
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के पास ट्रैक की मरम्मत कर रहे गैंगमैन पैसेंजर ट्रेन आने से पहले काम पूरा करना चाहते थे. लेकिन वे गलत थे. सौ किमी प्रति घंटे की रक्रतार से आ रही हरिद्वार कलिंग उत्कल एक्सप्रेस खतौली स्टेशन के पास पटरी से उतर गई. ट्रेन के 14 डिब्बे एक दूसरे पर चढ़ गए, जिससे 23 यात्रियों की मौत हो गई और 70 घायल हो गए.
वह 19 अगस्त का दिन था. उस घटना के चार दिन बाद ही कानपुर के पास कैफियत एक्सप्रेस के आठ डिब्बे पटरी से उतर गए. हालांकि इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ. पर रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने पद छोडऩे की पेशकश कर दी. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि रेलवे के बुनियादी ढांचे में सुधार के उनके प्रयास कैसे खंडित हो रहे हैं. नेटवर्क के बुनियादी ढांचे या तकनीक में कोई सही निवेश नहीं हुआ है.
हालांकि महत्वपूर्ण सुरक्षा पहल के तहत गत दो साल में 4,155 बगैर आदमी वाले क्रॉसिंग (यूएलसी) को खत्म कर दिया गया. 2019 तक तमाम यूएलसी को हटा लेना तय किया गया है. ट्रेन के डिब्बों के पटरी से उतरने की घटनाओं के बाद यूएलसी देश में रेल हादसों के दूसरे सबसे बड़े कारण बन चुके हैं. इस वर्ष 21 जनवरी को जगदलपुर से 600 यात्रियों के साथ हीराकुंड एक्सप्रेस आंध्र प्रदेश के विजयनगरम के कोनेः के पास पटरी से उतर गई. हादसे में 41 यात्रियों की मौत हो गई. पिछले 17 वर्षों के सबसे भयावह हादसे में इंदौर-पटना एक्सप्रेस कानपुर के पास पटरी से उतर गई जिसमें 152 यात्री मारे गए. कानपुर की घटना में तोडफ़ोड़ की आशंका की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) कर रही है.
लेकिन जैसा कि उत्कल एक्सप्रेस हादसे से लगता है कि मानवीय चूक और सुरक्षा संस्कृति की कमी आधुनिक बुनियादी ढांचे की कमी से अधिक खतरनाक है. परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल काकोदकर कहते हैं, समस्या की जड़ है कि यह ''किसी की जिम्मेदारी नहीं'' है. प्रभु ने यूएलसी खत्म करने और बायोटॉयलेट स्थापित करने जैसी काकोदकर कमेटी की महत्वपूर्ण सिफारिशों को लागू तो कर दिया लेकिन मंत्रालय से स्वतंत्र रेल सुरक्षा प्राधिकरण का गठन करना बाकी है जो सुरक्षा नियमों को बनाने और लागू करने के लिए जिम्मेदार होगा. 2010-15 के दौरान 126 गंभीर ट्रेन हादसों के अध्ययन के बाद जून 2016 मे आई सीएजी रिपोर्ट में रेखांकित किया गया कि अधिकांश मामलों में मौके पर राहत महत्वपूर्ण दो घंटे बाद पहुंची.
विपक्षी दल कांग्रेस ने प्रभु से इस्तीफे की मांग पर जोर देते हुए हाइ स्पीड ट्रेन चलाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने पर भी सवाल उठाए हैं. पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने टीवी पर कहा, ''बुलेट ट्रेन को भूल जाइए. मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद 27 ट्रेन दुघर्टनाएं हो चुकी हैं. 15 महीने में केवल उत्तर प्रदेश में छह बड़े हादसे हुए हैं.''
दुनिया में कहीं भी चलती ट्रेनों के बीच व्यस्त मार्गों पर पटरी की मरम्मत शायद ही होती होगी. लेकिन भारतीय रेल का कहना है कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है क्योंकि ट्रेन दिन-रात चलती हैं. रेलवे का कहना है कि यातायात में सालाना चार प्रतिशत की वृद्धि के बावजूद रेल सुरक्षा के महत्वपूर्ण सूचकांक प्रति दस लाख ट्रेन किलोमीटर में दुघर्टनाएं 2006-07 में 0.23 थी जो 2016-17 में घटकर 0.09 रह गई हैं. लेकिन ट्रेनों के पटरी से उतरने की घटनाओं में वृद्धि भयावह है. नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में 78 ऐसी घटनाएं हुई थीं. 2012 से 2016 के बीच हताहत हुए 1,011 में से 347 ट्रेनों के पटरी से उतरने की वजह से शिकार बने.
रेल मंत्रालय का दावा है कि पिछले तीन साल के दौरान बुनियादी ढांचे में जितना विस्तार किया गया उतना 30 वर्ष में नहीं हुआ. इस दौरान 16,700 किमी रेल पटरियों का विद्युतीकरण किया गया जबकि 1987 से केवल 19,000 किमी में ही यह काम हुआ था. 2014 के बाद 12,690 किमी पटरियों के दोहरीकरण को मंजूरी दी गई जबकि इससे पहले तीन दशक में केवल 7,192 किमी में दोहरीकरण हुआ था.
तीन साल में रेलवे ने बुनियादी ढांचे पर चार लाख करोड़ रु. खर्च किए हैं. प्रभु ने इस वर्ष एक लाख करोड़ रु. का रेल सुरक्षा कोष बनाया. नवंबर 2019 तक मुंबई, दिल्ली और कोलकाता के बीच 3,300 किलोमीटर नई रेल पटरियों के साथ फ्रेट कॉरिडोर बनना रेल नेटवर्क के लिए राहत की बात होगी. लेकिन सुरक्षा की संस्कृति अपनाने की योजना के बगैर ये कवायद बेमानी हो सकती है.
—साथ में एम. रियाज हाशमी