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...इस वजह से जानकी वल्‍लभ शास्‍त्री ने ठुकरा दिया था 'पद्मश्री'

आज आचार्य जानकी वल्‍लभ शास्‍त्री की जयंती हैं. संस्‍कृत और हिन्‍दी साहित्‍य में आचार्य उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. जानें उनके बारे में...

जानकी वल्‍लभ शास्‍त्री जानकी वल्‍लभ शास्‍त्री
अनुज कुमार शुक्ला
  • नई दिल्ली,
  • 05 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 1:18 PM IST

आज आचार्य जानकी वल्‍लभ शास्‍त्री की जयंती है. संस्‍कृत और हिन्‍दी साहित्‍य में आचार्य उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री का जन्म 5 फरवरी 1916 को औरंगाबाद जिले के दक्षिण-पश्चिम में बसे गांव मैगरा में हुआ था. उनका विवाह मात्र 12 वर्ष की उम्र में कर दिया गया था. छायावाद के अंतिम स्तंभ माने जाने वाले जानकी वल्लभ शास्त्री उन थोड़े-से कवियों में रहे हैं, जिन्हें हिंदी कविता के पाठकों से बहुत मान-सम्मान मिला है. आचार्य का काव्य संसार विविध और व्यापक है.

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शुरुआत में उन्होंने संस्कृत में कविताएं लिखीं. इसके बाद महाकवि निराला की प्रेरणा से हिंदी भाषा में अपनी लेखनी को मजबूत किया. आचार्य की विभिन्न विधाओं में जितनी रचनाएं प्रकाशित हैं, उनसे अधिक उनकी अप्रकाशित कृतियां हैं.

साल 1930 तक आचार्य श्री की संस्कृत की कविताएं संस्कृत की प्रतिष्ठित पत्रिकाएं - संस्कृतम्, सुप्रभातम् और सूर्योदय में काफी प्रकाशित हुई थी. शास्त्री जी ने बनारस में 1935 में शास्त्री और मैट्रिक और सन् 1938 में शास्त्राचार्य व इंटर की शिक्षा प्राप्त की. वाराणसी में ही सन् 1935 में महाप्राण निराला से मुलाकात हुई. 16 वर्ष की उम्र में संस्कृत काव्य संग्रह को देखकर महाप्राण ने ही आचार्य श्री से हिन्दी में कविता रचने को कहा.

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उनकी कुछ महत्‍वपूर्ण रचनाओं की सूची: मेघगीत, अवन्तिका, श्यामासंगीत, राधा (सात खण्डों में), इरावती, एक किरण: सौ झाइयां, दो तिनकों का घोंसला, कालीदास, बांसों का झुरमुट, अशोक वन, सत्यकाम, आदमी, मन की बात, जो न बिक सकी, स्मृति के वातायन, निराला के पत्र, नाट्य सम्राट पृथ्वीराज, कर्मक्षेत्रे: मरुक्षेत्रे, एक असाहित्यिक की डायरी.

बायो-डाटा मांगने पर ठुकरा दिया था पद्मश्री

महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री को वर्ष 2010 में 25 जनवरी को पद्मश्री देने की घोषणा हुई थी. पद्मश्री पर शास्‍त्री जी की प्रतिक्रिया थी कि चलो देर से ही सही सरकार ने मेरी सुध ली लेकिन बावजूद इसके पुरस्कार को लेकर सरकार की औपचारिकता उन्हें रास नहीं आई. गृह मंत्रालय की तरफ से बायोडाटा मांगा गया था. शास्‍त्री जी को ये बात ठीक नहीं लगी. उन्‍होंने कह दिया कि जिन लोगों को मेरे कृतित्व की जानकारी नहीं है, उनके पुरस्कार का कोई मतलब नहीं है. शास्‍त्री जी ने गृह मंत्रालय से मिली चिठ्ठी पर पद्मश्री अस्वीकार लिखकर वापस गृह मंत्रालय भारत सरकार को भेज दिया था.

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