
कर्नाटक की सत्ता पर बीएस येदियुरप्पा काबिज हो चुके हैं और एक बार फिर बीजेपी की सरकार बनी है. हालांकि बीजेपी को बहुमत से 8 सीटें कम हैं. दूसरी ओर जेडीएस और कांग्रेस ने चुनावी नतीजों के बाद आपस में हाथ मिला लिया है. दोनों पार्टी मिलकर चुनाव लड़ती तो आज उन्हें सत्ता के लिए संघर्ष करना नहीं पड़ता है. इसके बावजूद अगर कांग्रेस-जेडीएस मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ते हैं तो कर्नाटक में बीजेपी के खाते में महज आधा दर्जन ही सीटें आ सकेंगी.
कांग्रेस-जेडीएस दोनों दल मिलकर विधानसभा के रण में उतरते तो कहानी कुछ और होती. बीजेपी को महज 68 सीटों पर रोक सकते थे. वहीं इन दोनों के गठबंधन को करीब 156 सीटें हासिल हो सकती थीं. अगर सबकुछ ठीक रहा तो कांग्रेस और जेडीएस का ये गठबंधन लोकसभा चुनाव 2019 में भी जारी रहेगा जो कि बीजेपी को कर्नाटक में अपने किले को बचाए रखना बड़ी चुनौती होगी.
कुछ जानकारों के मुताबिक, जेडीएस और कांग्रेस गठबंधन को मिले प्रतिशत के आधार पर अगर लोकसभा क्षेत्रों के हिसाब से आंकलन करें तो बीजेपी को कर्नाटक में 28 में से केवल 6 सीटों से ही संतोष करना होगा. जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में 17 सीटें जीतने में सफल रही है.
लोकसभा चुनाव 2019 में कर्नाटक के बगलकोट, हावेरी, धारवाड़, उडुपी-चिकमंगलूर, दक्षिण कन्नड़ और दक्षिण बगलकोट में बीजेपी को जीत मिल सकती है. इसके अनुसार, बीजेपी हैदराबाद-कर्नाटक और दक्षिण कर्नाटक में कोई सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकती है. जबकि वर्तमान मत प्रतिशत के आधार पर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के खाते में 22 सीटें जा सकती हैं.
वास्तव में, कर्नाटक की स्थिति कमोवेश उत्तर प्रदेश की तरह है जहां समाजवादी पार्टी और बसपा ने बीजेपी की ताकत को कम कर आंका और अलग-अलग चुनाव लड़ा था. उसी प्रकार कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व को नजरअंदाज कर अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया और इसका नतीजा ये हुआ कि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. लेकिन अब दोनों दल एक दूसरे के साथ खड़े हैं और बीजेपी को सत्ता में रोकने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.