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करगिल युद्धः दिलीप कुमार ने शरीफ से कहा था- आप तो ऐसे न थे...

करगिल की लड़ाई के किस्से आज तक खुल रहे हैं. ऐसा ही नया किस्सा अटल बिहारी वाजपेयी, नवाज शरीफ और दिलीप कुमार के बीच का है, जो पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी की किताब ‘नीदर ए हॉक नॉर ए डव’ में सामने आया है.

aajtak.in
  • लाहौर,
  • 07 सितंबर 2015,
  • अपडेटेड 12:10 AM IST

करगिल की लड़ाई के किस्से आज तक खुल रहे हैं. ऐसा ही नया किस्सा अटल बिहारी वाजपेयी, नवाज शरीफ और दिलीप कुमार के बीच का है, जो पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी की किताब ‘नीदर ए हॉक नॉर ए डव’ में सामने आया है. बकौल कसूरी यह किस्सा उन्हें शरीफ के पूर्व प्रधान सचिव सईद मेहदी ने बताया था.

किस्सा कुछ यूं है कि करगिल की लड़ाई चल रही थी. शरीफ के फोन की घंटी बजी. फोन उस पार से था. उस वक्त प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी का. वाजपेयी ने शरीफ से कहा कि एक तरफ लाहौर में इतना गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया जा रहा था और दूसरी तरफ पाकिस्तान ने करगिल पर कब्जा करने में देर नहीं लगाई. शरीफ हैरान रह गए. बोले- आप क्या कह रहे हैं, मुझे कुछ नहीं मालूम. वाजपेयी ने फिर कहा कि लाहौर में उचित व्यवहार नहीं हुआ. शरीफ बोले- मैं आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ से चर्चा कर आपसे बात करता हूं. तभी वाजपेयी ने कहा कि मैं अपने पास बैठे एक शख्स से आपकी बात कराना चाहता हूं. लीजिए...

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और वो आवाज दिलीप कुमार की थी
सामने से आवाज दिलीप कुमार की थी. शरीफ फिर हैरान रह गए. दिलीप कुमार ने कहा, मियां साहेब! आपने हमेशा पाकिस्तान और हिंदुस्तान के बीच अमन के पैरोकार होने का दावा किया है. हम आपसे इसकी उम्मीद नहीं करते.

यह कहा था दिलीप ने शरीफ से
दिलीप ने शरीफ से कहा था कि मैं एक हिंदुस्तानी मुसलमान के तौर पर आपको बताना चाहता हूं कि हम दोनों मुल्कों के बीच तनाव के हालात में भारतीय मुस्लिम बहुत असुरक्षित हो जाते हैं. उन्हें अपने घरों से भी बाहर निकलना मुश्किल लगता है. इसलिए हालात को काबू रखने में मेहरबानी कीजिए.

वाजपेयी ने इसलिए कराई थी दिलीप से बात
दिलीप कुमार का पैतृक घर लाहौर में ही है. साथ ही उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से भी नवाजा जा चुका है.

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