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कर्नाटक में लिंगायत बहुल इलाकों में संघ प्रचारक कर रहे हैं कैंप

कर्नाटक में दलित समुदाय के बाद दूसरा सबसे बड़ा वोटबैंट लिंगायत समुदाय का है. राज्य में 17 फीसदी आबादी लिंगायत समुदाय की है. कर्नाटक की सत्ता पर वही सरकार काबिज होती है, जिसके पक्ष में ये समुदाय एकजुट होकर वोट करते हैं.

लिंगायत समुदाय के धर्म गुरु से मिलते बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह लिंगायत समुदाय के धर्म गुरु से मिलते बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 27 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 1:02 PM IST

कर्नाटक की सियासत के किंगमेकर कहे जाने वाली लिंगायत समुदाय को कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियां अपने-अपने पाले में लाने की जुगत में हैं. कांग्रेस ने लिंगायतों को साधने के लिए अलग धर्म का दर्जा देने का मास्टरस्ट्रोक चला है. जबकि लिंगायत समुदाय पिछले डेढ़ दशक से बीजेपी का परंपरागत वोटबैंक रहा है. ऐसे में बीजेपी की ओर से लिंगायतों को साधने का जिम्मा आरएसएस ने संभाल लिया है. संघ के वरिष्ठ प्रचारक पिछले 15 दिनों से लिंगायत बहुल इलाकों में डेरा जमाए हुए हैं.

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कर्नाटक में दलित समुदाय के बाद दूसरा सबसे बड़ा वोटबैंट लिंगायत समुदाय का है. राज्य में 17 फीसदी आबादी लिंगायत समुदाय की है. कर्नाटक की सत्ता पर वही सरकार काबिज होती है, जिसके पक्ष में ये समुदाय एकजुट होकर वोट करते हैं.

जनता दल के रामकृष्ण हेगड़े हों या कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल. लेकिन राजीव गांधी द्वारा पाटिल का अपमान कर मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद से लिंगायतों ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया. हेगड़े के बाद येदियुरप्पा उनके पसंदीदा नेता बने, लेकिन 2011 में सीएम के पद से उन्हें हटाया तो लिंगायत समुदाय का बीजेपी से मोहभंग हो गया. इसी का नतीजा रहा कि बीजेपी 2013 में तीसरे पायदान पर आ गई. बीजेपी ने लिंगायत समुदाय के वोटों की ताकत को देखते हुए येदियुरप्पा पर दांव खेला है.

राज्य के कुल 224 विधायकों से से मौजूदा समय में 52 लिंगायत समुदाय से हैं. अब तक जितने सीएम हुए हैं उनमें से अकेले 8 लिंगायत समुदाय से हुए हैं लिंगायतों को साधने और उनके वोटों को एकमुश्त पाने के लिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तक सभी लिंगायत धर्मगुरुओं के चक्कर काट रहे हैं.

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लिंगायत समुदाय बीजेपी का परंपरागत वोटबैंक माना जाता था. कर्नाटक में कांग्रेस के चेहरा सिद्धारमैया ने लिंगायतों के अलग धर्म के दर्ज की मांग को मान्यता देकर उन्हें साधने की कोशिश की है. हालांकि सिद्धारमैया की इस कदम से वीरशैव नाराज हैं और सिद्धारमैया पर हिंदू धर्म को बांटने का आरोप लगा रहा है. जबकि लिंगायत समुदाय कांग्रेस से काफी हद तक खुश है. ऐसे बीजेपी के सीएम रहते हुए बीएस येदियुरप्पा ने कदम उठाया था, लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके थे.

कांग्रेस के पाले में जाते दिख रहे लिंगायतों को साधने के लिए आरएसएस कर्नाटक की रणभूमि में उतर गया है. संघ के करीब 30 वरिष्ठ प्रचारक पिछले 15 दिनों से लिंगायत बहुत इलाके में कैंप किए हुए हैं. संघ प्रचारकों की यही कोशिश में लगा है कि लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा संबंधी कांग्रेस के सियासी दांव को वो  विफल कर सके.

लिंगायत बहुल इलाकों में संघ के प्रचारक कांग्रेस के कदम को हिंदुओं को बांटने की राजनीति के तौर पर प्रचारित कर रहे हैं. इसके अलावा संघ ये भी लिंगायत समुदाय को बताने में जुटा है कि कांग्रेस को इस समुदाय की इतनी चिंता है तो उसने इसी समुदाय का मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा क्यों नहीं की? जबकि बीजेपी लिंगायत समुदाय के बीएस येदियुरप्पा को सीएम उम्मीदवार घोषित किया है.  

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