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कुछ ऐसा था संजय गांधी का अंदाज, किया था कांग्रेस का पुनर्जन्म!

आज कई विवादों के बाद भी लोकप्रिय नेताओं में से एक संजय गांधी की पुण्यतिथि है. देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी का 23 जून 1980 को विमान दुर्घटना में निधन हो गया था.

संजय गांधी और इंदिरा गांधी संजय गांधी और इंदिरा गांधी
मोहित पारीक
  • नई दिल्ली,
  • 23 जून 2018,
  • अपडेटेड 1:08 PM IST

आज कई विवादों के बाद भी लोकप्रिय नेताओं में से एक संजय गांधी की पुण्यतिथि है. देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी का 23 जून 1980 को विमान दुर्घटना में निधन हो गया था. यह भारत के इतिहास की एक ऐसी घटना है, जिसने देश की राजनीति के सारे समीकरण बदल डाले.

संजय गांधी को इंदिरा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता था, लेकिन उनके निधन से देश की सियासी हवा पूरी तरह बदल गई और इस घटना के चार बरस बाद जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो उनके बड़े पुत्र राजीव गांधी को उनकी विरासत संभालने के लिए सियासत में कदम रखना पड़ा. उनकी पुण्यतिथि पर उनके बेटे वरुण गांधी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है.

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कुछ ऐसा था अंदाज

70 के दशक को संजय गांधी की वजह से काफी यादगार माना जाता है. भारत में इमरजेंसी की भूमिका बहुत विवादास्पद थी. हालांकि उनकी तेज तर्रार शैली और दृढ़ निश्चयी सोच की वजह से वो देश की युवा पसंद थे. संजय गांधी अपनी सादगी और भाषण के लिए जाने जाते थे. कहा जाता है कि वे प्लेन में भी कोल्हापुरी चप्पल पहनते थे, जिसके लिए राजीव गांधी उन्हें बार-बार चेतावनी देते थे कि संजय उड़ान से पहले चप्पल नहीं बल्कि पायलट वाले जूते पहनें. हालांकि संजय उनकी सलाह पर कोई ध्यान नहीं देते थे.

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बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार जेएनयू में प्रोफेसर रहे पुष्पेश पंत का कहना है, 'कहीं न कहीं एक दिलेरी उस शख्स में थी और कहीं न कहीं हिंदुस्तान की बेहतरी का सपना भी उनके अंदर था, जिसको कोई अगर आज याद करे तो लोग कहेंगे कि आप गांधी परिवार के चमचे हैं, चापलूस हैं. लेकिन परिवार नियोजन के बारे में जो सख्त रवैया आपात काल के दौरान अपनाया गया, अगर वो नहीं अपनाया गया होता तो इस मुल्क ने शायद कभी भी छोटा परिवार, सुखी परिवार की परिकल्पना समझने की कोशिश ही नहीं की होती.'

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इमरजेंसी में भी थी अहम भूमिका

महज 33 साल की उम्र में ही संजय गांधी सत्ता और सियासत की वो धुरी बन गये थे, जहां कहते हैं कि कैबिनेट भी बौना पड़ जाता था. संजय गांधी इंदिरा गांधी के लिए मजबूती बनकर उभरे तो साथ ही मजबूरी भी. इंदिरा गांधी के निर्णायक फैसलों में संजय के काफी दखल थे और कहा जाता है कि देश पर इमरजेंसी थोपने में भी संजय की बड़ी भूमिका थी.

कांग्रेस को फिर दिलाई जीत

इमरजेंसी के बाद 1977 की हार ने एक नए संजय गांधी को जन्म दिया. राजनीति को ठेंगे पर रखने वाले संजय गांधी ने राजनीति का गुणा-भाग सीख लिया. कहते हैं कि चरण सिंह जैसे महत्वाकांक्षी नेता को प्रधानमंत्री बनवाकर जनता पार्टी को तुड़वा दिया. इस बीच जनता में इंदिरा गांधी की इमेज चमकाने के लिए हर हथकंडे आजमाए. साथ ही कांग्रेस में अपना यंग ब्रिगेड तैयार किया. उसके बाद नतीजा ये निकला कि 1980 के जनवरी में ना सिर्फ कांग्रेस ने केंद्र में सरकार बनाई, बल्कि 8 राज्यों में भी कांग्रेस की सरकार बनी. तब कांग्रेस के टिकट पर 100 ऐसे युवकों ने चुनाव जीता, जो संजय के ढर्रे पर राजनीति करते थे.

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मारुति की डाली नींव

पेड़ लगाने का आंदोलन और भारत में चीजों के बनने पर जोर उनके कार्यक्रम का प्रमुख हिस्सा था. उन्होंने वर्कशॉप में मारुति का डिजाइन बनाने की कोशिश की. भारत में मारुति की नींव संजय गांधी ने ही डाली थी.

कई बार हुआ था हमला

विकीलिक्स के आधार पर एक अंग्रेजी अखबार में छापी गई रिपोर्ट के अनुसार इमरजेंसी के दौरान उनकी हत्या की साजिश रची गई थी. 1976 में उन पर गोली चलाई गई थी. बताया गया कि 30-31 अगस्त 1976 को उन पर हमला किया गया था. संजय गांधी की मृत्‍यु विमान दुर्घटना में हुई थी. विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मृत्यु 23 जून 1980 को हुई थी.

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