
समाजसेवी और चिंतक केएन गोविंदाचार्य का मोदी सरकार द्वारा 500 और 1000 के नोट बैन किए जाने के फैसले पर मानना है कि 500 और 1000 के नोट समाप्त करने से केवल 3% कालाधन बाहर आ सकता है.
फेसबुक पर लिखे लेख में उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा 500 और 1000 के नोट समाप्त करने के फैसले से पहले मैं भी अचंभित हुआ और आनंदित भी. पर कुछ समय तक गहराई से सोचने के बाद सारा उत्साह समाप्त हो गया. नोट समाप्त करने और फिर बाजार में नए बड़े नोट लाने से अधिकतम 3% काला धन ही बाहर आ पाएगा और मोदी जी का दोनों कामों का निर्णय कोई दूरगामी परिणाम नहीं ला पाएगा. केवल एक और चुनावी जुमला बन कर रह जाएगा. नोटों को इस प्रकार समाप्त करना- 'खोदा पहाड़, निकली चुहिया' सिद्ध होगा. समझने की कोशिश करते हैं.
उन्होंने लिखा कि अर्थशास्त्रियों के अनुसार भारत में 2015 में जीडीपी के लगभग 20% अर्थव्यवस्था काले बाजार के रूप में विद्यमान थी. वहीं 2000 के समय वह 40% तक थी, अर्थात धीरे-धीरे घटते हुए 20% तक पहुंची है. 2015 में भारत का सकल घरेलु उत्पाद लगभग 150 लाख करोड़ था, अर्थात उसी वर्ष देश में 30 लाख करोड़ रुपये कालाधन बना. इस प्रकार अनुमान लगाएं तो 2000 से 2015 के बीच न्यूनतम 400 लाख करोड़ रुपये कालाधन बना है.
लेख में वे आगे कहते हैं कि रिजर्व बैंक के अनुसार मार्च 2016 में 500 और 1000 रुपये के कुल नोटों का कुल मूल्य 12 लाख करोड़ था जो देश में उपलब्ध 1 रुपये से लेकर 1000 तक के नोटों का 86% था. अगर मान भी लें कि देश में उपलब्ध सारे 500 और 1000 रुपये के नोट कालेधन के रूप में जमा हो चुके थे, जो कि असंभव है तो भी केवल गत 15 वर्षों में जमा हुए 400 लाख करोड़ रुपये कालेधन का वह मात्र 3% होता है.