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भारत के राष्ट्रीय गीत बंदे मातरम् के रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की आज 125वीं पु्ण्यतिथि है. उनका निधन 8 अप्रैल, 1894 को हुआ था. बंकिमचंद्र ने अपने उपन्यासों के माध्यम से देशवासियों में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह की चेतना का निर्माण करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. जानें उनके बारे में कुछ खास बातें..
- बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 27 जून 1838 को बंगाल के उत्तरी चौबीस परगना के कंथलपाड़ा में एक बंगाली परिवार में हुआ था. वह बंगला के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे. जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था. रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनका अन्यतम स्थान है.
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- बंकिमचंद्र की शिक्षा हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में हुई. साल 1857 में उन्होंने बीए पास किया और 1869 में कानून की डिग्री हासिल की. प्रेसीडेंसी कॉलेज से बी.ए. की उपाधि लेने वाले ये पहले भारतीय थे. इसके बाद उन्होंने सरकारी नौकरी की और 1891 में सरकारी सेवा से रिटायर हुए. उनका निधन अप्रैल 1894 में हुआ. शिक्षा समाप्ति के तुरंत बाद डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर इनकी नियुक्ति हो गई. कुछ काल तक बंगाल सरकार के सचिव पद पर भी रहे. रायबहादुर और सी. आई. ई. की उपाधियां पाईं.
देश के लिए राष्ट्रगीत
बंकिमचंद्र ने अपने लेखन की शुरुआत अंग्रेजी उपन्यास से की थी, लेकिन बाद में उन्होंने हिंदी में लिखना शुरू किया. देश के लिए राष्ट्रगीत और अन्य रचनाओं को आज भी याद किया जाता है.
ऐसे हुई राष्ट्रीय गीत की रचना
बंकिमचंद्र ने जब इस गीत की रचना की तब भारत पर ब्रिटिश शासकों का दबदबा था. ब्रिटेन का एक गीत था 'गॉड! सेव द क्वीन'. भारत के हर समारोह में इस गीत को अनिवार्य कर दिया गया. बंकिमचंद्र तब सरकारी नौकरी में थे. अंग्रेजों के बर्ताव से बंकिम को बहुत बुरा लगा और उन्होंने साल 1876 में एक गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया 'वन्दे मातरम्'.
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बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की रचनाएं
उनके द्वारा रचित उपन्यासों में ‘दुर्गेशनंदिनी’, ‘आनंदमठ’, ‘कपालकुंडला’, ‘मृणालिनी’, ‘राजसिंह’, ‘विषवृक्ष’, ‘कृष्णकांत का वसीयतनामा’, ‘सीताराम’, ‘राधारानी’, ‘रजनी’ और‘इंदिरा’ प्रमुख हैं. इन सभी उपन्यासों की विशेषता यह है कि इनके पात्र ऐतिहासिक या तत्कालीन समाज से लिए गए हैं.