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करगिल विजय दिवस: भारत-पाक जंग से ये 3 सबक सीखने जरूरी

भारतीय सेना ने आज ही के दिन 18 साल पहले पाकिस्तानी सैनिकों को मार भगा कर करगिल में जीत दर्ज की थी. वर्ष 1999 में करीब 60 दिनों तक चली इस जंग में 500 से ज्यादा भारतीय जवानों ने अपनी जान कुर्बान की थी. इस जंग से भारतीय सेना को कई ऐसे सबक सीखने को मिले, जो आज भी प्रासंगिक हैं.

वर्ष 1999 में करीब 60 दिनों तक चली इस जंग में 500 से ज्यादा जवान शहीद हुए थे. वर्ष 1999 में करीब 60 दिनों तक चली इस जंग में 500 से ज्यादा जवान शहीद हुए थे.
साद बिन उमर
  • नई दिल्ली,
  • 26 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 6:04 PM IST

भारतीय सेना ने आज ही के दिन 18 साल पहले पाकिस्तानी सैनिकों को मार भगा कर करगिल में जीत दर्ज की थी. हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस की वर्षगांठ मनाई जाती है. ऐसे में 18वें करगिल विजय दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री अरुण जेटली ने करगिल युद्ध के शहीदों का श्रद्धांजलि दी.

पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, मैं आज उन वीर जवानों के नमन करता हूं, जिन्होंने करगिल युद्ध के दौरान हमारे देश के नागरिकों की सुरक्षा और हमारे देश के गौरव के लिए बहादुरी से जंग लड़ी. इसके साथ ही उन्होंने कहा, करगिल विजय दिवस हमें भारत की सेना के साहस और भारत को सुरक्षित रखने में हमारे सशस्त्र बलों के महान बलिदानों की याद दिलाता है.'

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वहीं रक्षामंत्री अरुण जेटली ने अमर जवान ज्योति पर करगिल युद्ध के शहीदों को श्रद्धांजलि दी. इस दौरान जेटली के साथ सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत, नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा और एयरचीफ मार्शल बीरेंद्र सिंह धनोआ भी मौजूद थे.

यहां गौर करने वाली बात यह है कि वर्ष 1999 में करीब 60 दिनों तक चली इस जंग में 500 से ज्यादा भारतीय जवानों ने अपनी जान कुर्बान की थी. इस जंग से भारतीय सेना को कई ऐसे सबक सीखने को मिले, जो आज भी प्रासंगिक हैं.

1. रक्षा तैयारियों पर जोर जरूरी

करगिल एक सीमित युद्ध या यूं कहे कि एक संघर्ष ही था, हालांकि इसने भारत के खुफिया तंत्र की खामियों को उजागर किया और सीमावर्ती क्षेत्र में रक्षा और रसद आपूर्ति नेटवर्क को मजबूत करने की जरूरत की तरफ ध्यान दिलाया.

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एशियाई सुरक्षा व्यवस्था पर जनवरी 2000 में आयोजित सम्मेलन में तत्कालीन रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने कहा था कि करगिल युद्ध के दौरान भारत ने दिखाया कि हम आक्रमणकारियों की चुनी जगह पर किसी भी समय सीमित युद्ध लड़ और जीत सकता है.

इस युद्ध के करीब दो दशक बाद अब डोकलाम मुद्दे पर चीन के साथ भारत की तनातनी चल रही है. वहीं पाकिस्तान के साथ भी इसके रिश्ते नाजुक बने हुए हैं. ऐसे में भारत की युद्ध तैयारियों को लेकर भी चिंता बनी हुई है.

ऐसे में नियंत्रक एवं महा लेखापरिक्षक (कैग) की की हालिया रिपोर्ट ने इन चिंताओं को बढ़ाया ही है. इस रिपोर्ट में कहा गया कि कुल 152 प्रकार के महत्वपूर्ण गोला-बारूद में से 61 का स्टॉक 10 दिन तक चलने वाले संघर्ष में भी टिकने लायक नहीं. कैग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि गोलाबारूद में कमी की वजह से सैन्य मुख्यालय ने प्रशिक्षण कार्यक्रम पर भी 'रोक' लगा रखा है.

हालांकि रक्षामंत्री का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे अरुण जेटली ने मौजूदा संसद सत्र में कहा कि कैग की रिपोर्ट एक खास समयावधि पर आधारित है और इसके बाद से कई कदम उठाए गए हैं. उन्होंने कहा कि आज सैन्य बलों के पास पर्याप्त हथियार और गोलाबारूद हैं.

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2. कूटनीति और सुरक्षा

भारत और पाकिस्तान संबंधों को सुधारने की दिशा में फरवरी 1999 में आए लाहौर घोषणापत्र को अहम कदम माना जा रहा था. हालांकि इसके कुछ ही महीने बाद मई में करगिल की जंग छिड़ गई. इस युद्ध ने दिखाया कि द्विपक्षीय समझौते और सुरक्षा के मुद्दे हमेशा एक साथ नहीं चलते.

वहीं दिसंबर 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अफगानिस्तान यात्रा से लौटते हुए अचानक लाहौर उतर गए. प्रधानमंत्री मोदी का उनके पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ ने एयरपोर्ट पर गर्मजोशी से स्वागत किया. वहीं इसके हफ्ते भर बाद ही आतंकियों ने पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन पर हमला कर दिया, जिसमें सुरक्षा बल के 7 जवान और एक नागरिक की मौत हो गई थी.

3. पाकिस्तान सेना को साधे रखना जरूरी

इससे पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ से बातचीत की प्रक्रिया शुरू की थी, तब भी कई विशेषज्ञों का मानना था कि अक्टूबर 1998 में परवेज मुशर्रफ के पाकिस्तानी सेना प्रमुख बनने के बाद से ही युद्ध की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी.

हालांकि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कहते हैं कि वह सेना की योजना से अनभिज्ञ थे. वहीं जमीनी हकीकत यही कहती है कि पाकिस्तान में उसकी शक्तिशाली सेना ही इस तरह के फैसले लेती है.  

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