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Swami Vivekananda Birth Anniversary: 'मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों' से 126 साल पहले स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म संसद में एक भाषण की शुरुआत की थी. विवेकानंद का दिया हुआ ये भाषण इतिहास के पन्नों में सदा के लिए अमर हो गया. ये तो सभी जानते हैं कि जब उन्होंने ये भाषण दिया था को पूरे सभागार कई मिनटों तक तालियों की गूंज हर तरफ गूंजती रही. लेकिन क्या आप जानते हैं जिस भाषण को देने के बाद जहां उन्हें एक अलग पहचान मिली, उस भाषण देने शिकागो नहीं जाना चाहते थे विवेकानंद. आइए जानते हैं- क्या थी वजह
बताया जाता है कि दक्षिण गुजरात के काठियावाड़ के लोगों ने सबसे पहले स्वामी विवेकानंद को विश्व धर्म सम्मेलन में जाने का सुझाव दिया था. फिर चेन्नई के उनके शिष्यों ने भी निवेदन किया. खुद विवेकानंद ने लिखा था कि तमिलनाडु के राजा भास्कर सेतुपति ने पहली बार उन्हें यह विचार दिया था. जिसके बाद स्वामी जी कन्याकुमारी पहुंचे थे.
जब शिष्यों ने जुटाए पैसे
जब स्वामी विवेकानंद चेन्नई से वापस लौटे उस दौरान उनके शिष्यों ने शिकागो जाने लिए पैसे जोड़े थे, लेकिन जब इस बारे में विवेकानंद को मालूम चला तो उन्होंने कहा कि जमा किए हुए सारे पैसे गरीबों में बांट दिए जाए. बता दें, शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म सम्मेलन में भाषण देने के स्वामी विवेकानंद ने जो कष्ट उठाने पड़ें. शिकागो पहुंचकर भाषण देने इतना आसान बात नहीं थी.
मालगाड़ी में बिताई रात, नहीं थे खर्चे के पैसे
स्वामी विवेकानंद विश्व धर्म सम्मेलन के पांच हफ्ते पहले ही शिकागो पहुंच गए थे. शिकागो काफी महंगा शहर था. उनके पास खर्चे के पर्याप्त पैसे नहीं थे. और जितने पैसे उनके पास थे वह खत्म हो रहे थे.
शिकागो की ठंड
जब स्वामी विवेकानंद शिकागो के लिए मुंबई से रावाना हो रहे थे उस दौरान उनके दोस्तों ने कुछ गर्म कपड़े दिए थे, लेकिन जब विवेकानंद का जहाज 25 जुलाई 1893 को शिकागो पहुंचा तो वहां कड़कड़ाती ठंड थी. उन्होंने लिखा- "मैं हडि्डयों तक जम गया था". शायद मेरे दोस्तों को नॉर्थवेस्ट अमेरिका की कड़ाके की ठंड का अनुमान नहीं था.
5 हफ्ते पहले पहुंच गए थे शिकागो
स्वामी विवेकानंद 5 हफ्ते पहले शिकागो पहुंच गए थे. जितने पैसे थे वह धीरे- धीरे खत्म हो गए थे. पैसे न होना और कड़ाके की ठंड की वजह से उनका शरीर थककर चूर हो गया था. जिसके बाद उन्हें खुद को कड़ाके की सर्दी से बचाने के लिए यार्ड में खड़ी मालगाड़ी में रात गुजारनी पड़ी थी.
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जानें किसका हिस्सा था 'धर्म सम्मेलन'
साल 1893 का 'विश्व धर्म सम्मेलन' कोलंबस द्वारा अमेरिका की खोज करने के 400 साल पूरे होने पर आयोजित विशाल विश्व मेले का एक हिस्सा था. अमेरिकी नगरों में इस आयोजन को लेकर इतनी होड़ थी कि अमेरिकी सीनेट में न्यूयॉर्क, वॉशिंगटन, सेंट लुई और शिकागो के बीच मतदान कराना पड़ा, जिसमें शिकागो को बहुमत मिला था. जिसके बाद तय हुआ कि 'धर्म सम्मेलन' विश्व मेले का हिस्सा है.
बता दें, 1893 में स्वामी विवेकानंद ने मुंबई से यात्रा शुरू करके याकोहामा से एम्प्रेस ऑफ इंडिया नामक जहाज से शुरू की थी जहां बैंकुअर पहुंचकर ट्रेन से शिकागो भाषण देने पहुंचे थे.