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समलैंगिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी बताने वाली आईपीसी की धारा 377 पर एक बार फिर बहस तेज हो गई है. मंगलवार को सु्प्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई और मामला पांच जजों की बेंच को सौंप दिया. समलैंगिक रिश्तों को लेकर सही या गलत की बहस में पड़ने से पहले आप यह जान लें कि आखिर धारा 377 में क्या-क्या प्रावधान हैं.
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1. यह धारा अप्राकृतिक यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराता है.
2. 1862 में यह कानून लागू हुआ.
3. इसके तहत स्त्री या पुरुष के साथ अप्राकृतिक यौन संबध बनाने पर 10 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है.
4. यही नहीं किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर उम्र कैद या 10 साल की सजा व जुर्माने का भी इसमें प्रावधान है.
5. यह बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन हिंसा को देखते हुए बनाया गया था.
6. सहमति से दो पुरुषों, महिलाओं और समलैंगिकों के बीच सेक्स भी इसके दायरे में आता है.
7. धारा 377 के तहत अपराध गैर जमानती है.
8. यह संज्ञेय अपराध है. यानी इसमें गिरफ्तारी के लिए वॉरंट की जरूरत नहीं होती. सिर्फ शक के आधार पर या गुप्त सूचना का हवाला देकर पुलिस इस मामले में किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है.
150 साल में सिर्फ 200 दोषी
आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस धारा 377 पर कई सालों से देशभर में बहस छिड़ी है, उसके तहत अप्राकृतिक संबंध बनाने के मामले में पिछले लगभग 150 सालों में सिर्फ 200 लोगों को ही दोषी करार दिया गया
है.
LGBT समुदाय
समलैंगिक, उभयलिंगी और लिंग बदलवाने वाले लोगों को मिलाकर LGBT (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर) समुदाय बनता है.