
इस बार विधानसभा चुनाव में 2014 से बड़ी जीत हासिल कर तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव ने राजनीति विश्लेषकों को गलत साबित कर दिया. उन्होंने तय समय से कोई छह महीने पहले विधानसभा भंग करके चुनाव कराने का फैसला किया तो विश्लेषकों का कहना था कि राव का यह दांव उन्हें उलटा पड़ सकता है. तेलंगाना में कांग्रेस और तेलगू देशम पार्टी मिलकर 2018 का विधानसभा चुनाव लड़े थे और पिछले चुनावों के इनके कुल वोटों का आंकड़ा टीआरएस को मिले मतों से अधिक था. मगर सियासी फार्मूले को गलत साबित करते हुए राव का जादू फिर चल गया.
आंध्र प्रदेश में मेढक जिले के चिंतामदका गांव में 17 फरवरी 1954 को जन्मे कल्वाकुंतला चंद्रशेखर राव यानी केसीआर राव की शुरुआती शिक्षा अविभाजित आंध्र प्रदेश में ही हुई और उन्होंने हैदराबाद स्थित उस्मानिया यूनिवर्सिटी से साहित्य में स्नात्कोत्तर की डिग्री हासिल की है. 1970 में पढ़ाई के दौरान ही राव ने राजनीति में कदम रखा और आगे बढ़ते रहे. राव सिद्धिपेट से अपने पहले राजनीतिक गुरु मदन मोहन के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 1985 में वह फिर चुनावी अखाड़े में उतरे और राजनीतिक करियर में अपनी पहली अहम जीत दर्ज की. तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
एनटीआर कैबिनेट में 1987 में वह पहली बार मंत्री बने. 1997 में चंद्रबाबू नायडू के कैबिनेट में उन्होंने परिवहन मंत्री की जिम्मेदारी संभाली. 1999 के चुनावों में जीत के बाद चंद्रबाबू ने उन्हें उप सभापति का पद दिया. 1987 से 1988 तक वे आंध्र प्रदेश में राज्यमंत्री रहे. 1997-99 के दौरान वह केंद्र सरकार में मंत्री रहे. जबकि 1999 से 2001 तक चंद्रशेखर राव आंध्र प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष भी रहे. अलग तेलंगाना राज्य की मांग करते हुए उन्होंने तेलुगू देशम पार्टी छोड़ दी और तेलंगाना राष्ट्र समिति का गठन कर 2004 में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव में उतरे. इसमें टीआरएस को पांच सीटों पर सफलता मिली. केंद्र की यूपीए-एक सरकार में 2004 से 2006 तक उन्होंने केंद्रीय श्रम और नियोजन मंत्री के पद पर काम किया.
वर्ष 2006 में उन्होंने लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और फिर भारी बहुमत से सांसद चुने गए. 2008 में भी उन्होंने ठीक इसी तरह अपने 3 सांसदों और 16 विधायकों के साथ फिर इस्तीफा दिया और दूसरी बार सांसद चुन लिए गए. जून 2009 तक वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में थे, लेकिन अलग तेलंगाना राष्ट्र पर यूपीए के रवैये की वजह से वह अलग हो गए. जून 2014 में तेलंगाना राज्य के गठन के बाद उन्होंने राज्य के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली.
जिस तरह से केसीआर के बोलने की शैली श्रोताओं को आकर्षित करती है उसी तरह से उनकी योजनाएं संभवतः उन्हें जीत दिलाने में कामयाब रही हैं. राव ने अपने पिछले साढ़े चार साल के कार्यकाल में किसानों के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए. उनकी रायतू बंधु योजना की चर्चा सबसे अधिक होती रही है. राव की सरकार ने तेलंगाना के सभी किसानों को प्रति एकड़ चार हजार रुपये की आर्थिक मदद प्रति सीजन मुहैया कराने का काम किया. साल के दो सीजन में प्रदेश के किसानों को प्रति एकड़ आठ हजार रुपये राव सरकार ने दिए. इसी तरह की तमाम योजनाएं राव ने घोषित कर रखी हैं और यही वजह है कि उनका जादू चल जाता है और राजनीतिक विश्लेषकों का आकलन गलत साबित हो जाता है.