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कर्नाटक में मठ और वोट का नाता अटूट

लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने के सुझाव को मंजूरी देने के बाद सिद्धरामैया सरकार ने क्या भाजपा को बड़ा झटका दे दिया है?

लिंगायत को मिला धर्म का दर्जा लिंगायत को मिला धर्म का दर्जा
संध्या द्विवेदी/मंजीत ठाकुर
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  • 20 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 7:07 PM IST

कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने के सुझाव को मंजूरी दे दी है. आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए इसे बड़ा कदम माना जा रहा है. कर्नाटक की राजनीति में मठों और वोटों का मजबूत नाता है.

आएसएस की बेंगलूरू में 3 मार्च को समन्वय बैठक में सब ओर गंभीरता छाई हुई थी. मगर जैसे ही केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने यह संदेश दिया कि मठों में भाजपा नेताओं के पहुंचने के लिए रजामंदी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने हासिल कर ली है, तने हुए चेहरों पर कुछ सुकून का भाव दिखने लगा.

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इससे यह अंदाजा तो लगता ही है कि कर्नाटक मठों की क्या अहमियत है लेकिन यह भी जाहिर होता है कि भाजपा को मठों के साथ की किस बेताबी से दरकार है. हालांकि यह रजामंदी भी आसानी से हासिल नहीं की जा सकी है.

वह वाकया भी दिलचस्प है. पिछले साल जुलाई के अंतिम सप्ताह में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कर्नाटक दौरे का कार्यक्रम तय कर चुके थे. मगर इसके पहले वे वोक्कालिग्गा समुदाय के सबसे प्रमुख मठ आदि चुनचनगिरी के स्वामी निर्मलानंद से मिलने का वक्त चाह रहे थे.

पता चला कि स्वामी देश से बाहर हैं. आखिर शाह ने खुद फोन लगाकर निर्मलानंद से बात की और 12 अगस्त को मुलाकात का समय लिया. इस तरह उन्हें अपना दौरा दो हफ्ते तक टालना पड़ा.

चुनचनगिरी मठ के स्वामी से मिलने के लिए शाह की इतनी उतावली अनायास नहीं थी. भाजपा के 'चाणक्य', शाह इस बात से वाकिफ हैं कि कर्नाटक में सत्ता मठों से होकर गुजरती है. फिर वोक्कालिग्गा समुदाय के बड़े नेता पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा  माने जाते हैं और उनकी पार्टी जनता दल (सेकूलर) का चुनचनगिरी मठ पर खासा प्रभाव माना जाता है.

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सो, अमित शाह और भाजपा की कोशिश इस बार मठ का आशीर्वाद पाने की है, ताकि वोक्कालिग्गा समुदाय में पैठ बनाई जा सके.

खैर, 12 अगस्त को अमित शाह की निर्मलानंद से भेंट 5 घंटे से अधिक समय तक चली. हालांकि निर्मलानंद कहते हैं, ''इतनी लंबी मुलाकात में सियासत की कोई बात नहीं हुई. हां, राज्य और देश की स्थिति को लेकर बातचीत जरूर हुई लेकिन न तो भाजपा अध्यक्ष ने कोई समर्थन मांगा, न ही मठ राजनैतिक रूप से किसी का समर्थन या विरोध करता है.''

हालांकि मठ के सूत्रों का कहना है कि अमित शाह निर्मलानंद को इस बात के लिए राजी कर गए कि उनका आशीर्वाद लेने भाजपा के दूसरे बड़े नेता और केंद्र सरकार के मंत्री मठ आते रहेंगे. इस लंबी मुलाकात के बाद राज्य में चर्चा चल पड़ी कि वोक्कालिग्गा मठ के स्वामी का झुकाव भाजपा की ओर है.

वे भाजपा के समर्थन की बात भले न करें मगर विरोध तो नहीं ही करेंगे. उसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी निर्मलानंद से मिले.

अमित शाह के दौरे के बाद अनंत कुमार, सदानंद गौड़ा जैसे केंद्रीय मंत्री भी आदि चुनचनगिरी मठ का दौरा कर चुके हैं. मठ से मिली जानकारी के मुताबिक, स्वामी निर्मलानंद से मिलने का समय मांगने वाले केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की लंबी फेहरिस्त है.

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फिलहाल उन्हें समय नहीं दिया गया है, क्योंकि स्वामीजी का आदेश है कि राजनैतिक कार्यक्रम के दौरान कर्नाटक आने वाले किसी भी दल के नेता से वे मिलना नहीं चाहते.

दरअसल, कर्नाटक में मठ सिर्फ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र ही नहीं हैं, ये बेहद अहम 'सामाजिक संस्था' की भूमिका में होते हैं. गरीब बच्चों के लालन-पालन से लेकर, शिक्षा-दीक्षा तक की व्यवस्था मठ की ओर से होती है.

इनके दरवाजे सभी धर्म और जाति के लोगों के लिए खुले होते हैं. इस लिहाज से यहां के मठ किसी सरकारी संस्था की तरह काम करते हैं. जो मुद्दे किसी भी राजनैतिक दल के घोषणा-पत्र का हिस्सा हो सकते हैं, वे सभी काम मठ सौ साल से करते आ रहे हैं.

गरीबों को भोजन, बच्चों को शिक्षा, गरीब घर की लड़कियों की शादी, इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज तथा अन्य शिक्षण संस्थान सब कुछ मठों के तहत चलता है. लिहाजा, जानकारों के मुताबिक, राज्य की बड़ी आबादी (कुछ लोगों के मुताबिक 85 फीसदी तक) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी मठ से जुड़ी हुई है.

राज्य के सभी 30 जिलों में मठों का जाल फैला हुआ है. जातीय समीकरण के लिहाज से मठों का अपना प्रभुत्व और दबदबा है जो राजनैतिक दलों को उनकी ओर आकर्षित करता है. राज्य में सबसे अधिक दबदबे वाले लिंगायत समुदाय की संख्या 18 फीसदी है.

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इस समुदाय का मुख्य मठ सिद्धगंगा बेंगलूरू से लगभग 80 किलोमीटर दूर तुमकुर में है. इस मठ को भाजपा समर्थक माना जाता है. इसके प्रमुख शिवकुमार स्वामी 110 साल के हो चुके हैं और बीमार हैं. मठ का सारा काम अब सिद्धलिंगा स्वामी देखते हैं. वे कहते हैं, 'राज्य' में हमारे मठों की संख्या 400 से अधिक है.

मठ किसी राजनैतिक दल का न तो विरोध करता है, न ही समर्थन. हम सामाजिक सरोकार से जुड़े काम को पूरी लगन के साथ करते हैं और सभी का सहयोग हमें मिलता है.'' न मठ किसी राजनैतिक दल का समर्थन नहीं करता है तो फिर सिद्धगंगा मठ को भाजपा का समर्थक क्यों कहा जाता है?

सिद्धलिंगा स्वामी का जवाब है, ''शायद भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बी.एस. येदियुरप्पा के लिंगायत समुदाय से होने की वजह से ऐसा है. लेकिन हमारे मठ में अन्य दलों और अन्य समुदाय के नेता भी आते हैं. हम राजनैतिक रूप से निरपेक्ष हैं.''

जनसंख्या के लिहाज से कर्नाटक की दूसरी प्रभावी जाति वोक्कालिग्गा है. इसकी आबादी 12 फीसदी है. इस समुदाय का प्रमुख मठ आदि चुनचनगिरी है. इसे जनता दल (सेकूलर) समर्थक मठ माना जाता है.

एचडी देवेगौड़ा वोक्कालिग्गा समुदाय के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. मठ का प्रभाव दक्षिण कर्नाटक में अपेक्षाकृत अधिक है. यह राज्य का वही इलाका है जहां 1985 के बाद से जेडीएस के सबसे अधिक विधायक जीतते हैं.

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राज्य में वोक्कालिग्गा समुदाय के 150 मठ हैं, जिनमें ज्यादातर दक्षिण कर्नाटक में हैं. मठ के दर्जनों शिक्षण संस्थान हैं. हालांकि मठ में किसी भी जाति या धर्म के बच्चों के लिए कोई प्रतिबंध नहीं है लेकिन सबसे अधिक बच्चे वोक्कालिग्गा समुदाय से ही हैं.

मठ के स्वामी निर्मलानंद इस बात से तो इनकार करते हैं कि, मठ जेडीएस समर्थक है लेकिन मठ के लोग परोक्ष रूप से यह स्वीकार करते हैं कि, ''वोक्कालिग्गा समुदाय समाज के हर क्षेत्र में चाहे वह राजनीति ही क्यों न हो आगे बढ़े, यह मठ चाहता है.''

मठ के प्रमुख स्वामी निर्मलानंद कहते हैं, ''मठ को किसी राजनैतिक पार्टी का समर्थक बताना ठीक नहीं है. ऐसा होता तो भाजपा, कांग्रेस और दूसरे दलों के नेता क्यों आते. हमसे जो भी श्रद्धा से मिलना चाहता है, सभी के लिए हमारे दरवाजे खुले हैं.''

तीसरा प्रमुख मठ कुरबा समुदाय से जुड़ा हुआ है. 80 से अधिक मठ इस समुदाय से जुड़े हैं. मुख्य मठ दावणगेरे में श्रीगैरे मठ है. मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धरामैया इसी समुदाय से आते हैं. राज्य में कुरबा आबादी 8 फीसदी है.

इसके अलावा सुत्तुर मठ-मैसूरू, आस्था मठ-उडुपी, मुरुसविरा मठ-हुबली, कमापरी मठ-चिकमंगलुर वगैरह प्रमुख हैं. इन मठों से एससी-एसटी समुदाय के लोग जुड़े हुए हैं. हर राजनैतिक दल के नेता इन मठों का समर्थन पाने की जुगत में हैं.

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सिद्धरामैया लिंगायत को धर्म का दर्जा देकर भाजपा को देंगे तगड़ा झटका!

पूरी भाजपा इस बार आदि चुनचनगिरी मठ (वोक्कालिग्गा) को साधने की कोशिश में इसलिए लगी है क्योंकि मुख्यमंत्री सिद्धरामैया ने भाजपा समर्थक माने जाने वाले तुमकुर मठ में अपनी पैठ बना ली है. मुख्यमंत्री ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने की पहल शुरू कर दी है.

इससे लिंगायत समुदाय या कम से कम मठ का झुकाव सिद्धरामैया की तरफ होता दिख रहा है. सिद्धलिंगा स्वामी कहते हैं, ''मुझे पता है कि मुख्यमंत्री ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने की बात की है. ऐसा होता है तो निश्चित रूप से अल्पसंख्यक धर्म के लोगों को जो संवैधानिक और कानूनी लाभ मिलता है वह लिंगायत समुदाय को भी मिलेगा. मठ समुदाय के कल्याण के लिए ही काम कर रहा है, कोई इसमें मदद करता है तो उसका धन्यवाद.''

दरअसल, सिद्धरामैया ने इस शिगूफे से भाजपा को झटका देने की कोशिश की है. भाजपा इस मुद्दे पर कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है सिवा इसके कि ऐसा करना संभव नहीं है. भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदियुरप्पा कहते हैं, ''कांग्रेस ने सिर्फ सियासी बयानबाजी की है.

महज लिंगायत ही नहीं अन्य समुदाय के लोगों का भी भाजपा को समर्थन है. लोग कांग्रेस की साजिश में फंसने वाले नहीं हैं.''

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दूसरी ओर, मुख्यमंत्री सिद्धरामैया कहते हैं, ''राज्य में जितने भी मठ हैं उन सब का समर्थन कांग्रेस को है. लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा देने के मुद्दे पर येदियुरप्पा चुप्पी साधे क्यों बैठे हैं?''

मठ के स्वामी भले यह दावा करें कि वे राजनैतिक रूप से निष्पक्ष हैं लेकिन हकीकत यह है कि कर्नाटक में न तो मठ के बिना सियासत है, न सियासत के बिना मठ.

राज्य के मुद्दों से लेकर, प्रत्याशियों के चयन तक में मठ प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शामिल हैं. सत्ता मिलने के बाद मंत्रिमंडल तक में मठों की पैठ है.

मठ के लोगों से मिली जानकारी के मुताबिक, हर दल के नेता मठ के स्वामी को पार्टी के हर फैसले की तत्काल जानकारी देते हैं.

मसलन, टिकट बंटबारे में किस समुदाय के लोगों को कितनी टिकट मिली, जिन लोगों की पैरवी मठ ने की थी उनमें कितनों को टिकट दिया गया, वगैरह. इसके बाद ही मठ यह फैसला करता है कि किस दल को वोट देने का परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से संदेश अनुयायियों को दिया जाए.

मठों की तरफ से किसी भी दल या प्रत्याशी को समर्थन देने के संकेत भी मजेदार हैं.

भाजपा को समर्थन देने के लिए भक्तों को प्रवचन या दर्शन देते वक्त स्वामी अपने हाथ की उंगलियों को पुष्प आकार में रखते हैं. या फिर हाथ में कोई पुष्प लेकर विराजमान होते हैं या दर्शन के बाद जाने से पहले श्रद्धालुओं पर फूल फेंकते हैं.

कांग्रेस को समर्थन देना है तो स्वामी हाथ ऊपर उठाकर रखते हैं. जेडीएस को वोट करने के लिए कहना है तो स्वामी अपना अंगवस्त्रम (तौलिया-गमछा) को बाएं कंधे पर रखते हैं. जेडीएस नेता देवेगौड़ा अपने बाएं कंधे पर अंगवस्त्रम रखते हैं. बहरहाल, मठों की अहमियत से हर पार्टी के नेता आजकल आशीर्वाद पाने को लालायित हैं.

''मैं या मेरा मठ राजनीति से दूर है''

मठ क्या इस बार भाजपा को समर्थन देगा?

न तो मठ, न मैं किसी भी सियासत से जुड़ा हूं. हम आध्यात्मिक साधना में लगे हैं. सामाजिक काम के तहत हम गरीब बच्चों की शिक्षा, विवाहयोग्य गरीब लड़कियों की शादी करवाने जैसे कार्यक्रम चलाते हैं. आप ने खुद देखा है कि कैसे सामुहिक विवाह हो रहा है, बच्चे किस तरह से शिक्षा ले रहे हैं. आप को कैसे लगा कि हम राजनीति कर रहे हैं.

मठ में भाजपा के बड़े-बड़े नेता आ रहे हैं. अमित शाह भी आपसे मिलने आए थे. आए दिन कोई न कोई नेता आपसे मिलने आ रहा है.

मठ में कोई भी आ सकता है. किसी के लिए कोई रोक-टोक नहीं है. हर पार्टी के लोग यहां आते हैं. श्रद्धा से यहां लोग आशीर्वाद लेने आते हैं चाहे कोई राजनैतिक व्यक्ति हो या अन्य. कोई सियासत की बात नहीं.

पांच घंटे तक अमित शाह और आपके बीच बातचीत होती रही. क्या यह संभव है कि उन्होंने कोई राजनैतिक बात नहीं की होगी?

(हंसते हुए) मैंने पिछले तीस साल में किसी भी मीडिया से बातचीत नहीं की. पहली बार इंडिया टुडे से बात कर रहा हूं. मैं इंडिया टुडे का पाठक भी हूं. आपके जरिए आपके पाठकों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि अमित शाह के साथ कोई सियासी बातचीत नहीं हुई है. हां, यह सच है कि हमारी भेंट में देश की स्थिति, राज्य की स्थिति को लेकर भी विचार साझा हुआ लेकिन न तो उन्होंने कोई समर्थन मांगा, न ही मैंने उनसे पूछा कि उनके यहां पधारने का कोई राजनैतिक उद्देश्य भी है.

लेकिन योगी आदित्यनाथ तो आपके करीबी हैं. वे भी आपसे मिलने आए थे. अब भी आप यही कहेंगे कि अचानक से भाजपा के इतने नेता आपसे मिलते तो हैं लेकिन कोई सियासी बात नहीं होती है.

देखिए. योगी आदित्यनाथ की जहां तक बात है तो वे भी एक मठ से जुड़े हुए हैं. हमारे बीच रिश्ता सिर्फ यह है कि हम अपने मठ में जिस अष्टविधि को अपनाते हैं वही विधि गोरखधाम मठ में भी अपनाई जाती है. इस तरह हम धर्मभ्राता हुए.

क्या आप इस बात को सही मानते हैं कि कोई संत या योगी मंत्री, मुख्यमंत्री बने. जैसे योगी आदित्यनाथ बने.

राजनीति भी सेवा का एक माध्यम है. मैं इस बारे में सिर्फ इतना ही कहूंगा कि मैं या मेरा मठ राजनीति से दूर हैं. एक किस्सा बता दूं कि हाल ही में एक एमएलए ने यह बयान दे दिया कि उत्तर प्रदेश में योगी सीएम हो सकता है तो फिर कर्नाटक में क्यों नहीं. उनके इस बयान से हमारे अनुयायी नाराज हो गए. उन्होंने उस एमएलए का पुतला तक फूंक दिया. उन्हें लगा कि हमारे स्वामीजी को (मुझे) राजनीति में ले जाया जाएगा. बाद में मैंने लोगों से कहा कि मैं उनके बीच ही हूं, मठ छोड़कर कहीं नहीं जा रहा हूं.

लेकिन भाजपा के इतने नेताओं से मिलने से आपके अनुयायियों में यह संदेश तो जा सकता है कि आपका समर्थन भाजपा के साथ है. शायद भाजपा की मुलाकात की राजनीति यही हो.

जी हां, यह हो सकता है. इसलिए हमने स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी राजनैतिक व्यक्ति अपनी पार्टी के राजनैतिक कार्यों के लिए कर्नाटक आता है और मुझसे मिलना चाहता है तो आदरपूर्वक मना कर दिया जाए. हां, अगर कोई सिर्फ मुझसे मिलने आ रहा है तो सुविधानुसार उसे समय दे दिया जाए.

बातचीतः सिद्धलिंगा स्वामी (तुमकुर मठ प्रमुख)

 ''मठों के बीच विरोध नहीं''

भाजपा नेता इस बार आदि चुनचनगिरी मठ अधिक जा रहे हैं. आपके पास क्यों नहीं आ रहे?

ऐसा नहीं है. कोई भी व्यक्ति किसी भी मठ में जाए, यह अच्छी बात है. हमारे मठ में सभी राजनैतिक दलों के लोग आते हैं. भाजपा के लोग भी काफी संख्या में आते हैं.

आपको नहीं लगता है कि आदि चुनचनगिरी मठ को अधिक तवज्जो मिल रही है?

(हंसते हुए) मठों के बीच कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है. हम सब लोगों की भलाई के लिए ही काम कर रहे हैं. सैकड़ों साल से काम कर रहे हैं. हजारों लोग मठों में दर्शन के लिए रोज आते हैं. तुमकुर मठ हो या आदि चुनचनगिरी हम आपस में एक दूसरे का आदर करते हैं. एक दूसरे के कार्यक्रम में भी हिस्सा लेते हैं.

कांग्रेस ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने की बात की है. आप कांग्रेस की मदद करेंगे?

हमें मालूम है यह बात. लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा मिलता है तो अल्पसंख्यक धर्म को मिलने वाली सुविधा हमारे समुदाय के लोगों को भी मिलेगी. हमें इस पर कोई ऐतराज नहीं. रही बात कांग्रेस के समर्थन की तो हम साफ कर चुके हैं कि किसी भी राजनैतिक गतिविधियों में मठ शामिल नहीं है. धर्म का दर्जा देना या क्या हो सकता है, यह काम सरकार का है चाहे सरकार किसी की हो.

आप चाहेंगे कि अधिक से अधिक लिंगायत समुदाय के लोग विधायक-सांसद चुने जाएं?

यह काम जनता का है. हां, इतना जरूर है कि हमारे समुदाय का कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में तरक्की करे तो पूरे समाज का भला होता है. इस सरकार में भी बहुत से विधायक और मंत्री लिंगायत समुदाय से हैं. आगे भी होंगे.

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