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क्या हैं स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें जिसके लिए किसान बार-बार कर रहे हैं आंदोलन

बार-बार होने वाले किसान आंदोलनों से अक्सर जेहन में यह सवाल आता है कि आखिरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें क्या थीं जिसे लागू करने की मांग की जाती है. 

महाराष्ट्र के आंदोलित किसान (फाइल फोटो) महाराष्ट्र के आंदोलित किसान (फाइल फोटो)
वरुण शैलेश
  • नई दिल्ली,
  • 03 जून 2018,
  • अपडेटेड 7:26 PM IST

देश के सात राज्यों में किसानों ने आंदोलन के साथ बंद का आह्वान किया है. इसमें 100 से ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं. महाराष्ट्र के किसानों ने एक बार फिर पांच जून से सड़कों पर उतरने का ऐलान किया है. किसानों का यह 10 दिवसीय आंदोलन उनके उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों समेत कई अन्य मुद्दों को लेकर किया गया है.

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चुनावी वादे को भूल गई सरकार

किसानों का आरोप है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के बारे तो मोदी सरकार बात ही नहीं कर रही है. 2006 में जो सिफारिशें स्वामीनाथन आयोग ने दी थीं उसे 11 सितंबर 2007 को ही पिछली कांग्रेस सरकार ने स्वीकर किया था.

बाद में मोदी की सरकार आई और उसने भी किसानों के सुधार की बात कही, लेकिन उसने भी इसे चुनावी जुमला कहकर छोड़ दिया. कल का सत्ताधारी आज का विरोधी हो गया है, जो विरोधी कल बोल रहा था, वही बात आज का विरोधी बोल रहा है. किसी को भी किसान की चिंता नहीं है. सबने मिलकर किसानों का गला घोटा है. इसीलिए आज ये आंदोलन हो रहा है.

प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन को अपने देश में हरित क्रांति का जनक कहा जाता है. स्वामीनाथन जेनेटिक वैज्ञानिक हैं. तमिलनाडु के रहने वाले इस वैज्ञानिक ने 1966 में मेक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकिसित किए. यूपीए सरकार ने किसानों की स्थिति का जायजा लेने के लिए एक आयोग का गठन किया जिसे स्वामीनाथन आयोग कहा गया.

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स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें

अगर 10 दिन तक किसानों का यह आंदोलन चलता है तो शहर में सब्जियों और खाद्य पदार्थ को लेकर संकट खड़ा हो सकता है. किसानों का आंदोलन मुखर होता जा रहा है. बार-बार होने वाले किसान आंदोलनों से अक्सर जेहन में यह सवाल आता है कि आखिरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें क्या थीं जिसे लागू करने की मांग की जाती है.

बदल जाती किसानों की हालत

दरअसल, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को आज तक लागू नहीं किया जा सका. कहा जाता है कि अगर इस रिपोर्ट को लागू कर दिया जाए तो किसानों की तकदीर बदल जाएगी. अनाज की आपूर्ति को भरोसेमंद बनाने और किसानों की आर्थिक हालत को बेहतर करने के मकसद से 18 नवंबर 2004 को केंद्र सरकार ने एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया था. इस आयोग ने पांच रिपोर्ट सौंपी थीं. 

भूमि सुधार की अनुशंसा

स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट में भूमि सुधारों को बढ़ाने पर जोर दिया गया है. अतिरिक्त और बेकार जमीन को भूमिहीनों में बांटना, आदिवासी क्षेत्रों में पशु चराने का हक देना आदि है .

आत्महत्या रोकने की कोशिश

आयोग की सिफारिशों में किसान आत्महत्या की समस्या के समाधान, राज्य स्तरीय किसान कमीशन बनाने, सेहत सुविधाएं बढ़ाने और वित्त-बीमा की स्थिति पुख्ता बनाने पर भी विशेष जोर दिया गया है. यदि इसे लागू किया जाए तो किसानों की स्थिति में काफी सुधार की संभावना है.

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...तो बढ़ जाती किसानों की आय

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा रखने की सिफारिश भी की गई है ताकि छोटे किसान भी मुकाबले में आएं, यही इसका मकसद है. किसानों की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य कुछेक नकदी फसलों तक सीमित न रहें, इस लक्ष्य से ग्रामीण ज्ञान केंद्र और बाजार का दखल स्कीम भी लांच करने की सिफारिश की गई है.

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