
कर्नाटक में ढाई दिन तक चली सियासी गहमागहमी के बाद आखिरकार मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया. विधानसभा में संख्या बल न जुटा पाने के चलते बीजेपी की ये सरकार महज 55 घंटे चल सकी. सवाल उठता है कि बीजेपी से आखिर कहां रणनीति के स्तर पर चूक हुई जिसके चलते उसकी सरकार तो नहीं बनी लेकिन फजीहत उसे पूरी झेलनी पड़ी. इस पूरी प्रक्रिया में पार्टी की छवि पर कुछ दाग तो ऐसे लगे हैं जिन्हें लेकर विपक्ष लंबे समय तक उसे घेरता रहेगा.
चुनाव परिणाम सामने आने के बाद कांग्रेस (78 सीटें) ने जेडीएस (37 सीटें) से दोगुनी सीट होते हुए भी कुमारस्वामी को सीएम पद का ऑफर दे दिया. इससे कर्नाटक में सत्ता की लड़ाई और भी पेचीदा हो गई. 221 सीटों पर हुए विधानसभा चुनावों में 104 सीटें लाने के बावजूद बीजेपी सरकार नहीं बचा सकी.
बीएस येदियुरप्पा को भले ही राज्यपाल वजुभाई वाला ने सीएम पद की शपथ दिला दी, लेकिन वह फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित नहीं कर सके. इस पूरे प्रकरण में बीजेपी को ही नुकसान उठाना पड़ा और कदम-दर-कदम कांग्रेस उसपर बीस साबित हुई.
दक्षिण में बीजेपी का इंतजार बढ़ा
कर्नाटक को बीजेपी की ओर से कांग्रेस का 'आखिरी किला' प्रचारित किया जा रहा था. बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के आक्रामक प्रचार अभियान और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति से कांग्रेस का आखिरी किला लगभग ढहा ही दिया था, लेकिन कांग्रेस ने सीएम पद का बलिदान देकर पूरा खेल ही बदल दिया. इस तरह बीजेपी की दक्षिण भारत में एंट्री और कांग्रेस मुक्त भारत का सपना कर्नाटक में पूरा नहीं हो सका.
अमित शाह पर भारी पड़ीं सोनिया गांधी
सोनिया गांधी ने चुनाव परिणाम आने से 1 दिन पहले ही पार्टी के सीनियर नेता गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत को कर्नाटक भेज दिया था. बीजेपी ने भी प्रकाश जावड़ेकर, धर्मेंद्र प्रधान और केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े को कर्नाटक भेजा, लेकिन तब तक काफी देर हो गई थी. सोनिया के कहने पर ही मतगणना वाले दिन आजाद ने एच डी देवगौड़ा को फोन किया और उनके बेटे कुमारस्वामी को सीएम पद ऑफर किया. इसके बाद बीजेपी चार दिनों तक जोड़-तोड़ की कोशिश करती रही, लेकिन सरकार नहीं बचा सकी.
बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की किरकिरी
इस पूरे प्रकरण के दौरान बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को भी किरकिरी झेलनी पड़ी. दागी येदियुरप्पा को सीएम उम्मीदवार बनाने को लेकर कांग्रेस पहले ही बीजेपी पर हमलावर थी. मोदी ने उनके साथ सिर्फ एक सभा की. उनके विवादित शपथ ग्रहण समारोह में भी पीएम नरेंद्र मोदी या अमित शाह मौजूद नहीं रहे. बाद में येदियुरप्पा, उनके बेटे विजयेंद्र और जनार्दन रेड्डी के कांग्रेसी विधायकों को धन और पद का ऑफर देते ऑडियो भी सामने आए. इससे भी बीजेपी को शर्मसार होना पड़ा. पूरे मामले में बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व पर्दे के पीछे ही बना रहा.
सुप्रीम कोर्ट में भी फजीहत
कांग्रेस और जेडीएस ने कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला के येदियुरप्पा को सीएम बनाने, बीजेपी को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय देने और जूनियर विधायक केजी बोपैया को प्रोटेम स्पीकर बनाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने 15 दिन की समय-सीमा को 24 घंटे करने के अलावा बहुमत परीक्षण की प्रकिया के लाइव प्रसारण की भी इजाजत दे दी. इस मामले में भी बीजेपी को निराशा ही हाथ लगी.
अनुचित परंपरा पर उठने लगे सवाल
कर्नाटक की उठापटक पर देश भर के लोगों की नजरें लगी रहीं. 2014 के बाद से ही बीजेपी लगातार कांग्रेस मुक्त भारत की बात करती रही तो कांग्रेस समेत विपक्षी दल केंद्र सरकार पर राज्यपाल के जरिए राज्यों की राजनीति में दखल देने का आरोप लगा रहे थे. कर्नाटक मामले में यह लड़ाई खुलकर आम लोगों के बीच में आ गई. कांग्रेस और जेडीएस ने राज्यपाल के लगभग सभी अहम फैसलों पर सवाल उठाए.
सुप्रीम कोर्ट में करीब 10 हफ्तों बाद इस मामले की भी सुनवाई होनी है कि सबसे बड़ी पार्टी के पास बहुमत न होने और पोस्ट पोल अलायंस के पास बहुमत होने पर किसे पहले बहुमत परीक्षण के लिए कहा जाए और राज्यपाल की भूमिका की समीक्षा हो सकती है या नहीं. कांग्रेस इस मामले में केवल सुप्रीम कोर्ट ही नहीं लोगों के बीच भी यह संदेश देने में सफल रही कि केंद्र में बैठी बीजेपी की सरकार अनुचित तरीके अपना रही है.
बीजेपी के लिए कर्नाटक का सबसे बड़ा सबक 2019 के लिए निकलकर सामने आया है. 2019 में बीजपी के खिलाफ संयुक्त विपक्षी गठबंधन बनता दिख रहा है. इसमें एनडीए के कुछ घटक दल भी शामिल हो सकते हैं. बीजेपी को संयुक्त विपक्ष से पहला झटका बिहार विधानसभा चुनावों में मिला था. हालांकि, बीजेपी ने विपक्षी एकता को यूपी विधानसभा चुनावों में मात दे दी थी. लेकिन मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले कर्नाटक में सरकार न बना पाना बीजेपी के लिए अच्छा संकेत नहीं है. मोदी लहर के अलावा तिकड़मी राजनीति में हार मिलना भी बीजेपी के मनोबल पर नकारात्मक असर डालेगा. इसके अलावा आने वाले चुनावों में बीजेपी को आक्रामक संयुक्त विपक्ष का भी सामना करना होगा.