथ फिर से नई सरकार बना ली थी, लेकिन बीजेपी और जेडीयू नेताओं के बीच लगातार तल्खियां सामने आती रहती हैं. ऐसे में सीट शेयरिंग से लेकर राजनीतिक एजेंडा तय कर साथ चुनाव लड़ने की बड़ी चुनौती है.
पूर्वोत्तर से बंगाल तक रहेंगी चुनौतियां
बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पश्चिम बंगाल में जीत का परचम फहराने की है. इसके अलावा असम में सीएए को लेकर बीजेपी का राजनीतिक समीकरण बिगड़ गया है. 2021 में पश्चिम बंगाल और असम में विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी का पूरा फोकस बंगाल पर है, जहां उन्हें टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी से दो-दो हाथ करने होंगे. बंगाल में बीजेपी एनआरसी और सीएए को लेकर राजनीति एजेंडा सेट कर रही है तो असम में इसी मुद्दे पर आंदोलन हो रहे हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए असम और बंगाल की सियासी जंग जीतना एक बड़ी चुनौती होगी.
बीजेपी का मिशन साउथ
जेपी नड्डा के सामने दक्षिण भारत में पार्टी के ग्राफ को बढ़ाने की चुनौती होगी. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल में बीजेपी की स्थिति काफी खराब रही. आंध्र और केरल समेत तमिलनाडु में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली. बीजेपी ने इन राज्यों में जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया था, लेकिन निराशा हाथ लगी. अब नड्डा के सामने दक्षिण में सीट जीतने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी होगी. तमिलनाडु और केरल में विधानसभा चुनाव 2021 में होने हैं. ऐसे में बीजेपी की सारी जिम्मेदारी जेपी नड्डा के कंधों पर होगी. ऐसे में देखना होगा कि नड्डा इस पर खितना खरे उतरते हैं.