
वनकर्मी से हाथियों का तस्कर बने कुंजुमन देवासे को लगता है कि उनका सबसे बुरा दौर गुजर चुका है. केरल और शायद देशभर के सबसे बड़े हाथी तस्करी के मामले में साल भर न्यायिक हिरासत में जेल में रहने के बाद 25 अगस्त को जमानत पर बाहर आया यह व्हिसलब्लोअर एर्णाकुलम जिले के इदमलयार जंगलों के किनारे बसे सुदूर गांव कलारिकुडी में शांति से अपना जीवन बिताने की कोशिश में है. वह अब भी अवैध शिकार के 16 मामलों में दोषी है. उसकी पत्नी की मानसिक हालत ठीक नहीं है, लेकिन इस शख्स को इस बात का कोई खेद नहीं है कि इसने तस्करी गिरोह का भंडाफोड़ किया. कुंजुमन कहता है, ''मेरा कोई भविष्य नहीं. लेकिन मेरी अंतरात्मा मुझे कचोट रही थी. यह तो करना ही था.''
वन सुरक्षाकर्मी रह चुके कुंजुमन का यह सफर 3 जून, 2015 को शुरू हुआ जब 62 वर्षीय यह शख्स करीमबनी रेंज के अफसर (एर्णाकुलम जिले के मलयातूर वन प्रखंड के अंतर्गत) के पास पहुंचा और उसने वहां बैठे अफसरों को यह बताकर चौंका दिया कि कैसे उसने कई मौकों पर 'इन्कारा' वासु के तस्करी गिरोह का साथ देते हुए वझाचल, थुंडाथिल, मुन्नार और परम्बिकुलम वन अभयारण्य में दो साल में 20 से ज्यादा हाथियों की जान ली थी.
डिप्टी रेंज ऑफिसर के.पी. सुनील कुमार को यह सुनकर लगा कि आदमी बुढ़़ापे में पागल हो गया है. उन्होंने उसे मनोचिकित्सक के पास जाने की सलाह दे डाली. कुंजुमन अपनी बात पर अड़ा रहा और उसने उस इलाके के जाने-माने अपराधियों के नाम और मोबाइल नंबर सामने रख दिए (जिनमें अधिकतर को 'निष्क्रि' समझा जाता था). सुनील कुमार ने इसके बावजूद प्राथमिक जांच का आदेश नहीं दिया और कुंजुमन का बयान दर्ज नहीं किया. जब उसने जोर दिया, तो अधिकारी ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसके ऊपर हाथी के एक बच्चे को मारने का आरोप मढ़ दिया. विडंबना यह थी कि इसी हत्या की वजह से कुंजुमन ने तस्करों का साथ छोड़ दिया था.
कुंजुमन ने अपना बयान दर्ज करवाने पर जोर दिया और इसके बाद एक खबर सार्वजनिक हो गई कि स्थानीय वन अधिकारी तस्करी के एक मामले को दबाने की कोशिश कर रहे हैं. तब जाकर राज्य के तत्कालीन वन मंत्री तिरुवंचियूर राधाकृष्णन ने जांच का आदेश जारी किया. जांच की अगुवाई करने वाले भारतीय वन सेवा के अधिकारी सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ''उसके बयान आंख खोलने वाले थे. ऐसा पहली बार हो रहा था कि खुद एक तस्कर अपने ही गिरोह के बारे में विवरणों के साथ इकबालिया बयान दे रहा था. यह प्रतिशोध से कहीं ज्यादा ''वन्यजीव न्याय' था. कुंजुमन ने अगर केरल के जंगलों में काम कर रहे गिरोह की बात नहीं की होती, तो किसी को अंदाजा तक नहीं लग पाता कि किस स्तर पर हाथियों का शिकार यहां हो रहा है.''
फिलहाल बेंगलूरू में इंस्टीट्यूट ऑफ वुड साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी के निदेशक सुरेंद्र की टीम ने शिकारियों, संदेशवाहकों, संग्राहकों और तस्करी के प्रायोजकों का केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक, दिल्ली और बंगाल में पता लगाया और उनका पीछा किया. कुछ ही महीनों के भीतर हाथी दांत के व्यापार में शामिल 74 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. टीम ने उनके मोबाइल नंबरों से उनका पीछा किया, उनके ठिकानों पर छापे मारे और यहां तक कि उनके बैंक खातों को सील कर दिया.
आज यह मामला भारत में हाथियों की तस्करी के इतिहास में सबसे बड़े मामले के रूप में दर्ज हो चुका है. सुरेंद्र बताते हैं, ''हमने शून्य से शुरू किया लेकिन टीमवर्क के माध्यम से एक मजबूत केस बना लिया. इसमें करीब सौ अधिकारी शामिल थे. इस प्रक्रिया में हमने भारत और विदेश में काम कर रहे एक विशाल नेटवर्क की पहचान कर ली.''
हालांकि शुरुआती सफलता के बाद उनके ऊपर जांच को धीमा करने का दबाव बनने लगा. इस जांच में बीच-बीच में केरल में वन बल के प्रमुख डॉ. बी.एस. कोरी ने ''सक्रिय विरोध्य्य करते हुए अड़ंगा लगाया. सुरेंद्र बताते हैं, ''उन्होंने तो अधिकारों के हनन का गलत आरोप लगाकर अधिकारियों को हतोत्साहित करने तक की कोशिश की. उनका मानना था कि हमारी जांच गलत दिशा में बढ़ रही है. बावजूद इसके कि टीम ने रिकॉर्ड अवधि में तस्करी का भंडाफोड़ कर डाला था.''
इस आइएफएस अफसर का कहना है कि तमाम अवरोधों के बावजूद उन्हें सिर्फ ''एक बात का खेद रहा कि एक्कारामत्तम वासु नहीं पकड़ा जा सका. अगर हम उसे जिंदा पकड़ लेते, तो तस्करी के नेटवर्क के बारे में और ज्यादा विवरण सामने आ सकता था.'' इस गिरोह का सरगना वासु 21 जुलाई, 2015 को रहस्यमय हालात में महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले स्थित डोडामर्ग के एक फार्म हाउस में मृत पाया गया, जहां वह छुपा हुआ था.
52 वर्षीय वासु उर्फ 'वदत्तुपरा वीरप्पन' (वन अपराध रिकॉर्ड में उसका यही नाम मिलता है) छोटी उम्र में ही तस्करी करने लगा था. नब्बे के दशक के अंत में उसका ध्यान हाथियों की ओर गया जब एक स्थानीय हाथी दांत शिल्प कारोबारी ने उसकी मुलाकात अजी ब्राइट नाम के शक्चस से कराई. एर्णाकुलम जिले के मलयातूर प्रखंड के प्रखंड वन अधिकारी (डीएफओ) के. विजयानंद बताते हैं, ''वह बेरहम था और अपने तेज निशाने के लिए जाना जाता था. वासु हाथी दांत तस्करों का केंद्रीय संपर्क था. हमारी जांच में यह बात सामने आई कि उसे अभियानों के लिए अग्रिम राशि दी जाती थी, यहां तक कि उसके खातों में पैसा वायर से भी भेजा जाता था.'' कुंजुमन ने खुद इस गिरोह की बेरहमी का पर्दाफाश किया है. वह कहता है, ''एक बार हम लोग जंगल से लौट रहे थे और हमने छह महीने से भी छोटा हाथी का बच्चा देखा. उसके दांत काफी छोटे थे लेकिन आंदिकुंजू (वासु के गिरोह का दूसरा प्रमुख शख्स) ने मजे के लिए उसे गोली मार दी. मैंने जब उस पर एतराज जताया, तो हमारी बहस छिड़ गई और उसने मुझसे हाथापाई की. मैं उसके बाद कई दिन तक सो नहीं पाया और हाथी के बच्चे की आवाज मुझे डराती रही.'' (इसी हाथी के बच्चे की हत्या के आरोप में कुंजुमन को गिरक्रतार किया गया था).
वासु का गांव कुट्टमपुझा सुदूर आदिवासी इलाका है जो कभी प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ सालिम अली का ठहरने का पसंदीदा ठिकाना था. यह जगह आज कई कारणों से बदनाम है. इदमलयार जंगलों के किनारे बसा यह उनींदा-सा गांव आज हाथियों और वन्यजीवों के लिए सबसे खतरनाक स्थलों की सूची में शामिल हो चुका है. कुट्टमपुझा से अगस्त, 2015 के बाद हाथी तस्करी के करीब 18 मामलों में करीब 14 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं. करीमबनी के रेंज ऑफिसर शांत्री टॉम कहते हैं कि इस गांव के कई गिरोह पास के जंगलों में सक्रिय हो गए थे. ''वासु गिरोह को देखकर उन्हें लगा कि हाथियों की तस्करी बेहद आकर्षक काम है. ब्राइट के नेटवर्क के साथ जुडऩे के बाद उसकी जीवनशैली बदल गई थी.'' वन अधिकारियों का कहना है कि हाथी दांत का एक जोड़ा (औसत वजन 20 किलो) स्थानीय बाजार में सात लाख रु. में बिकता है. तिरुअनंतपुरम से दिल्ली पहुंचने तक इसकी कीमत करीब पांच गुना बढ़कर 35 लाख रु. हो जाती है.
यह नेटवर्क कई स्तरों पर काम करता था. डीएफओ विजयानंद कहते हैं, ''वासु जैसे लोग हाथी दांत ब्राइट जैसे एजेंटों को देते हैं, जो तिरुअनंतपुरम के शिल्प निर्माता प्रस्टन सिल्वा जैसे लोगों के लिए कच्चा माल खरीदने का काम करते हैं. सिल्वा इसके बाद हाथी दांत व्यापारी उमेश अग्रवाल और निर्यातक ईगल राजन जैसे लोगों को आपूर्ति करता है. सिर्फ तस्कर ही अगली कड़ी के बारे में जानते हैं, हालांकि वासु एक अपवाद था.''
जांच टीम ने ब्राइट के बैंक खाता विवरण का पता लगाया (सितंबर, 2013 से जून, 2015 तक) जिसमें यह सामने आया कि उसे इस अवधि में 19.31 लाख रु. की राशि प्राप्त हुई थी. पैसा दिल्ली, बेंगलूरू, मैसूर और त्रिची तक से आया था. भारी-भरकम राशि की लेन-देन की वजह से जांच के दायरे में हाथी दांत व्यापारी भी आ गए. खासकर, दिल्ली के लक्ष्मीनगर से अग्रवाल की गिरफ्तारी सूचनाओं की खदान साबित हुई. जाफराबाद के उसके गोदाम से न सिर्फ 415 किलो हाथी दांत बरामद किए गए बल्कि उसने ऐसे अहम सुराग दिए जिन्हें जोड़कर दक्षिण भारत में तस्करी के तंत्र का पता लगाया जा सका.
सुरेंद्र कुमार ने जब हाथी दांत व्यापारियों को निशाने पर लेना शुरू किया, तब उनकी जांच में दिक्कतें आना शुरू हुईं. एक वरिष्ठ वन अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कोच्चि में बताया, ''जांच को बंद करने की कोशिश हुई थी और टीम के कुछ सदस्यों का तबादला कर दिया गया. राज्य के कई आला अधिकारी दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में मारे गए छापों और गिरफ्तारियों से नाखुश थे. सुरेंद्र कुमार के ऊपर भारी दबाव था. आखिरकार उन्होंने केंद्रीय नियुक्ति के लिए आवेदन किया और बेंगलूरू चले गए.''
इस जांच पर और ज्यादा असर इसलिए पड़ा क्योंकि सीबीआइ ने इसे अपने हाथ में लेने से इनकार कर दिया. केरल सरकार चाहती थी कि सीबीआइ पश्चिमी घाट पर सक्रिय अंतरराष्ट्रीय आइवरी व्यापार नेटवर्क और वासु की रहस्यमय खुदकुशी की जांच करे. मामला बिल्कुल साफ था लेकिन सीबीआइ ने कार्यबल की कमी का हवाला देते हुए अनुरोध को ठुकरा दिया. केरल के एक अफसरशाह कहते हैं, ''सीबीआइ की जांच अंतरराष्ट्रीय गिरोह का भंडाफोड़ कर देती और उसे सजा दिलवा सकती थी, पर बदकिस्मती से एजेंसी ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.'' इस दौरान केरल मानवाधिकार आयोग भी परिदृश्य में आया और वन अधिकारियों के खिलाफ उसने एक मुकदमा दर्ज कर दिया. टुकड़ों में जांच अब तक जारी है. वासु के गिरोह से सबसे ताजा गिरक्रतारी इसी 4 अक्तूबर को हुई है.
एलिफैन्ट टास्क फोर्स के सदस्य और वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के वरिष्ठ निदेशक डॉ. पी.एस. ईसा कहते हैं कि आगे यह किया जा सकता है कि वन विभाग तस्करी के सभी मामलों की जांच के लिए एक विशिष्ट प्रकोष्ठ का गठन करे. वे कहते हैं, ''केरल के जंगलों में अगर हाथी महफू ज नहीं हैं, तो कोई भी जानवर सुरक्षित नहीं.'' इस जांच के कुछ शुरुआती चेहरे जैसे रेंज अधिकारी सुनील कुमार और कुंजुमन के लिए बीते दिन काफी परेशानी भरे रहे. छह माह तक निलंबित रहने के बाद सुनील और पांच अन्य अफसर दोबारा काम पर लौट आए हैं. कुंजुमन अपने दिन काट रहा है और अदालत में अगली तारीख का इंतजार कर रहा है. कह सकते हैं कि इस मामले में कुछ हद तक सही, इंसाफ तो हुआ है.