
भारत में बाल अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कैलाश सत्यार्थी को साल 2014 के लिए संयुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई है. मदर टेरेसा (1979) के बाद कैलाश सत्यार्थी सिर्फ दूसरे भारतीय हैं जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है. नॉर्वे की नोबेल कमेटी ने शुक्रवार को इसकी घोषणा की. कमेटी ने एक बयान जारी कर इसकी घोषणा की. अपने बयान में कमेटी ने कहा, ‘साल 2014 का शांति के लिए नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को बच्चों एवं युवाओं के दमन के खिलाफ और बच्चों की शिक्षा की दिशा में काम करने के लिए दिया गया है.’
कैलाश सत्यार्थी ने नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के बाद अपनी प्रतिक्रिया में खुशी जताई. उन्होंने कहा, ‘मैं काफी खुश हूं. यह बाल अधिकारों के लिए हमारी लड़ाई को मान्यता है. मैं इस आधुनिक युग में पीड़ा से गुजर रहे लाखों बच्चों की दुर्दशा पर काम को मान्यता देने के लिए नोबेल समिति का शुक्रगुजार हूं.’
आओ सुनाएं तुम्हें मलाला की कहानी...
नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा के बाद कई लोगों को जहां मलाला यूसुफजई के विषय में तो जानकारी थी वहीं कैलाश सत्यार्थी का नाम उनके लिए नया था. लेकिन सत्यार्थी की संस्था ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ से भारत का लगभग हर व्यक्ति परिचित है.
कौन हैं कैलाश सत्यार्थी?
कैलाश सत्यार्थी बच्चों के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो सालों से बाल अधिकार के लिए संघर्षरत हैं. सत्यार्थी भारत में एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ चलाते हैं जो बच्चों को बंधुआ मजदूरी और तस्करी से बचाने के काम में लगी है. कैलाश सत्यार्थी ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से बाल अधिकारों की रक्षा और उन्हें और मजबूती से लागू करवाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया, 80 हजार बाल श्रमिकों को मुक्त कराया और उन्हें जीवन में नयी उम्मीद दी. ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के रूप में उनकी संस्था लोगों के बीच में काफी लोकप्रिय है. सत्यार्थी इस संस्था के जरिए उन बच्चों की मदद करते हैं जो अपने परिवार के कर्ज उतारने के लिए बेचे दिए जाते हैं. फिर उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है जिससे वो अपने समुदाय में जाकर ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिए काम करें.
दिल्ली एवं मुंबई जैसे देश के बड़े शहरों की फैक्टरियों में बच्चों के उत्पीड़न से लेकर ओडिशा और झारखंड के दूरवर्ती इलाकों से लेकर देश के लगभग हर कोने में उनके संगठन ने बंधुआ मजदूर के रूप में नियोजित बच्चों को बचाया. उन्होंने बाल तस्करी एवं मजदूरी के खिलाफ कड़े कानून बनाने की वकालत की और अभी तक उन्हें मिश्रित सफलता मिली है. सत्यार्थी कहते रहे कि वह बाल मजदूरी को लेकर चिंतित रहे और इससे उन्हें संगठित आंदोलन खड़ा करने में मदद मिली. बाल मजदूरी कराने वाले फैक्टरियों में छापेमारी के उनके प्रारंभिक प्रयास का फैक्टरी मालिकों ने कड़ा विरोध किया और कई बार पुलिस ने भी उनका साथ नहीं दिया लेकिन धीरे-धीरे उनके काम की महत्ता को पहचान मिली. उन्होंने बच्चों के लिए आवश्यक शिक्षा को लेकर शिक्षा के अधिकार का आंदोलन चलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
क्या है बचपन बचाओ आंदोलन
‘बचपन बचाओ आंदोलन’ बच्चों के शोषण के खिलाफ भारत का पहला सिविल सोसाइटी अभियान है. 1980 में इसकी स्थापना की गई. अपनी संस्था के माध्यम से कैलाश सत्यार्थी ने अब तक करीब 80 हजार बच्चों की जिंदगी बचाई है. इस संस्था की सबसे मुख्य पहल बाल मित्र ग्राम कार्यक्रम है जो बाल बंधुआ मजदूरी, बाल अधिकार और सर्वशिक्षा के अभियान में एक नया प्रतिमान बन गया. कैलाश सत्यार्थी को इस अभियान के शुरू करने के कुछ सालों के बाद यह आभास हुआ कि बाल मजदूरी और शोषण के लगभग 70 फीसदी मामले गांवों में होते हैं तब उन्होंने बच्चों को बचाए जाने के बाद प्रशासन द्वारा उन्हें उचित शिक्षा मुहैया हो सके इसकी व्यवस्था पर जोर देना शुरू किया.
बाल मित्र ग्राम वह मॉडल गांव है जो बाल शोषण से पूरी तरह मुक्त है और यहां बाल अधिकार को तरजीह दी जाती है. 2001 में इस मॉडल को अपनाने के बाद से देश के 11 राज्यों के 356 गांवों को अब तक चाइल्ड फ्रेंडली विलेज घोषित किया जा चुका है. हालांकि कैलाश सत्यार्थी का अधिकांश कार्य राजस्थान और झारखंड के गांवों में होता है. इन गांवों के बच्चे स्कूल जाते हैं, बाल पंचायत, युवा मंडल और महिला मंडल में शामिल होते हैं और समय समय पर ग्राम पंचायत से बाल समस्याओं के संबंध में बातें करते हैं. ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ बाल मित्र ग्राम में 14 साल के सभी बच्चों को मुफ्त, व्यापक और स्तरीय शिक्षा के साथ ही लड़कियां स्कूल न छोड़ें इसलिए स्कूलों में आधारभूत सुविधाएं मौजूद हों यह सुनिश्चित करती है.
सत्यार्थी को मिले कई पुरस्कार
सत्यार्थी को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले जिसमें डिफेंडर्स ऑफ डेमोक्रेसी अवार्ड (2009 अमेरिका), मेडल ऑफ द इटालियन सीनेट (2007 इटली), रॉबर्ट एफ. केनेडी इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (अमेरिका) और फ्रेडरिक एबर्ट इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (जर्मनी) आदि शामिल हैं. उन्होंने ग्लोबल मार्च अगेन्स्ट चाइल्ड लेबर मुहिम चलायी जो कई देशों में सक्रिय है. उन्हें रूगमार्क के गठन का श्रेय भी जाता है जिसे गुड वेब भी कहा जाता है. यह एक तरह का सामाजिक प्रमाण पत्र है जिसे दक्षिण एशिया में बाल मजदूर मुक्त कालीनों के निर्माण के लिए दिया जाता है. सत्यार्थी को बाल अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए पहले भी कई बार नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया. सत्यार्थी भारत में जन्मे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें नोबल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है और नोबल पुरस्कार पाने वाले सातवें भारतीय हैं. इनसे पहले मदर टेरेसा को 1979 में नोबल शांति पुरस्कार दिया गया था जिनका जन्म अल्बानिया में हुआ था.