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नोबेल जीतने वाले पहले भारतीय थे टैगोर, 2 देशों को दिए राष्ट्रगान

बचपन से कुशाग्र बुद्धि के रवींद्रनाथ टैगोर ने देश और विदेशी साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि को अपने अंदर समाहित कर लिया था.

रवींद्रनाथ टैगोर रवींद्रनाथ टैगोर
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 11:31 AM IST

आज कवि, उपन्‍यासकार, नाटककार, चित्रकार रवींद्रनाथ टैगोर की पुण्यतिथि है. 7 अगस्त 1941 को गुरुदेव का निधन हो गया था. वे ऐसे मानवतावादी विचारक थे, जिन्‍होंने साहित्य, संगीत, कला और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अपनी अनूठी प्रतिभा का परिचय दिया. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कई अहम बातें...

- रवींद्रनाथ टैगोर भारत ही नहीं एशिया के प्रथम व्‍यक्ति थे, जिन्‍हें नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था. उन्हें 1913 में उनकी कृति गीतांजली के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. कहा जाता है कि नोबेल पुरस्कार गुरुदेव ने सीधे स्वीकार नहीं किया. उनकी ओर से ब्रिटेन के एक राजदूत ने पुरस्कार लिया था और फिर उनको दिया था.

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जब रवींद्रनाथ टैगोर ने लौटा दी थी 'नाइट हुड' की उपाधि!

- उनका जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था. रवींद्रनाथ अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे. बचपन में उन्‍हें प्‍यार से 'रबी' बुलाया जाता था. आठ वर्ष की उम्र में उन्‍होंने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्‍होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था.

- रवींद्रनाथ टैगोर दुनिया के संभवत: एकमात्र ऐसे कवि हैं, जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया. बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रचियता भी टैगोर ही हैं.

- रवींद्रनाथ टैगोर को प्रकृति का सानिध्य काफी पसंद था. उनका मानना था कि छात्रों को प्रकृति के सानिध्य में शिक्षा हासिल करनी चाहिए. अपने इसी सोच को ध्यान में रख कर उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की थी.

- जीवन के 51 वर्षों तक उनकी सारी उप‍लब्धियां कलकत्‍ता और उसके आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित रही. 51 वर्ष की उम्र में वे अपने बेटे के साथ इंग्‍लैंड जा रहे थे. समुद्री मार्ग से भारत से इंग्‍लैंड जाते समय उन्‍होंने अपने कविता संग्रह गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद करना प्रारंभ किया.

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- रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है. हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत से प्रभावित उनके गीत मानवीय भावनाओं के विभिन्न रंग पेश करते हैं. गुरुदेव बाद के दिनों में चित्र भी बनाने लगे थे. रवींद्रनाथ ने अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, चीन सहित दर्जनों देशों की यात्राएं की थी.

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