Advertisement

35 साल पहले भी होते थे ऐसे हादसे, अब भी नहीं बदला बहुत कुछ

उत्तर प्रदेश में कानपुर के पास रविवार को हुए रेल हादसे को देश में अब तक हुए भीषण रेल हादसों में एक माना जा रहा है. इस हादसे में मारे गए लोगों का आंकड़ा 142 तक पहुंच गया है. करीब छह साल पहले बंगाल में 28 मई 2010 को हुए ऐसे ही भीषण रेल हादसे में 148 लोग मारे गए थे.

कानपुर के पास रविवार को यहीं हुआ था हादसा कानपुर के पास रविवार को यहीं हुआ था हादसा

उत्तर प्रदेश में कानपुर के पास रविवार को हुए रेल हादसे को देश में अब तक हुए भीषण रेल हादसों में एक माना जा रहा है. इस हादसे में मारे गए लोगों का आंकड़ा 142 तक पहुंच गया है. करीब छह साल पहले बंगाल में 28 मई 2010 को हुए ऐसे ही भीषण रेल हादसे में 148 लोग मारे गए थे. कानपुर के पास पुखरायां में हुए रेल हादसे के बाद भी जांच के आदेश दे दिए गए हैं जैसा कि अभी तक हर हादसों के बाद होता आया है. शुरुआती जांच में संकेत मिले हैं कि रेलवे ट्रैक की खराबी के चलते यह हादसा हुआ होगा. ड्राइवर की रिपोर्ट से लापरवाही की बात सामने आई है.

Advertisement

वैसे तो हमारे देश में हर साल कई छोटी-बड़ी ट्रेन दुर्घटनाएं होती रहती हैं और इनमें 86 फीसदी हादसे मानवीय भूलों की वजह से होते हैं. लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा रेल सिस्टम होने के बावजूद भारतीय रेल अब भी ब्रिटिश काल के इंफ्रास्टक्चर पर चल रही है. जिस हिसाब से पटरियों पर रेलवे ट्रैफिक का दबाव बढ़ रहा है, उस हिसाब से इंफ्रास्टक्चर अपग्रेड नहीं हो पा रहा है. एक ओर तो सरकार बुलेट ट्रेन चलाने की योजना बना रही है, दूसरी ओर मूलभूत ढांचे में बदलाव नहीं होने की वजह से सामान्य ट्रेनों को हादसों से बचाने में सरकार नाकाम दिख रही है. रेलवे के सामने सेफ्टी एक बड़ा मसला बना हुआ है. सिग्नलिंग सिस्टम में चूक और एंटी कॉलीजन डिवाइसेज की कमी से भी आए दिन हादसे होते रहते हैं.

Advertisement

1. इंफ्रास्टक्चर की कमी के चलते रेल हादसे की यह कोई नई घटना नहीं है. करीब 35 साल पहले बिहार में एक भीषण रेल हादसा हुआ था जिसमें करीब 800 लोग मारे गए थे. 6 जून 1981 को एक पैसेंजर ट्रेन मानसी और सहरसा के बीच पटरी से उतर गई और बागमती नदी में डूब गई. इस ट्रेन में करीब 800 मुसाफिर सवार थे. घटना के 5 दिन बाद करीब 200 शवों को नदी से निकाला गया लेकिन बाकी मुसाफिरों की लाशें तक नहीं मिल पाईं थी. बताया जाता है कि इनकी लाशें नदी की तेज धारा में बह गई होंगी. कहा गया कि बाढ़ का पानी पटरियों तक पहुंच गया था इस वजह से ट्रेन हादसे का शिकार हो गई. यानी 35 साल पहले भी रेलवे मूलभूत ढांचा ऐसा था जैसा तमाम जगहों पर आज भी है.

2. सहरसा रेल हादसे के सात साल बाद केरल में ऐसा ही हादसा हुआ. बैंगलोर से त्रिवेंद्रम जा रही आइलैंड एक्सप्रेस 8 जुलाई, 1988 को केरल में अष्टमुदी लेक में गिर गई, जिसमें 107 लोग मारे गए थे. यह हादसा कोल्लम जिले में पेरुमन ब्रिज पर हुआ जब ट्रेन के 9 डिब्बे पटरी से उतर गए. इनमें से दो डिब्बे नदी में गिर गए थे. इस हादसे की असली वजह का अभी तक पता नहीं चल पाया है. किसी ने कहा कि रेलवे ट्रैक और ट्रेन के पहियों में गड़बड़ी की वजह से हादसा हुआ तो किसी ने बताया कि रेलवे ब्रिज पर मेंटनेंस का काम चल रहा था और ट्रेन धीमी रफ्तार के बजाय तेजी से ब्रिज को पार कर रही थी. ऐसे में 28 साल पहले भी पटरियों और रेल के पहियों की हालत वैसी ही थी जैसी आज है.

Advertisement

3. 20 अगस्त 1995 को उत्तर प्रदेश में दिल्ली-कानपुर सेक्शन पर फिरोजाबाद के पास एक भीषण रेल हादसा हुआ था. उस वक्त कानपुर से दिल्ली जा रही कालिंदी एक्सप्रेस ने ट्रैक पर आई एक गाय को टक्कर मार दी थी. इस टक्कर के बाद ट्रेन में कुछ तकनीकी खराबी आ गई और ड्राइवर ने ट्रेन रोक दी. इसी बीच उसी ट्रैक पर पीछे से आ रही पुरुषोत्तम एक्सप्रेस ने कालिंदी एक्सप्रेस को जोरदार टक्कर मार दी. इस हादसे में 400 लोग मारे गए और करीब 300 घायल हो गए थे. इस हादसे को भारत में हुई रेल दुर्घटनाओं में सबसे भयावह हादसों में गिना जाता है. आज जहां 400-500 किलोमीटर रफ्तार वाली बुलेट ट्रेन चलाए जाने की योजना भारत में बन रही है वहीं यहां की पटरियों पर जानवरों का आना आम है. अगर ट्रेन की पटरियों को कंटीले तारों से घेर दिया जाए तो ऐसे हादसे रोके जा सकते हैं.

4. 9 सितंबर 2002 को हावड़ा-दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस बिहार के औरंगाबाद में हादसे का शि‍कार हो गई थी. हादसा उस वक्त हुआ जब ट्रेन एक रिवर ब्रिज से गुजर रही थी. ट्रेन के 14 डिब्बे पटरी से उतरे और नदी में गिर गए. इस हादसे में 100 लोग मारे गए थे और 150 घायल हुए थे. हादसे की वजह इस पुल पर पटरियों का कमजोर होना बताया गया. नदी पर रेलवे का यह पुल साल 1916 में बना था. जानकार कहते हैं कि 1930 से पहले बने देश के ज्यादातार रेलवे पुल खतरनाक हैं. इन पुलों से हाई स्पीड ट्रेनों का गुजरना खतरे से खाली नहीं है.

Advertisement

5. पुलों पर जर्जर पटरियों के चलते होने वाले हादसों की लिस्ट वैसे तो काफी बड़ी है. 14 सितंबर 1997 को मध्य प्रदेश के बिलासपुर जिले में अहमदाबाद-हावड़ा एक्सप्रेस एक नदी में गिरी जिसमें 81 लोग मारे गए थे. 4 अगस्त 2015 की रात मध्य प्रदेश के ही हरदा जिले में कुदवा रेलवे स्टेशन के पास मुंबई से वाराणसी जा रही कामायनी एक्सप्रेस और मुंबई-जबलपुर जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गईं. इस हादसे में कम से 25 लोग मारे गए थे. बताया गया कि भारी बारिश की वजह से पटरियों के नीचे की मिट्टी धंस गई थी जिससे यह हादसा हुआ. इस रेल हादसे के बाद भी एक बार फिर इंफ्रास्टक्चर की कमी की बात सामने आई.

6. पंजाब के खन्ना में 26 नवंबर 1998 को हुए भीषण रेल हादसे में कम से कम 212 लोग मारे गए थे. हादसा उस वक्त हुआ जब जम्मूतवी सियालदह एक्सप्रेस पटरी से उतरी फ्रंटियर मेल के डिब्बों से टकरा गई थी. इन दोनों ट्रेनों में कुल मिलाकर करीब 2000 लोग सवार थे. यहां लुधि‍याना से अंबाला जा रही फ्रंटियर मेल (गोल्डन टेम्पल मेल) खन्ना और चावपैल स्टेशनों के बीच पटरी से उतर गई. इस वजह से इस ट्रेन के कुछ डिब्बे बगल वाले ट्रैक पर जा गिरे. इसी दौरान दूसरी दिशा से आ रही जम्मूतवी सियालदह एक्सप्रेस पटरियों पर गिरे डिब्बों से टकरा गई.

Advertisement

नहीं लिया सबक
इन हादसों के बाद भी भारतीय रेल अपने मुसाफिरों की सुरक्षा को लेकर कितनी गंभीर है, यह कानपुर रेल हादसे से साफ हो गया है. 1998 में बनी जस्टिस एच आर खन्ना कमेटी ने सेफ्टी को लेकर तमाम सिफारिशें की थीं. ये सिफारिशें रेलवे ने मान तो ली हैं लेकिन ये अभी कागजों पर ही दिखती हैं, जमीनी तौर पर इन्हें लागू किया जाना बाकी है.

कमेटी ने रेलवे के डिब्बों के बीच होने वाले घर्षण में सुधार के लिए अमेरिका और यूरोप की एजेंसियों से तालमेल कर जरूरी ऊपाय किए जाने की सलाह दी थी. मोबाइल ट्रेन रेडियो कम्युनिकेशन को प्रायरिटी पर रखने जाने की सलाह दी गई थी लेकिन अब भी यह मसला 'लो प्रायरिटी' पर है. रेलवे क्रॉसिंग पर सिग्नल की व्यवस्था में सुधार किए जाने की जरूरत है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई खासकर देश के 23,000 मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग पर.

डिजैस्टर ट्रेनिंग सेल बनाए जाने की बात भी खन्ना कमेटी ने की थी लेकिन आपदा प्रबंधन का स्तर अब भी उस स्तर पर नहीं है. सबसे जरूरी सिफारिश यह की गई थी कि रेल हादसों के बाद होने वाली जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए ताकि मुसाफिरों के भीतर भरोसा जगाया जा सके लेकिन इस सिफारिश को तो अभी तक माना ही नहीं गया है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement